Thursday, August 1, 2013

31 जुलाई 2013 का चित्र और भाव



Pushpa Tripathi 
उड़ रही बनके गुब्बारा

रंगीन सपना दुनिया मेरी
ये ख़ुशी मेरी अपनी है
गुब्बारों संग उड़ चली मै
यह साकार कामयाबी मेरी है ....

सुन्दर सुनहरी पंख लगी है
मन इच्छाओं की डोली सजी है
चल पडूँगी साथ ही तेरे
यह उज्जवल सफ़र अब मेरा है l


प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल  
~मैं उड़ चली ~
कल तक
सोचती थी
उडू आसमा में
लम्बी हो
जिन्दगी की डगर
आज पा लिया
रंगीन सपनो का
हकीकत भरा आसमा

अपवाद से
कर लिया किनारा
बदल कर सोच
खुद पर किया भरोसा
मिले अपने
थाम कर उनका हाथ
लो मैं उड़ चली
लेकर नए ख़्वाब
ढूँढने और जबाब ....


सुनीता पुष्पराज पान्डेय 
मै नील गगन मे उड़ जाऊ
इक ऐसा जहाँ मिले
जी भर साँसो को भर पाऊ
इक ऐसा संसार मिले
जहाँ मै सिर्फ शो पीस नही
इक इंसान समझी जाऊ
सहज हो जीवन मेरा
मै स्वछंद हो कर नही
मेरे अपनो के साथ जीना चाहूँ


बालकृष्ण डी ध्यानी 
वो उड़ान मेरी

नीले अंबर छुने की छलांग मेरी
उन सपनों को पाने की
वो उड़ान मेरी ...................

रंग बेरंगी गुब्बारों संग
हवा के इन मौज़ों संग है
वो उड़ान मेरी ……………….

मेरा मन वो.... देखो उड़ा चला
सात आसमान वो छुने चला
वो उड़ान मेरी ……………….

सीधा जीना है वो उड़ान मेरी
इन पंखों से है परवाज मेरी
वो उड़ान मेरी ……………….

ना करों मै किसी का इंतजार
वो आसमान देख रहा है मेरी राह
वो उड़ान मेरी ……………….

अब बदलेगा वो इतिहास पुरना
गीत गाऊँगी मै नया है आज जमाना
वो उड़ान मेरी ……………….

नीले अंबर छुने की छलांग मेरी
उन सपनों को पाने की
वो उड़ान मेरी ……………….


जगदीश पांडेय 
गुब्बारा होता उड जाता रे
छूनें को मैं ये आसमाँ
रंग बिरंगी दुनियाँ ये
मुठ्ठी में समाँ जाता रे
गुब्बारा होता उड जाता रे
गुब्बारे जैसा मैं फुल पाता
भर लेता दुख सब का
जीवन में सबके खुशियों का
नया सबेरा ले आता रे
गुब्बारा होता उड जाता रे


भगवान सिंह जयाड़ा 
दिल करता है आज नभ को छू लूं ,
खुशी के यह पल जी भर के जी लूं ,

ख्वाइशों की चाहत आज हुई है पूरी,
नहीं कोइ चाह अब यहाँ मेरी अधूरी,

गुब्बारों की तरह उडूं आसमान में ,
आज सब कुछ मेरा इस जहांन में,

दिल झूमें खुशी से ऐसा आज मेरा,
देख घटा को नाचे जैसे मन मयूरा ,

कामयाबी की बनूं मैं ऐसी मिशाल ,
जिसे देखे दुनियाँ सारी,यह बिशाल,

सपने सब के हों इस जहां में साकार,
तभी बदलेगा ,मानवता का आकार,

दिल करता है आज नभ को छू लूं ,
खुशी के यह पल जी भर के जी लूं ,



अलका गुप्ता 

गुब्बारे वाला ....बाबा आता है |
रंग-बिरंगे गुब्बारे वह लाता है ||

इन गुब्बारों की महिमा न्यारी |
कितनी मोहक...छवि है प्यारी ||

सपनों में भी गुब्बारे उमंग जगाएँ |
उड़ कर ये चितचोर..मन भरमाएँ ||

पापा उड़ने वाले गुब्बारे तुम लाना !
जन्म-दिन पर मेरे उन्हें ही सजाना ||

जश्न सारे दिन .....हम खूब मनाएँ |
केक काट..गुब्बारों संग ही उड़ जाएँ ||

निर्द्वन्द आकाश की ओर बढ़ते जाएँ |
संग बादलों के ...हम खूब बतियाएँ ||

सारा जीवन हम ... यूँ ही मुस्काएँ |
नई उमगं-नई सोंच ... हम अपनाएँ ||


डॉ. सरोज गुप्ता 
चल उड़ जा

हमारी आजादी के गुब्बारे चल उड़ जा !
गिन ला दूर गगन के तारे चल उड़ जा !!

हमारे स्वप्न हुए आज सब के सब पूरे !
खुशियाँ बाँट सारे जहाँ में चल उड़ जा !!

झूठी वाह -वाही का नशा चंद मिनटों का !
दवाब में न आ जाना हवा के चल उड़ जा !!

हम दीवाने फक्कड़ पांच रूपये की हैं हस्ती !
आवारा बादलों से कर ले मस्ती चल उड़ जा !!

रंग-रूप सबका ढल जाएगा एक न एक दिन !
तू है साक्षी रंग भरे जीवन का चल उड़ जा !!

दुर्जन बिठा न दे प्रेम पर कहीं पहरे घनेरे !
तू पैगाम लेकर प्रेमी- हंसो का चल उड़ जा !!

मित्र-वेष में दुश्मन निकाले तलवार म्यान से !
तू संदेश -वाहक बन जा मैत्री का चल उड़ जा !!



सभी रचनाये पूर्व प्रकाशित है फेसबुक के समूह "तस्वीर क्या बोले" में https://www.facebook.com/groups/tasvirkyabole/

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