Friday, August 23, 2013

17 अगस्त 2013 का चित्र और भाव




बालकृष्ण डी ध्यानी 
हम दोनों

अलग अलग हैं
हम दोनों
पर कुछ तो बात है
जो एक साथ हैं
अलग अलग हैं
हम दोनों

जैसे दिन है
ये रात है
दोनों में
कुछ ख़ास है
पर कुछ तो बात है
अलग अलग हैं
हम दोनों

रह भी ना पाते दूर
ना रह पाते पास
चुम्बक सा साथ
दुःख सुख साथ है
पर कुछ तो बात है
अलग अलग हैं
हम दोनों

दो किनारे है हम
एक दूजे के सहारे है हम
बहते जाते हैं साथ साथ
लगते कितने प्यारे हैं
पर कुछ तो बात है
अलग अलग हैं
हम दोनों


जगदीश पांडेय
जिंदगी को बेंच कुछ पल चुरा लाया था मैं
एक तेरे सिवा कुछ भी तो न पाया था मैं

तुम ही तो कहती थी हर घडी ये मुझसे
जिंदगी थी तू मेरी एक तेरा साया था मैं
तेरी पलकों में बसा था मैं ख्वाब बन के
आती थी खयालों में दुल्हन सी सज के
तन्हाँ रातों को कभी सुला न पाया था मैं
जिंदगी थी धूप तेरी तो एक छाया था मैं
एक तेरे सिवा कुछ भी तो न पाया था मैं

आज मेरी मंजिल से क्यों तुम बहक गये
तुम्हारे बहकनें से आज आँसू छलक गये
जा रही थी जिंदगी जब मुह मोड कर
तोड कर सारे रिश्ते मौत से जोड कर
गुमसुम सी खडी थी तुम भी उस वक्त
फिर न आनें को गया जब मैं छोड कर
मुश्किल से उस वक्त सम्हँल पाया था मैं
एक तेरे सिवा कुछ भी तो न पाया था मै


Jayvardhan Kandpal 
आज हूँ तुम्हारे साथ, रूठकर क्या पाओगे.
नजर के सामने हूँ,फेरकर नजर क्या पाओगे.

बहुत छोटी है जिंदगी अपने हिस्से की
इस जिन्दगी से इस कदर खेलकर क्या पाओगे.

नहीं है आस्मां पर हुकूमत, जमीं का बाशिंदा हूँ,
मेरे जज्बातों को हवा में उछालकर क्या पाओगे.

फूलों की चाह है, काँटों का भी डर नहीं मगर
गुलशन प्यार का तितर बितर कर क्या पाओगे.

मजबूरियां ना बयां करो मुझसे मजबूरी में,
इस तरह मेरे कलेजे को निकाल कर क्या पाओगे.


भगवान सिंह जयाड़ा 
यूँ खपा हो कर मुझ से,तुम कुछ न पावोगे ,
बेबजह की बातों से,दिल अपना जलावोगे ,

गलत फहमियाँ ,क्यूँ इस तरह पालते हो ,
क्यों खुद के साथ मेंरा भी दिल जलाते हो ,

कब तक घुट घुट कर ,ए जिंदगी जियेंगे,
बेबजह मन मुटाव अब यूँ कब तक सहेंगे,

आवो बहुत हो गयी अब ,मन की बेरुखियाँ ,
आपस में मिल बांटे ,जिंदगी की खुशियां ,

जिंदगी दो दिन की है ,इसे ख़ुशी से जी लो ,
नफ़रत के गुस्से को ,पानी समझ के पीलो ,

यूँ खपा हो कर मुझ से तुम कुछ न पावोगे ,
बेबजह की बातों से दिल अपना जलावोगे ,


प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 
क्यों?
प्यार क्यों ये रुसवा हो गया
चले थे साथ आज क्यों दूर हो गए
बात से ही बात बनती थी अपनी
उन लम्हों से आज क्यों दूर हो गए
खामोशियों की भीड़ है यहाँ
बातो के सिलसिले आज क्यों टूट गए
चलते थे थाम कर हाथ जहाँ
हाथो के ये बंधन आज क्यों छूट गए
दिलो में बगिया सी संवरती थी
हर फूल आज क्यों पतझड़ से झड गए
वादा था साथ ख़्वाब सजाने का
भूल कर वादा, ख़्वाब आज क्यों टूट गए


अलका गुप्ता 
तुम जो बदल गए हो |
हर समां बदल गया है |
आँखों को जब तुम्हारी ..
हम पर नहीं ऐतवार ..
आइना हम क्यूँ देखें |
दिल कैसे सहेगा बेचारा ..?
सब कुछ तो वही है ..शहर में |
साया थे हम ..इक-दूजे का |
तुम ही बदल गए हो |
बदलने से तुम्हारे ..
बदला ये जहाँ... सारा ||
गर..नहीं....तो लौटा दे !!!
वह हमारा ...प्यार.. !
वह उल्लास कहाँ है ?
वह हास ..मधुमास कहाँ है ?
स्पर्शों का मादक ...
वह ..अहसास कहाँ है ?
मिलने को हमसे ...दिल तुम्हारा |
बेताब ..बेकरार..कहाँ है ?
सब कुछ है...शहर में ..वही
मगर...वह ..!!
मौसम-ए- बहार कहाँ है |
तुम जो बदल गए हो ?
जिन्दगी की राह में ..!
आसान अब वह कहाँ हैं ..?
गुम हो गई हैं मंजिलें !!
जलाए थे हमने तो ..
हर तरफ ..दिए ..मुहब्बतों के |
तुम जो बदल गए हो |
वह मेरा यार कहाँ है ?
यूँ ही हम ..रह गए हैं राहों में ..
दिल ये ..जलाते हुए ..
यादों की शेष अंगारों में |
राख अरमानों की ..समेटे हुए |
तू जो बदल गए हो ..|
हर समां बदल गया है |
साया हर ...कोई ..हमसे
जुदा -जुदा हो गया ||


किरण आर्य 
तुमने कहा प्यार मुझे तुमसे
मैं भीग उठी मीठे अहसासों में
सपने रुपहले लगी बुनने
कदम आसमां लगे छूने
नयनों में लहराने लगे
लाल रक्तिम डोरे
प्रेम की पीग बढ़ाती मैं
विचरने लगी चांदनी से
नहाई रातों में
भोर की पहली किरण सी
चमकने लगी देह
प्रेम तुम्हारा ओढ़ने बिछाने लगी मैं
जीवन हो गया सुवासित
होने लगा उससे प्यार
फिर यथार्थ का कठोर धरातल
कैक्टस सी जमीं
लहुलुहान होते सपने
पर सुकूं तू हाथ थामे था खडा
वक़्त के निर्मम थपेड़े
उनकी मार देह और आत्मा पर
निशां छोडती अमिट से
मरहम सा सपर्श तेरा
रूह को देता था क़रार
फिर एक दिन तुमने कहा
मुक्ति दे दो मुझे
नहीं मिला सकता
कदम से कदम
नहीं बन सकता अब
हमकदम हमसफ़र तेरा
मुश्किल थे वो पल
दुरूह से मेरे लिए
तुम्हारे दूर जाने की सोच ही
दहला देती थी हृदय को
मैंने देखी बेचैनी
तुम्हारी आँखों में
तड़पती मछली सी कसक
और उसी क्षण मुठ्ठी से
फिसलती रेत सा
कर दिया था आज़ाद तुम्हे
तुम दूर होते गए
और फिर हो ओझल
निगाहों से मेरी
आज जब याद करती तुम्हे
एक परछाई सी नज़र आती है बस
हाँ अहसास जीवंत से है अब
साथ मेरे जिन्होंने जीना सिखाया मुझे .........


सभी रचनाये पूर्व प्रकाशित है फेसबुक के समूह "तस्वीर क्या बोले" में https://www.facebook.com/groups/tasvirkyabole/

2 comments:

  1. सभी रचनाएँ अच्छो , जय वर्धन जी की ग़ज़ल , आज हूँ तुम्हारे साथ रूठ कर क्या पाओगे
    अच्छी ग़ज़ल , मन को छू गई ।
    सभी रचनाकरों की रचनाएँ भी बहुत अच्छी हैं । बहुत बहुत बधाई सभी को ।

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    Replies
    1. बहुत बहुत धन्यवाद anupama जी

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