बालकृष्ण डी ध्यानी
~मै यंहा तुम वंह ~
मै यंहा तुम वंह
मै यंहा तुम वंह,रस्ते गुम कंहा
शाम गमगीन है , अब गुमसुम समा
मै यंहा तुम वंह
तुम बैठे ही रहे, हम रूठ कर चल दिये
देखा था मुड़ के हम ने, तुम सर झुकाये ही रहे
तुम वंह मै यंहा
बैठे रह गये राह ताकते ,तुम्हे निगाहों में भरते
खोये रहे हम बस तेरे ही ख्यालों के ख्यालों में
मै यंहा तुम वंह
सोच था तुम आवाज दोगे,हमें तुम रोक लोगे
बस सागर मचलता रहा, ये मन तड़पता रहा
तुम वंह मै यंहा
ना थी तेरी खता ,ना ही था मै बेवफा
मुकदर में कुछ और लिखा था हम हो गये जुदा
मै यंहा तुम वंह
शक मुझ मे पनपा था, इसकी मिली सजा
राहें एक थी अब तक, मंजिलें अब हुयी फना
तुम वंह मै यंहा
मै यंहा तुम वंह,रस्ते गुम कंहा
शाम गमगीन है , अब गुमसुम समा
मै यंहा तुम वंह
अतुल सती अक्स
मोड़:
किस मोड़ मुड़ गयी ये ज़िन्दगी।
फिर बन गए हम तुम अजनबी।
ना तुम ही बेवफा,ना हम बेवफा।
इश्क ने रंजो-गम दिया सदा ही।
अश्कों में डूबा मिला हमें 'अक्स'।
जिसने भी की,इश्क़ की बन्दिगी।
जगदीश पांडेय
------------ गले लगा जाना -------------
जिंदा लाश बना के शौक से चली जाना
जानें से पहले गले एक बार लगा जाना
.
गुमसुम सी जिंदगी मेरी शाम-ओ-सहर
इस कदर रुठ कर मुझपे न ढाओ कहर
कर न दे ये जमाना कहीं खाक-ए-सुपुर्द
राख होनें से पहले मेरी जाँ लौट आना
जानें से पहले गले एक बार लगा जाना
.
खामोश है फिजाएँ देखो आब-ओ-हवा
इन्हें अपनी चाहत का नज्म सुना जाना
मैं तो हूँ प्रतिबिंब सनम तेरी अदाओं का
दूर होनें से पहले ये सीसा तोड जाना
जानें से पहले गले एक बार लगा जाना
.
गर न आये जो लौट वादा है ये मेरा
टूट जायेगी साँस रहेगा इंतजार तेरा
बस दिल की तमन्ना एक पूरी कर जाना
'दीश' के आखिरी घर की नींव रख जाना
जानें से पहले गले एक बार लगा जाना
रोहिणी एस नेगी
"काल-रात्रि"
रिश्ते सुलझे-अनसुलझे से,
दिखाई देते हैं.....
कच्चे धागों़ की तरह उलझे से,
दिखाई देते हैं.....
पीड़ होती है ये जानकर,
जब अपने-पराए से,
दिखाई देते हैं.....
कहने और करने में कितना,
फ़र्क़ लगता है.....
दिल रोता है उसमें जब,
दर्द उठता है.....
धूआँ आँसू बनकर,
भाप हो जाता है.....
सीने की जलन में ज़मीर
करवट बदलता है.....
वो काल-रात्रि बनकर,
जाने कहाँ से आती है,
मेरी संवेदनाओं को,
फिर जगा जाती है,
प्रतिदिन उसकी बाट,
जोहने में निकल जाती है,
वो है कि.........
रात के अँधेरें में,
फिर कहीं लुप्त हो जाती है...!!
नैनी ग्रोवर
----------खामोश रहूँ ---------
यही है मेरी किस्मत, के यूँ ही खामोश रहूँ,
बस तेरी ही यादों में, मैं मदहोश रहूँ...
तन्हा दिल की क्यूँ सुनेगा, ये रंगीं ज़माना,
जब छोड़ दी महफ़िल तो, खानाबदोश रहूँ...
ख्वाब था के, हो मेरे हाथों में, हाथ तेरा,
गर नहीं, तो यूँ ही, वीरानों की आगोश रहूँ...
समझी नहीं मैं चालें तेरी, ऐ गमें जिंदगी,
चल "नैनी" अब मैं ही निर्दोषों में दोष रहूँ ...
नैनी ग्रोवर
____ पत्थर चुनती हैं___
सहमी सहमी लग रहीं हैं हवाएं,
जैसे के इन्हें भी डर है,
मेरे सपनों के बिखर जाने का..
समुन्दर से मिलकर,
जाने क्या ताने बाने बुनती हैं,
मोती तो गुम हो चुके,
किस्मत पथ्थर चुनती है ...
क्या अब भी इंतज़ार है,
उनके कभी इधर आने का...
डूब रहा क्षितज का सूरज,
दूर कहीं बेगाने जहां में,
तू दूर कहीं मैं दूर कहीं,
प्रेम के उजियारे गाँव से,
मन में बसी जो प्रीत की बगिया,
डर है उस के, उजड़ जाने का...// नैनी
भगवान सिंह जयाड़ा
-----------तन्हाई जीवन की---------------
उम्मीदों के इस भंवर में मिले थे कुछ इस तरह ,
चाहत की ख्वाइसे संवारा था मैं कुछ इस तरह ,
सोचा न था कभी इस तरह मुंह मोड़ लोगी हमसे ,
हमने तो गिंदगी को संवारने की कोशिश की तुमसे ,
मगर दगा देकर छोड़ कर यूँ चली जावोगी हमको ,
चाहा था तुम को पहले जिंदगी में उसके बाद रब को,
खैर यही दिल लगी का फल है सायद मेरी जिंदगी में ,
बरना हम तन्हाँ ही खुश थे अपनी बिरान जिंदगी से ,
अभी भी कुछ चाहत है मेरे लिए तुम्हारे बेवफा मन में ,
तो लौट कर आ जावो सनम मेरे तड़फते इस मन में ,
मैं अभी भी इन्तजार कर रहा हूँ ,तुम्हारे बदलने का ,
एक बार दिल से समझने की कोशिश कर मेरे मन का ,
दिल्लगी को यूँ ठुकरा कर मेरी चली तुम जिस डगर ,
पस्तावोगी एक दिन तुम भी मेरी तरह कुछ इस कदर ,
बरना अभी भी समय है तुम लौट कर चली आवो ,
मेरी बिरान जिंदगी की सदा के लिए बहार बन जावो ,
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जगदीश पांडेय
------- तुम ही मेरी मौहब्बत हो -------
न जाओ मेरी जाँ मुझे इस कदर छोड कर
जोड के रिश्ता गम से दिल मेरा तोडकर
मैने अपनों हाथों की लकीरों को जला डाला
रब की दी अपनी तकदीरों को भुला डाला
.
क्या कमीं थी चाहत में जो जा रही हो
तडपानें के लिये मेरे ख्वाबों में आ रही हो
देखो कितनी उदास है शाम
और लहरों में तूफान है
इनके साथ ही जुडी हुई
तो हमारी दास्ताँन है
.
आज सूरज ढल गया तो क्या
वक्त बदल गया है तो क्या
भले अमावस की रात हो
बदनसीबी की बिसात हो
.
बस एक बार हाँ एक बार मुड के कह दो
कि हाँ मैं नही जी सकती तुम्हें छोड कर
जोड के रिश्ता गम से दिल तेरा तोडकर
और इस जहाँ में " दीश "केवल एक -
तुम ही मेरी मौहब्बत हो
तुम ही मेरी मौहब्बत हो
.
प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
~ये दूरियाँ~
ये बेरुखी है
या दूर हुए दूरियों से
ये तन्हाई है
या फिर याद तेरी लाई है
ये वक्त रूठा है
या दिल किसी का टूटा है
ये बेवफाई है
या फिर वफ़ा का सबब है
ये कैसा मौसम है
यहाँ भी वहाँ भी बरस रहा है
सूर्यदीप अंकित त्रिपाठी
ये दूरियाँ !!
दूरियाँ, मजबूरियां, क्यूँ बीच तेरे-मेरे,
बेरुखी, तन्हाईयाँ, क्यूँ बीच तेरे-मेरे |
आ पास आजा, कुछ पल तो ए जिंदगी,
पाबंदियां किस बात की, हैं बीच तेरे-मेरे |. दूरियाँ .....
कसमों सा, रस्मों सा, बेदाग़ दर्पण सा,
था सिलसिला तेरा-मेरा,
सपनों सा, अपनों सा, बेनाम अर्पण सा,
था सिलसिला तेरा-मेरा,
सरगोशियाँ गुम हो गईं कब, यूँ बीच तेरे-मेरे | दूरियाँ ...
सशेष.............
कुसुम शर्मा
!! दूर जा कर भी हम दूर जा न सकेंगे !!
दूर जा कर भी हम दूर जा न सकेंगे,
चाह के भी कभी तुमको भुला न सकेंगे,
दर्द कितना हैं बता न सकेंगे,
ज़ख्म कितने हैं दिखा न सकेंगे,
आँखों से समझ सको तो समझो लो
आंसूं गिरे हैं कितने गिना न सकेंगे,
गम इसका नहीं कि आप मिल न सकेंगे,
दर्द इस बात का होगा कि
तेरा नाम इस दिल से मिटा न सकेंगे,
दूर जा कर भी हम दूर जा न सकेंगे,
चाह के भी कभी तुमको भुला न सकेंगे,
Pushpa Tripathi
---- गुमसुम है चाँद ----
चुप है चाँद
रात भी गुमसुम
कारवां बना
कई हालात
दे रहा है समंदर
कुछ तो सहारा
मन का तूफ़ान
बस एक किनारा l
सोचाता हूँ जब
क्यूँ दर्द में घिरा
किसका असर मुझपर आया
दिल औ दिमाग गूंजता सवांद
बस ---- तू ही तू
बस ----- तू ही तू l
अलका गुप्ता
................ तुम हमारे हो ..............
नदी से दो किनारे हैं
दोनों के ही साहारे हैं
हम यहाँ तुम वहाँ ...
उदास..बेसहारे हैं |
मिलते नहीं बेवसी में ...
हम ...वो किनारे हैं |
ख्वाब आँखों के ...
तुम हमारे हो ...सनम !
हम तुम्हारे हैं ||
तन्हाई का ये उदास आलम है |
तूफ़ान समुन्दर से उठते है.....
दिल में ...अरमान मचलते हैं |
हम क्यूँ नहीं फिर .. मिलते हैं |
या रब !कुछ मिलने की सूरत कर ..
ज्यूँ दरिया और समुंदर मिलते हैं !!
सभी रचनाये पूर्व प्रकाशित है फेसबुक के समूह "तस्वीर क्या बोले" में https://www.facebook.com/groups/tasvirkyabole/
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