Friday, July 26, 2013

25 जुलाई 2013 का चित्र और भाव




Janak M Desai .
हाँ, एहसास है अब, यह जीवन भी एक यंत्र है ,
तालमेल से चलता है तो लगता है एक तंत्र है ;
आधुनिक से जर्जरित होकर चला भी जाएगा ,
जाने से पह्ले जीना कैसे, वो जैसे एक मंत्र है |

Pushpa Tripathi 
- एक था टेलिग्राम .....

था एक टेलिग्राम कोई
वह बातूनी सा यंत्र है
संदेश आखर भर
त्वरित खबर भर
मानव अविष्कारी मंत्र है l

छोटी बातों में
नयाब असर है
इक जादू सा ढंग है
ब्रटिश जमाना था
एक खजाना था
तार तुरंत का अंत है l

जमाना बदला
ढंग सब बदले
रंग नए प्रचलित हुए
मोबाईल ने ले ली
जगह है बदली
हाथों हाथों में तंत्र है l


Chander Mohan Singla 
तार तार हो गयी तार ,
सुख -दुःख वो बतलाती थी |
मन घबराता देख तार को,
पर खुशियाँ दे जाती थी ||


अलका गुप्ता 
बीत गया ... वह लम्हा हूँ |
कभी ख़ुशी ... कभी गम हूँ |
मैं तार था .. बेतार कभी ..
आज ऐतहासिक संचार हूँ ||


जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासु
तार....

आता है वो जाता है,
जहां है उसका धाम,
आया था और चला गया,
तार कहो या टेलीग्राम...

मोबाईल ही बन गया,
कैसे उसका काल,
जब किसी का मन करे,
पूछो परिजनों का हाल.....

लाता था डाकिया जब,
घबराता था मन,
हो गया अल्विदा आज,
हृदय से उसे नमन....


भगवान सिंह जयाड़ा
तार हो गया अब बेतार ,
यादो में रहेगा बेसुमार ,

लाता था कभी खुशिया,
कभी दुख दर्द की खबर,

नयाँ दौर नई तकनीकी ,
क्यों पल का इन्तजार,

इस लिए अलबिदा अब ,
आज तार का इन्तजार,

फिर भी इतिहास कहेगा ,
तार था कभी एक आधार ,

अपनों के दुःख दर्द में जब,
जानने हम रहते थे बेकरार,

तार हो गया अब बेतार ,
यादो में रहेगा बेसुमार ,


किरण आर्य 
टेलीग्राम है आया
आया आज एक तार

सुनते ही दिल लगता था
बल्लियों उछलने हज़ार

कभी लाता था खुशियाँ अपार
कभी सुनाता दुख का समाचार

आह वो तार अब हुआ है बेतार
बीते ज़माने सा वो साधन संचार

लील गई उसे विकास की बहार
पहना दिया उसे फूलो का हार

मोबाइल इंटरनेट का है बाज़ार
मिनटों में पहुचे हर समाचार

पर भूल ना पायेंगे तुम्हे ए तार
तुम्ही तो थे पहले साधन संचार


बालकृष्ण डी ध्यानी 
टेलीग्राम

बस आज तक
जो था कल तक
उस १६० साल की सेवा को
मेरा सलाम

अंतिम तार
राहुल के नाम
यू.पी.ये. के दिन
अब रह गये चार

तू भी ना सह पाया
अपनों का ये साथ
अकेला ही पड़ा रहा
तू कितने साल

याद जब आयेगा
खुशी और गम में तू
कभी हंसायेगा
कभी रुलायेगा

अलविदा ..अलविदा
वो टेलीग्राम
आखीर तूने भी
साथ छोड़ दिया आज


जगदीश पांडेय 
गुजर गया वो हसीन लम्हा
जब तार आया करता था
कभी लाते संग गम के आँसू
कभी मुस्कान समाया करता था

प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 
~सलाम टेलीग्राम~

सेम्यूल मोर्श की सोच ने विश्व को दी थी ये नई सौगात
दूर संचार में हुई क्रांति, जब टेलीग्राम का हुआ अविष्कार
२४ मई १८४४ को पहला टेलीग्राम वासिंगटन से बाल्टीमोर
संक्षिप्त में हर खबर पहुँचाने का फिर देश में हुआ विस्तार

छुट्टी आना हो, नौकरी मिलना हो या फिर हो कोई भी अवसर
टेलीग्राम से ही मिलता था तुरंत ही खुशी गम का हर समाचार
१६३ साल की संस्कृति को अब सदा के लिए लग गया विराम
इतिहास हुए अब मशीन की वो टूक-टूक-ट्रा, तारबाबू और तारघर

नई तकनीक का आना और फिर उसका यूं हमें विदा कहना
समझा गया हमें, जिन्दगी और रिश्तो का भी हाल यही होगा
चला गया उसे जाना था 'प्रतिबिंब', नई सोच को स्थान दे गया
अब म्यूजियम की शान बनेगा, टेलीग्राम तू हमें सदा याद रहेगा



नैनी ग्रोवर 
क्या ज़माना था,
बड़ जाती थी धड़कन दिल की,
जब आता था तार,

इक्कठा हो जाता था,
सारा मौहल्ला, जब आता था तार,
अरे क्या हुआ,क्या हुआ,
गूंजती थीं आवाज़े,
लगते थे सभी अपने,
जब आता था तार,

अब तो किसी को,
किसी से मतलब ही नहीं,
हर किसी की जेब में,
दो दो मोबाइल पड़े रहते हैं,
अपने ही अपनों से बात करने को,
तरसते रहते हैं,

अब हो गए बेमानी रिश्ते,
खो गए वो संस्कार,
अब नज़र ना आयेगा,
देख बदलती दुनियाँ ने,
रुखसत कर दिया है तार__!! 


सभी रचनाये पूर्व प्रकाशित है फेसबुक के समूह "तस्वीर क्या बोले" में https://www.facebook.com/groups/tasvirkyabole/

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