Tuesday, August 6, 2013

2 अगस्त 2013 का चित्र और भाव




बालकृष्ण डी ध्यानी 
एक पग तो बडाना

हाथी और गेंद
देखो जिंदगी खेले कैसे कैसे खेल
इंसान और जानवर का है ये मेल

खड़ा है हाथी
अपना संतुलन संभाल कर
कितने घरो का वो चुल्हा जलाकर

पकती है उस से किसी घर की रोटी
भूख बिना मेहनत भी है रोती
चलो बच्चों बजा वो ताली

मेहनत से ना हार जाना
उस लगन को तुम ना भूल जाना
देख खड़ा हाथी गेंद पर ,तुम बच्चों आज कुछ सीख जाना

हार नही होती है
असफलता जीत की सीड़ी है
तुम बच्चों एक पग तो बडाना

हाथी और गेंद
देखो जिंदगी खेले कैसे कैसे खेल
इंसान और जानवर का है ये मेल


अलका गुप्ता
इंसान और जानवर का जो मेल हुआ |
अनोखा फिर .. सर्कस का खेल हुआ ||

ये दुनिया तो वैसे भी रोमांच की है |
जीते जो हौसलों से उसकी विजय है ||

इंसान ने भी क्या-क्या गुर बनाए |
हुनर से अपने जानवर भी नचाए ||

हाथी बन्दर कभी .. तोता-मैना नचाए |
खेलें बाल से कभी चढा बेलेंस दिखाए ||

पेट पापी को...बनाना न कातिल कभी |
सीमाएँ मनोरंजन की हों न हिंसक कभी ||


जगदीश पांडेय 
मूक जानवर हाँथी ताकत लिये विशाल
अजब दिखाता खेल करता ये कमाल
पढा विज्ञान में दाब हवा का बेमिशाल
वही प्रयोग कर हाँथी मचा रहा बवाल
किया प्रयोग किनारे समंदर के अपार
लिया ऐपरेटस् के लिये इसनें फुटबाल
अपना सारा बल फुटबाल पे है लगाया
मेहनत हुई बेकार और कुछ न कर पाया
सोचा समझा तब इस निष्कर्ष पर ये आया
अनगिनत हाँथियों का बल हवा में समाया
इंसान ही नही कर सकता केवल विज्ञान में कमाल
जानवर भी करते प्रयोग अपनें तरीके से बेमिशाल


भगवान सिंह जयाड़ा 
देख मेरा यह करतब ,
लोग बजाते है ताली ,
दिल से मेरे पूछो ज़रा ,
मैं इंसान को देता गाली ,
क्यों मुझे कैद किया है ,
मै जंगल का हूँ प्राणी ,
मेरी ब्यथा सुनों ज़रा ,
नित बहे आँखों से पाणी,
कभी बनाया मुझे अप्पू ,
कभी सर्कस में नचाया ,
कभी पिजड़े बंद कर के ,
बहुत मुझको है संताया ,
मजबूरी में मैं करू ये सब
हर पल लगे हंटर की डर,
बरना मैं जंगल का प्राणी ,
रहता था इन से बेखबर ,
देख मेरा यह करतब ,
लोग बजाते है ताली ,
दिल से मेरे पूछो ज़रा ,
मैं इंसान को देता गाली,




किरण आर्य 
गेंद और हाथी

जीवन है एक खेल अजब सा
हाथी घूमे गेंद पर जैसे
घूमे मानुष दिन रैन भटकता

निन्यानवे का फेर है भारी
आकर्षण चुम्बकीय है गज़ब का

दो पैरो पे खड़ा ये हाथी
मानव बैसाखियों पे है घिसटता

बेबस है जैसे ये हाथी
आक्रोशित मानव है सिसकता

कठपुतली बन नाच रहा ये
आम जन बेबस है दहकता

हाथी और मानव का जीवन
है एक जैसी राह खड़ा
एक बेबस एक बेबसी की
राह पे अग्रसर पैर पटकता


प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 
जीवन में सुख दुःख
बनाते है संतुलन
लेकिन,
कोई छोटा, कोई बड़ा
कोई ज्ञानी, कोई अज्ञानी
कोई ताकतवर, कोई कमजोर
कोई जीता, कोई हारा
कोई दोषी, कोई निर्दोष
कोई जोश में, कोई खोए होश
कोई प्रेमी, कोई दुश्मन
कोई जाना, कोई अनजान
कोई हैवान, कोई इन्सान

काश संतुलन हो कुछ येसा
दुःख कम और सुख हो ज्यादा
हो बड़ी
अच्छाई, सच्चाई  और इंसानियत
छोटी हो
बुराई, झूठ और हैवानियत
बढ़ते रहे
दान, धर्म, कर्म और ईमानदारी
घटते रहे
पाप, अपराध, अपवाद और अहंकारी


सभी रचनाये पूर्व प्रकाशित है फेसबुक के समूह "तस्वीर क्या बोले" में https://www.facebook.com/groups/tasvirkyabole/

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