ममता जोशी
आकाश में केवल शब्द था,
फिर वायु ने स्पर्श दिया,
जल ने रस का भान कराया ,
फिर अग्नि रूप का आगाज़ हुआ,
पृथ्वी सुगंध के साथ आई ,
और बर्ह्माण्ड का निर्माण हुआ,
पञ्चतत्व और पञ्चसंवेदनाओं से ,
एक तरंग उठी उत्पत्ति की,
सृष्टि मुखर हो उठी ,
तब जीवन का आह्वान हुआ |
अलका गुप्ता .
जीवन चक्र है यही ...
जन्म के बाद ...
रेंगता ...
चलता ...
बढ़ता ...
चढ़ता ...
जीवन के सोपान अनेक !
कैटरपिलर सा ...
धारता चोले अनेक !
रंग-रंग के रंग भरे ...
दुनिया देखे रोज !
देख-देख के दुनिया सारी ...
रंग बदलता ...अनेक !
भांति -भांति के सपने पाले ...
भांति-भांति के फूलों वाले ...
मंडराता माया माहीं ...
तरह-तरह के भोग -भोगके
जीवन के दिन चार !
यूँ ही उड़ जाता ...
तितली के ..
मानिंद !
दुनिया के उस पार !!
Pushpa Tripathi .....
पृथ्वी के गंध से कितने जीव उभरते है
जीवन की तलाश में रेंगते चलते उड़ते है
कीट पतंग कितने स्वाभाविक जन्म आकर बदलते है
जीविका के कारण वो भी परभक्षी बन जाते है
सृष्टि है जीवन दायनी सृजन पालन करती है
हरियाली के रंगों पर ही भोजन प्रदान देती है
सरक रही है नन्ही सी 'लारवा' कदम दर कदम बढाती है
समय में ढल कर थोड़ी और बढ़कर, तितली बन फिर उड़ जाती है
समय सबके समान ही चलते चाहे कर लो कितने ही रोक
जीवन चक्र है घूमता रहेगा एक के बाद दूसरा उम्र आकार l
Bahukhandi Nautiyal Rameshwari
था क़ैद गर्भ में ..
अब अस्तित्व स्वछंद हुआ ..
कभी गिरा ..
कभी संभला ..
यूँ बढ़ना जीवन की ओर ..
मंद मंद हुआ ..
देखी दुनिया ..
देखे दुनिया के अनेको रंग ..
उड़ने को जी आतुर हुआ ..
पर लगे मेरे ..
तमन्नाओं के ...
बाल सुलभ ह्रदय ..
बगिया बगिया फुर्र हुआ ..
कहती दुनिया पर निकल आये ..
जीवन इन्द्रधनुषी बिता ..
इक छोर जीवन ..
दूजी छोर मृत्यु ..
यूँ शनै शनै जीवन चक्र ...
पूर्ण कर आये ...
बीज गिरा धरा पर।।
बीज से नन्हे पौध ..
पौध पे खिले कली ..
कली बने महकता फूल ..
फूल गिरे फिर धरा पर…
जीवन का चक्र यही ..
काहे मानुष, जिह्वा रखे शूल ?
अंत तय सभी का ..
अहंकारी तू ना भूल
बालकृष्ण डी ध्यानी
वो तितली
रेंगता हुआ
कंहा चला
कुछ पल बाद
वो उड़ चला............
सोच ना था
उड़ान पंख की
पहचान बस
उस उमंग की
वो उड़ चला............
रंग बिरंगी
रंग लगाकर
सपनो के वो
पंख लगाकर
वो उड़ चला............
नये विचार
नये आयाम
नये ख्याल लेके
करने वो आगाज
वो उड़ चला............
रेंगता हुआ
कंहा चला
कुछ पल बाद
वो उड़ चला............
जगदीश पांडेय
मैं भी जग में नाम करुंगा
निज सारे काम करुंगा
आज अवस्था बालपन की
कल सपनें सब साकार करुंगा
मैं भी जग में नाम करुंगा
ये दुनियाँ रंगबिरंगी है
सपनें सब सतरंगी है
तमन्ना है आकाश छूनें की
पोंर की अभी जरा कुछ तंगी है
.
समय का पहिया चल रहा है
आकार मेरा अब बदल रहा है
दुनियाँ होगी मेरे दायरे में
मन मेरा ये कह रहा है
Janak M Desai .
मालुम न था, मैं उड़ पाऊंगा,
मालुम न था कि मैं बदलूँगा,
चलता था बस, फिर उड़ पाया
कल क्या लाए, मैं अब बदलूँगा |
भगवान सिंह जयाड़ा
कुदरत ने भी क्या जीवन चक्र बनाया ,
आँख मूंद कर हर प्राणी जग में आया ,
आँख खुली जब ,रेंघ कर चलना सीखा,
दुनिया कितनी है ,तब आँखों से देखा ,
ख्वाइस लिए सुन्दर पंखों की तन पर ,
वह नित पल पल पढ़ता ही चला गया ,
एक दिन ,सुन्दर पंखों से सुसज्जित ,
स्वछन्द आसमान में वह उड़ गया ,
चाहतों की राह पर संघर्स बहुत है यहाँ ,
लेकिन बिना संघर्स,कुछ नहीं इस जहां ,
कुछ पाना है जीवन में,तो चाहत जगावो ,
तितली की तरह , चाहत के पंख लगावो ,
प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
..... जीवन चक्र ....
जीवन का अस्तित्व है जीवन चक्र
जन्म से लेकर ये मौत तक का क्रम
ये सांस से साँस उखड़ने तक का चक्र
रोज पालते फिर भी अमर होने का भ्रम
भूल जाते है हर पल, अंतिम सच जीवन का
कर्म धर्म होते स्वार्थ से, बहाना होता जीने का
दुसरे का मन टटोले, भेद न खोले अपने मन का
समाज के प्रति भाव नही, दोष बताते दुसरे का
साँस आज आई है जीवन नया मिला है
बचपन बीता बिना परवाह सब खेला है
जवानी में तो लगता किस्मत का मेला है
किसी को सुख तो किसी ने दुःख झेला है
बीते जैसे भी पल फिर बुढ़ापे से मिलना है
वक्त पर फिर हमें अंत का सामना करना है
जीवन में हमारा कर्म - धर्म हो केवल सच्चा
पाया है जो जीवन, कर जाए हम कुछ अच्छा
प्रेम विश्वास संग 'प्रतिबिम्ब, ईमान हो सच्चा
शिक्षित व् स्वस्थ हो देश का हर बच्चा बच्चा
किरण आर्य
जीवन चक्र और उससे बंधे हम
जीवन और मृत्यु
सिक्के के पहलु दो
दो शाश्वत सत्य
ख़ुशी और ग़म
आंसू में है बंधे
ख़ुशी के आंसू
मातम के आंसू
आंसू हँसते
कभी रोते से
सत्कर्म और दुष्कर्म
पाप और पुण्य
अच्छाई और बुराई
मानव या अमानुष
सब सोच पर निर्भर
हाँ सोचना है तुम्हे
कैसे पूरा हो ये
जीवन का चक्र
सभी रचनाये पूर्व प्रकाशित है फेसबुक के समूह "तस्वीर क्या बोले" में https://www.facebook.com/groups/tasvirkyabole/
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