Tuesday, July 30, 2013

27 जुलाई 2013 का चित्र और भाव



प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
~मेरे दोस्त - मेरे दुश्मन~
मित्र बन कर पीठ पर वार करते है
देकर फूल कांटे राह में बिछा देते है
बात अपनी लेकिन दूसरो से करते है
बन दोस्त दुशमनी का व्यापार करते है
मुंह में राम - राम बगल में छुरी रखते है
कल बीता बदल गया, हम आज में रहते है
जीत कर विश्वास मित्रो को अलग करते है
जानते है लेकिन भरोसे पर ही एतबार करते है
संभल जाना 'प्रतिबिंब', ये अब बनी रिवायत है
देता जख्म जमाना, जमाना ही करता शिकायत है


भगवान सिंह जयाड़ा 
बना के दोस्त ,पीठ पर बार न करना कभी ,
दे कर फूल दोस्ती का,कांटे न बिछाना कभी,

ऐतवार करते है तुम पर,धोखा न देना कभी ,
दोस्ती को दुश्मनी में न, ऐसे बदलना कभी ,

दोस्ती की तो,दिल दोस्त का न तोड़ना कभी ,
सुख दुःख में दोस्त से ,मुख ना मोड़ना कभी ,

अगर दोस्ती में ऐसा मुकाम, गर आये कभी ,
दिल पर हाथ रख ,एक बार सोच लेना सभी ,

बना के दोस्त ,पीठ पर बार न करना कभी ,
दे कर फूल दोस्ती का,कांटे न बिछाना कभी ,



बालकृष्ण डी ध्यानी
बेवफा दोस्त

दोस्त ने किया ऐसा काम
दोस्ती को किया बदनाम

देता रहा मै दुहाई
दोस्त, साथी मेरे भाई

गुल दोस्ती का मुरझा सा गया
पीठ पर दोस्ती का खंजर भोंका गया

अजनबी बना रहा वो सहचर
अगवा हुआ मै दोस्त हर मौड़ पर

सारांश दोस्ती का इतना हुआ
धोखा ही दोस्ती पर जख्म हुआ

जज्ब अब दोस्ती का सिमटा जाता है
हर कोई अब अनजाना नजर आता है

भेदिया, जासूस वो लंगोटिया यार निकला
बेवफाई का वो तो सौदागर निकला

दोस्त ने किया ऐसा काम
दोस्ती को किया बदनाम

देता रहा मै दुहाई
दोस्त, साथी मेरे भाई


डॉ. सरोज गुप्ता 
दोस्त !
याद है वो दिन
जब तुमने दिए थे
गुलाब के फूल
मुझे चुभे थे तब भी
बहुत शूल ,
तुम्हारे सहलाने से
हो गयी थी मैं कूल
समझ गई थी
दोस्ती का मूल-
प्यार ......प्यार !

दोस्त !
तुम हो क्या वो ही
चला आज खंजर
खून्नम-खून किया
देखो प्यार का मंजर
कर रहे दोस्ती की जमीं
बंजर .......बंजर !

दोस्त !
सामने से ली होती जान
यह जमीं यह आसमाँ
होकर तुझ पर मेहरबान
करते फूलों की वर्षा !
सुदामा और कृष्ण के किस्से
दोहराए जाते आज पुन:
एक मुट्ठी चावल जो दिए थे
उस पर कर देती अपनी जान
कुर्बान ........कुर्बान !

दोस्त !
तुम्हारे कहने से पहले
झाँक रही हूँ मैं भी
अपने ही गिरेबान
तुझे कहकर शैतान
मैं बन रही हूँ भगवान !
ताली एक हाथ से कभी
नहीं बजा करती ,
मैं रखूंगी तेरे ताप को सम्भाल
जब तक बर्फ सा तेरा मन
नहीं हो जाता -
पानी .........पानी !!


K Shankar Soumya .
धोखा प्यार फरेब के, अपने-अपने रंग।
आज सभी किरदार में, मिलते हैं ये संग।।
मिलते हैं ये संग, हुआ अचरज है भारी।
सत्य लगे अब झूठ, बनावट दिखती प्यारी।।
कहते हैं कवि 'सौम्य', मिला उसको ही मौका।
जिसने पल-पल छला, दिया अपनों को धोखा।।


नैनी ग्रोवर
मैंने दिए थे फूल तुझे, तू वार मेरी पीठ पे करता रहा,
मैंने पल-पल दिया साथ तेरा, तू चालें दुश्मन सी गड़ता रहा..

हैराँ हूँ मैं, हैराँ है दिल मेरा, ये तू ही है या और कोई,
मैंने दी दोस्ती की खुशबु तुझको, तू ज़हर बन के बिखरता रहा..

मैं बुनती गई दिन रात, प्यार के धागों से हमारी दुनियाँ, ,
ना जाने कब और क्यूँ, ये विश्वास का रिश्ता उधड़ता रहा ..!!


अलका गुप्ता 
बढ़ चले कदम यूँ ही वीरानों की तरफ |
खो रही थीं राहें अंधेरों में ....हर तरफ ||

डराते रहे साए से हादसों के फलसफे ...
बेबस सी खौफ में डूबी रही इक तडफ ||

बरगलाते हैं स्याह ये ...शैतानी आगाज़ |
मचाते रहे कत्ले आम बेरहम हर तरफ ||

बचा कर... इंसानियत को ...ऐ खुदा !
दिखा दे किरन..आस की.. हर तरफ ||

आवाद कर... 'अलका ' ... इक हौसला |
चेहरा.. अमन का ..मुस्करा दे हर तरफ ||

जगदीश पांडेय 
किया दोस्ती को तुमनें हलाल
फिर भी है क्यूँ मन में मलाल
मिली ये शोहरत कैसे तुम्हे
ता उम्र खुद से करोगे सवाल
हर मोड पे है दोस्ती निभाया हमने
जिसे आज तक न समझ पाया तुमनें
किया वही तुमनें जो कहा है सब नें
ये कैसी सजा आज दिया है रब नें

Chander Mohan Singla 
सोचता हूँ खोल लूं ,मैं भी तमंचों की दुकान ,
फूल मेरे शहर में बिकते नहीं हैं अब जनाब |
सुर्ख रंग अब फूल का लोगों को भाता ही नहीं ,
खून के रंगों से ही अब खेलते नित होलियाँ |
किस कदर था प्यार भाइयों में दीवारें थी कहां ,
तू है हिन्दू ,ये इसाई, वो है सिख ,मै मुसल्मा ||


सभी रचनाये पूर्व प्रकाशित है फेसबुक के समूह "तस्वीर क्या बोले" में https://www.facebook.com/groups/tasvirkyabole/

2 comments:

शुक्रिया आपकी टिप्पणी के लिए !!!