बालकृष्ण डी ध्यानी
देश खड़ा बस रह जाता है
बनकर तमाशा अपने खुद का
राहे दिल ये संसद का मजाक उड़ते हैं
देश खड़ा बस रह जाता है
लहूलुहान हुई देश की सीमायें मेरी
वोटों की दीवारों का मकबरा सजाते हैं
देश खड़ा बस रह जाता है
रहते हैं हर वक्त जवाँ सरहदों पर जवान
गोलियों को वो अपने सीने में खाते हैं
देश खड़ा बस रह जाता है
अलविदा कर हिन्दुस्थान को जब
वो अपने वतन पर धराशायी हो जाते हैं
देश खड़ा बस रह जाता है
दिल रोता है बस कुछ देर ये आंसूं
कुछ देर बाद वो भी शांत हो जाते हैं
देश खड़ा बस रह जाता है
सफेद पोश खाकी का बुरा हाल इतना
सहादत पर उनकी बस एक तमगा पहनाते हैं
देश खड़ा बस रह जाता है
भगवान सिंह जयाड़ा
समझ नहीं रहा पाक अगर हमारी भाषा ,
तो क्या कर सकते है हम पाक से आशा ,
कुर्बानी कब तक हम अपने जवानो की देंगे ,
बदला जरूर हम इस का ,अब ले कर रहेंगे ,
उस की भाषा में ही अब जबाब देना होगा ,
कब तक भारत ,चैन की नीद अब सोगा ,
मुहँ तोड़ जबाब अब पाक को देना होगा,
यही अब भारत के हित में यूँ उत्तम होगा ,
देख सरकार का रुख ,दिल सबका रोता है ,
क्यों यह बार बार ,पाक की जुर्रत सहता है ,
एक बार तो आर पार की होनी चाहिए जंग ,
कब तक होते रहेंगे पाक से इस तरह तंग ,
यह हर बार हम से दोस्ती की बात करता है ,
और पीठ के पीछे से ,हम पर छुरा घोपता है,
समझ नहीं रहा पाक अगर हमारी भाषा ,
तो क्या कर सकते है हम पाक से आशा ,
जगदीश पांडेय
संसद की चार दिवारों में देखो
हो रहा है देश निलाम हमारा
खो गई गरिमा अशोक स्तंभ की
जो अब तक था पहचान हमारा
राष्ट्रीय पर्व के अवसर पर
ढोंग अब यहाँ सब रचाते हैं
तिरंगा देश की शान है केवल
एक दिन सब शोर मचाते हैं
कहाँ समझ पाये ये सफेदपोश्त
जो बदनामी का रंग लगाते हैं
अपना खून खून है और
औरों का पानी बतातें हैं
क्या फर्क इन्हें सरहद पर
जवान न्योछावर हो जाये
माँ भारती की आखों के
सपनें चाहे खो जाये
अब न होने पाये लाल हलाल
न हो माँ को अब कोई मलाल
क्यूँ नही समझते देश के रक्षक
लाल की माँ कर रही है सवाल
गरिमा देश की तुम पहचानों
अपनें आप को अब तुम जानों
शहीदों की चिताओं पर अब
न होनें पाये अब कोई बवाल.
लेकिन
देख बेटों की ये शहादत
माँ का कलेजा फट पडा
दिल के टुकडे हुवे हजार
और बोल ये निकल पडा
तुम्हें ढूँढे मेरी निगाहें
जानें कहाँ हो तुम
अब तो लौट आओ
चाहे जहाँ हो तुम
.
जय हिंद , जय भारत , वंदे मातरम्
Bahukhandi Nautiyal Rameshwari
सब बिसरा वो बैठा सीमाओं पर..
गर दुश्मन भरे बारूद
प्रहरी तू अंगार भर, निगाहों पर। .
तिरंगे की रखने आन बान। .
हर बार न्यौछावर तेरे प्राण।
शीत, लू, ऋतुओं का तुझ पर असर नहीं। .
स्वेत वस्त्र धारी, बस जिह्वा चला रहे।
बाँट चुके ये देश भीतर, गुलामी में कसर नहीं। ।
हर शहादत पर इनकी शाब्दिक लीपापोती। .
कब तक शहादत, नापाक इरादों को रहेगी धोती। ।
ढहने को है शीश माँ का।
ये बैठे संसद कफ़न का पट नाप रहे..
नित हिन्दू मुस्लिम का मंत्र जाप रहे। ।
बेटे, आज जाति, धर्म, भाषा पर ज़मीन नाप रहे। .
कब तक माँ भारती सीने पर तेरा लहू सहे। .
कभी सीमाओं पर इनका भी लहू बहे। .
आज तिरंगा यही कहता नजर आता है। .
दफ़न कर दो मुझे भी, हर शहादत पर।
इससे पहले मेरे रंग मिटने लगे।
बंटवारे में फिर से माँ के..
अंग अंग कटने लगे…
नूतन डिमरी गैरोला
ओ मेघ
कितना बरसोगे
इस रात की स्याही में तड़ित
कितना चमकोगे
गरजना है तो कराल सा गरज
जा कर सीमा पार दुश्मन की छाती पे बरस
आवाम है आजाद
पर नेश्तानाबूत आजादी है
युद्द न होना है भली बात पर
पर बिन युद्ध
निरीह सैनिकों के लहू की
ये कैसी बर्बादी है|
मार दिए जाते है कपट से
गर्दने उतार ली जाती हैं झपट से
और संसद में आवाम की भलाई के लिए
एक मत न्यायसंगत नहीं होता है पारित
जूतम जूता और कुर्सी के लिए
खुनी युद्ध होता है ...
मूक रहे अशोक चिन्ह के
चार सिंह
चार दिशाओं में
हमेशा रहे इक दूजे से असहमत .........
क़ानून ने तो पहले ही
बाँध ली थी आँखों पर काली पट्टी
पर अब बापू जी के तीन बन्दर
बघिर, गूंगे ही नहीं अंधे हो चले हैं ...
अब रात घनी काली हो चली है
उम्मीदों की पोटली अब
भेदभाव की आंधी में बिखर चुकी है
माँ का कलेजा रो रो कर छलनी हो चुका है
तिरंगा अब शान नही
बेकसूरों की शहादत का
बस कफ़न हो चुका है ....
ए मेघ तू तुझसे है अनुनय विनय
अब तू ले संग तड़ित
कर विकराल गर्जन
सरहद पार जा कर
दुश्मन पर
बज्र का आघात कर
उनकी छाती पर बरस............
Pushpa Tripathi -
राजकीय सलामी ...
नहीं बोलते सोचते कुछ
संसद सदन निद्रा में चूर
कुछ कुछ ढफली राग मचाते
बाहर से ही शान दिखलाते
बिछ रही लाशें कितनी
सरहद पर चाहे जितनी
सर कट जाते गोलियों की मार
शहीद सैनिकों की दशा हर बार
टूटती चूड़ियाँ विलाप जो करती
वर्दी से झर झर लहू ही बहता
आंखों का पानी गाढ़ा होकर
अंतिम संस्कार की पेटी उठाता
देह अमर बन 'अमर शहीद '
राजकीय सलामी हम भी देते ...!!!
अलका गुप्ता
शहीदों की चिताओं पर...
लगेंगे हर वरस मेले |
बदल दो तारीख में ...
आज की ...
उनके ये अल्फाज ||
शहादत पे शहीदों की...
उठेंगे सियासत के झमेले |
तड़पती है हर आत्मा...
सियासी ..इन जंजीरों में |
सुनी जाती नहीं ...
चीखें मजलूम...!!!
इन संसदों में ||
गर्व है देश को सारे ...
अपने उन वीरों पर
वह थे वीर सपूत ...!
झेले हैं जिन्होंने ...
डटके दुश्मन के ...
हर कायर वार ||
समेटे है ...
गर्व से ...
देखो ...!!!
तिरंगा भी ...
कफन में...
अपने ...
ये लाल !!!
डूबा है दर्द में...
ललकारता ...!
बच्चे-बच्चे का ..
स्वभिमान |
हर आँख मायूस है |
आयेगा कब ...?
सियासत में ...
यही उबाल ||
समझ में आयेगा...
कब आखिर ?
इतनी सस्ती सी नहीं...
ये जान !
ये सरजमीं ....!!!
ये सरहदें हमारी !!!
Pushpa Tripathi
कट गए बाजू
जो आधार था
पुत्र .. पति .. भाई
जो कुछ सहारा था
सरहद पर मिटने वाले
शाहदत भारत शूर
वतन के खातीर
वह लाल प्यारा था .......
किरण आर्य
शहीद वो जो देश पर न्योछावर
सर्वस्व अपना कर चले
क्यों बहाए दिल आँसू
तू उनके लिए
वीरगति बलिदान उनका
हो रहा जाया यहाँ
लाश पर उनकी राजनेता
राजनीती है कर रहे
संसंद में बिछी चौसर
शकुनि चाल चल रहे
अशोक स्तंभ और तिरंगा
है स्तब्ध से खड़े
शोर्य गाथा थे जो कहते
आज बेबस है बड़े
देश की रक्षा को तत्पर
जवान खूं से तिलक कर रहे
नेता यहाँ पर देश के मेरे
आश्वासनों की बैसाखियों
पर टिके है चल रहे
देश गरिमा अपनी
आज देखो खो रहा
हाय देखो बेबस सा
खून के आंसू है रो रहा
प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
हम
गणतंत्र का करते मान
संसद का करते सम्मान
लेकिन
सस्ता शहीद का बलिदान
नेता देते उट पटांग बयान
हमारी
आन पर हमारी शत्रु हमला करते
सरकारी नेता कुछ कहने से बचते
आखिर
कब तक हम यह सब सहते रहेंगे
कर शांति वार्ता जख्म खाते रहेंगे
अब
हमें देश हित सर्वोपरि रखना होगा
शत्रु को जबाब मुंह तोड़ देना होगा!!
सभी रचनाये पूर्व प्रकाशित है फेसबुक के समूह "तस्वीर क्या बोले" में https://www.facebook.com/groups/tasvirkyabole/
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