Saturday, March 28, 2015

२६ मार्च २०१५ का चित्र और भाव




प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 
~ कोरा कागज ~

हर पन्नो पर
तुमको उतारना चाहता था
तुमसे जुड़े
अपने अहसास लिखना चाहता था
हर पंक्ति में
तुमको मुझको कैद करना चाहता था
जीना चाहता था तुम्हारे संग जो पल
वो पल लिखना चाहता था

लेकिन आज
कलम खामोश है
दिख रही केवल रेखाए
जो मुझे सीमा में रहना सिखा रही है
भावो पर नियंत्रण सिखा रही है
अहसासों पर नियंत्रण सिखा रही है
मुझे ही मेरा भविष्य दिखा रही है
हाँ दिख रहा है मुझे
कोरा कागज़ केवल कोरा कागज




कुसुम शर्मा 
~ खाली कागज़ ~
************
बैठी हूँ खाली कागज़ लिए लेकिन लिखने को कुछ नहीं
वजह शायद सिर्फ इतनी है की मेरे पास तू नही
कभी लिखती हूँ तो कभी मिटा देती हूँ
ज़िन्दगी कैसी बीत रही है,पूछा था उसने ख़त में,
कभी सोचा बता दूँ उसे की कैसे बीती ज़िन्दगी उसके बिन
पर क्या बताऊ ये बिखरे से सपने
वो अनलिखे पन्ने,ये बेरंग तस्वीरें
या रूठी तकदीरें, क्या लिखू लिखने को बहुत कुछ है
और कुछ भी नहीं !!


डॉली अग्रवाल 
~ज़िन्दगी की किताब~

ठहरी हुई , सहमी हुई
ओस सी पलकों पर
काश !
तुम उँगलियों से
वो इक
पन्ना पलट देते
तो आज ये
इक कोरा सा पेज
कहानी बन गया होता !!!



बालकृष्ण डी ध्यानी 
~ अपने में उसे मै ~

बहुत कुछ लिखना था
लिखना ना पाया मै
कोरा पन्ना भरना था
भर ना पाया मै

उम्मीदों की वो
मेरी उड़ान थी
उन चार लाइनों में
जुडी मेरी पहचान थी

खाली मै था
खाली वो रह गया
वो पन्ना मेरा
कोरा का कोरा रह गया

सोचता ही रहा
बस मै बोलता ही रहा
अपने में उसे मै
खोजता ही रहा

ना मिल सका वो मुझे
ना मै उस पे कुछ लिख सका
वो मुझे देखता रहा
और मै उसे देखता रहा

बहुत कुछ लिखना था
लिखना ना पाया मै
कोरा पन्ना भरना था
भर ना पाया मै


भगवान सिंह जयाड़ा -
-----जिंदगी का खाली पन्ना -----

क्या लिखूँ इस जिंदगी के पन्ने पर ,
मन में एक अजीब कौतुहल सा आया ,
उठा लूँ फिर से मै अपनी लेखनी को ,
यह जिंदगी का पन्ना मन को भाया ,
कुछ शब्दों के रंग से रंग दूँ मै इसको ,
पर वह भावपूर्ण शब्द कहाँ से लाऊ ,
जिन पवित्र शब्दों के सुन्दर भावो में ,
जिंदगी के पन्ने संग मैं भी रंग जाऊं ,
कोई ज्ञानबर्धक ऐसा सुन्दर संदेश वह ,
जो अपनों संग दुनियाँ के मन को भाए ,
बहे जिस से अबिरल एक प्रेम का दरिया ,
और इस दुनियाँ में सदा अमर हो जाये ,
क्या लिखूँ इस जिंदगी के पन्ने पर ,
मन में एक अजीब कौतुहल सा आया ,
उठा लूँ फिर से मै अपनी लेखनी को ,
यह जिंदगी का पन्ना मन को भाया ,



नैनी ग्रोवर 
-- तू ही बता--

अब तू ही बता, ऐ कोरे कागज़,
क्या लिखूँ मैं,

मन का विश्वास लिखूँ,
यौवन का उल्लास लिखूँ,
बरसात की रिमझिम चुनूँ,
या पपीहे की प्यास लिखूँ ,

अब तू ही बता, ऐ कोरे कागज़ क्या लिखूँ मैं ?

बचपन की नादानियाँ लिखूँ,
नशे में डूबी जवानियाँ लिखूँ,
अधेड़ अवस्था का बोझ कह दूँ,
या बुढ़ापे की कोई कहानियाँ लिखूँ,

अब तू ही बता, ऐ कोरे कागज़ क्या लिखूँ मैं ?

गीता का कोई शलोक लिखूँ,
या तुझपे मैं कुरआन लिखूँ,
जो समझ में आये इंसानों के,
या ऐसा कोई शब्द मैं नादान लिखूँ,

अब तू ही बता, ऐ कोरे कागज़ क्या लिखूँ मैं ???




अलका गुप्ता 
~~छुए न पन्ने पीत..कलम ने~~

सियाह हुए वो भ्रष्ट चलन ने |
छोड़ी सच्चाई प्रीत ..कलम ने ||

कागज कोरा ही रह गया वो |
उकेरे फिर न गीत..कलम ने ||

शीत हुए भाव ...मुरझाए से ...
छुए न पन्ने पीत..कलम ने ||

अहसासों में...सच के..ताव नहीं |
सहम..लिखे न फिर भीत कलम ने ||

सच्चाई की ..इबारत ..लिखकर ...
पाई सदा ही ..जीत कलम ने



Neelima Sharrma 
~ नाम तुम्हारा ~
कोरे पन्ने पर लिखकर
तुम्हारा नाम
ना जाने कितनी बार
मिटाने की कोशिशे की
अनचाहे भी
चाह कर भी
लेकिन पन्नो पर
स्याही से
लिखे नाम
मिट'ते नही हैं
स्लेट होती तो
तुम
आज अजनबी होते .....


प्रभा मित्तल 
~~ यादें ~~
==========
मैंने कहा था न कि
मैं लिख नहीं पाऊँगी
पर तुम नहीं माने, और
थमा दिया यह कोरा पन्ना

कैसे बताऊँ
ये बित्ते सा काग़ज़
दिखने भर का कोरा है
इसकी लकीरों में मेरा
बचपन झाँक रहा है,
इसमें वो चेहरे हैं जो
अब यादों में बसते हैं
वो सारे सपने हैं जो
कभी अपने लिए देखे थे
वो मेरे थे पर उनमें
मैं ही नहीं थी
क्योंकि मैं नहीं, जिंदगी
मुझे जीती रही सारी उम्र।

तुम क्या जानो, कई बार चाहा
मैं भी कुछ लिखूँ मन की कहूँ
पर कभी काग़ज नहीं मिला
तो कभी कलम
कभी समय नहीं था
तो कभी मन
आज मेरे सामने कोरा सफ़ा है
कलम में स्याही भी है
समय भी है ....लेकिन..
हौंसला कहीं खो गया है....
हर बार यही हुआ है.....
जी भर जीने की चाह में
अतीत के लम्बे हाथों ने
मुझे पीछे खींच लिया है

जिन ज़ख़्मों को मैंने कभी
माँझे से सिल डाला था
वो आज फिर उधड़ने लगे हैं
एक बार फिर, कुछ
कहने की चाह में
लफ़्ज ज़ुबान तक
आकर अटक गए हैं
मौन खड़ी मैं शून्य में ताक रही हूँ
कुछ लिखने से पहले ही
शब्द साथ छोड़ गए हैं...
इसीलिए...इसीलिए...
मैंने कहा था ,मेरे दोस्त !
मैं लिख नहीं पाऊँगी
पर तुम नहीं माने.......
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सभी रचनाये पूर्व प्रकाशित है फेसबुक के समूह "तस्वीर क्या बोले" में https://www.facebook.com/groups/tasvirkyabole/

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