भाव चित्र पर लेकिन हास्य रस के साथ .
प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
~भूत प्रेम का ~
प्रेम का भूत जो चढ़ा, लाख जतन किये ये उतारे न उतरे
भूला अब नाम प्रभु का, नाम प्रियतमा का बस दिल पुकारे
कल तक चंदा मेरा मामा था, आज वो चंदा सी दिखती है
कल तक सब मेरे अपने थे, अब सपनो में भी वो दिखती है
रोग इश्क लगा बैठा हूँ, शृंगार रस की हर उपमा उसे देता हूँ
रात दिन उसका ख्याल करू, ऐसा मैं अब हर दिन जीता हूँ
‘प्रतिबिम्ब’ इशक के भवसागर में, मैं डुबकी रोज लगाता हूँ
हो जाऊं तृप्त उसके दर्शन से, ऐसा जतन मैं रोज करता हूँ
ले जा समुद्र किनारे, मैं प्रकृति से उसकी तुलना करता हूँ
होश आते ही संभल जाता हूँ, क्योंकि बीबी से अपनी डरता हूँ
नैनी ग्रोवर
~सपना है या अपना~
इक चाँद माँगा था हमने, ये मुए चार कहाँ से आये ?
धरती तो धानी थी मेरी, अब नीली नज़र क्यों आये ?
अब भी ना समझे तुम दोस्त मेरे ये सब क्यों हो रहा है
आशिकी का भूत है ये तो ज़ालिम हम पर हावी हो रहा है
चार चार चाँद और ये काले कोवे भी अब निकल आये
तेरे प्यारे प्यारे चेहरे पर जयूँ पिम्पल हो उभर आये
ये कैसा सपना है तौबा, धरती नज़र आ रही नीली
लगता है भांग आज कुछ जरुरत से ज़्यादा ही पीली ..
बाँवरे साजन ने आज फुर्सत में कुछ यूँ जलवा दिखाया
दिखे हरा लाल पीला नीला, मुझे कुछ समझ ना आया
आड़ी तिरछी गर्दन करके हमने हर रंग है यहाँ निहारा
तौबा तौबा करते करते आज का दिन तुम संग गुज़ारा..
भूल कर अब अगर कभी तू लाया मुझे इस गार्डन में
याद रहे सौ सौ पोछे लगवाउंगी तुझसे अपने आँगन में..
ये सब्ज़ बाग़ रहने दे मुए हक़ीक़त से तू अब सौदा कर
चार चाँद क्या चार कोवे क्या चाहे बिल्लियाँ तक पैदा कर ..!!
कुसुम शर्मा
~प्यार का बुखार~
अरे दोस्तों अब क्या तुम्हे बताये
कैसे चढ़ा हम पर प्यार का बुखार
प्यार जैसे रोटी सब्ज़ी हो गई यार
बिन खाए रह नही पाता ऐसा अचार
जब चढ़ा था हमपर प्यार का बुखार
तो छाने लगा था उसका ही खुमार
धीरे धीरे समय भी था गुज़रने लगा
ख़ुमार उसका जुखाम मे बदलने लगा
हर बात पर उनको कहना पड़ता यार
हमको तो बस केवल तुमसे ही प्यार
अब क्या बताये हम तुमको मेरे यार
आलू गोभी पराँठा सा हो गया प्यार
वो कहती है और हम सुनते जाते
उनकी हाँ मे हाँ अब हम भरते जाते
अच्छा होता बोलते यंत्र से करते प्यार
न होती हाँ ना, न होती कोई तकरार
एक दिन उनसे हो गई हमारी तकरार
बोली कितना करते हो तुम हमसे प्यार
हम भी कुछ प्यार के ताव में आ गए
कहा बोलो कैसे करू मैं इसका इज़हार
बोली तुम आसमान से तारे ला सकते हो
हम बोले कैसे लाऊं, न सेल न लूट मची है
नही ला सकते मतलब हमसे नही तुम्हे प्यार
क्यों दिखावा करते, करते क्यों झूठा इज़हार
करते प्यार तो मेरे लिए रांझा मजनू बन जाते
तारे क्या सूरज चाँद भी तुम तोड़ कर ले आते
हम बोले राँझा मजनू जान गँवा बैठे करके प्यार
हम तो जिन्दा रहकर करना चाहते तुमसे प्यार
चंद्रमुखी अब ज्वालामुखी बन फटने लगी यार
बोली क्या सोच कर तुमने किया हमसे प्यार
हमने कहा प्रिये होना था हो गया तुमसे प्यार
करो न बहस रानी, मत बनाओ प्यार का अचार
Kiran Srivastava
~सपना~
ये कौन सी है दुनियाँ
कैसे हैं ये नजारे
ये चाँद और ये सूरज
ये दिन में दिखते तारे
उड़ते हुये परिन्दे
अपनी ही ओर भागे
एक हूर सी परी थी
मैं हाथ उसका थामें
खुश हो रहा बहुत था
सब देखकर नजारे
इतने में एक धमाका
तंद्रा को तोड़ जाये
आये नही समझ में
ये बम कहाँ से आये
जब ख्वाब मेरा टूटा
एहसास तब हुआ
दरवाजे पे खड़ी
पत्नी मेरी चिल्लाये
जब आँख मैंने खोली
नजरे घड़ी पे डाली
मैं दुम दबा के भागा
वो पीछे-पीछे भागी
आँखे तरेर बोली
हरकत तुम्हारी ऐसे
मूंगेरी लाल हो जैसे...!!
भगवान सिंह जयाड़ा
---ख्वाबों की दुनियां---
ख्वाबों की तेरी दुनियां को रंग बदलते देखा,
दो-दो चाँद को भी आज हमने निकलते देखा,
क्या हो गया जो धरती हो गई सारी नीली,
धरती ने क्या समुन्दर की स्याही सारी पीली
तेर इश्क में हुए अंधे, बादल बने हंस का जोड़ा ,
मंडराते हुए काले कौवों ने फिर भ्रम मेरा तोडा
उल्टा पुल्टा यहाँ दिखता, बैंगनी हुए क्यों बादल
पेड़-पौधे का रँग देख गुलाबी, हम हो गए घायल
साथ खड़े होकर तुमने कैसा सब्ज बाग़ दिखाया
मोहब्बत के आशियाने को भुतहा बंगला बनाया
प्यार ने आज हमें फिर सावन का अँधा बनाया
लगता है मेरे ही ख्वाबो ने मुझे यूं उल्लू बनाया
चल ख्वाबो से निकल कर हकीकत से मिल जाए
अपनी दुनियां की हम, सुपर हिट जोड़ी बन जाए
मीनाक्षी कपूर मीनू
~बुनते ख्वाबों की उधड़ी सूरत~
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आज हमारे ख्यालों में
यूँ बन ठन के वो आये .....
क़ि रोटी बनाते बनाते
हम प्यार से मुस्कुराये ..
ख्वाब था सुहावना बड़ा
परियों सा जगमगाये .. .
वो भी थे सूट बूट में
सजे संवरे ...सकपकाये
बादलों से खेल रहे थे
काग प्यारे .. प्यारे ...
यूँ लगा ज्यूँ निहार हमें
वो भी पकड़ने लगे थे तारे
हाथ थाम हम चलें यूँ
ज्यूँ पंख हमारे निकल आये
अब करेंगे चाँद की सवारी
ये सोच के हम पग बढ़ाये
पग बढ़ाते ही ..यकायक
ये नाक सिंकोड़ते आये
बोले .......ओ भागवान
रोटी जल गयी ....
धुंए के बादल लहलहाए
उफ़ ...खुली बन्द पलकें
अब नज़र कुछ न आये
मनस्वी ... काले धुएँ से
दीवार पे थे काग बनाये
अब ......सूट बूट वाले
नज़र मुझे धोती में आये
बोले ...जा हुलिया बदल
कहीं बच्चे न डर जाएँ
( भागवान = पत्नी )
बालकृष्ण डी ध्यानी
~सपना कब टूटा~
इस चित्र को देख कर भाव मेरे जगे है ऐसे
कोरे कागज पे लिखा पर ना दिखा सका वैसे
कहाँ से लेकर आये चित्र पर आप ये नर नारी
हम तो ठहरे भाई बचपन से ही बाल ब्रह्मचारी
शत प्रतिशत सुखी जीवन की लगती ये बीमारी
ये चन्द्र ग्रहण क्यों कर चढ़ा जोबन पर हमारी
क्यों ये रंग बिरंगी रंगों से घिरा है आसमान
क्यो ये रह रह कर कर रहा है मुझे परेशान
पकड़ हाथ नारी का वो नर क्यों खड़ा है वहां
इस रंगीन धरा ने शायद आज कुछ किया यहाँ
लुभवाना नजारा, छटा सोने की हिरण सी लगी
हनुमान भक्त हूँ,. अब तू ही बचा मुझे बजरंगी
थोड़ा और निहारो तो समझो आज व्रत मेर टूटा
रंगीन जमी और मैं, न जाने ये सपना कब टूटा
प्रभा मित्तल
~~किस्सा रोमांस का~~
इक दिन की मैं बात बताऊँ,
देख नजारे मन ही मन मुसकाऊँ
बैंगनी गगन में उड़ते पंछी देख
नीली घास पर खड़ी-खड़ी इतराऊँ
पेड़ों के झुरमु़ट से दो-दो चंदा
लटक-लटक कर झाँक रहे थे
मन के मीत मिल रहे हम ऐसे
कि हाथों में हाथ डालती शरमाऊँ
जुगनू की नीली चमक देख कर
भँवरे की गुंजन सुन-सुन कर
तन - मन मेरा डोल रहा था
कानों में मिश्री सी घोल रहा था
तभी अचानक छींटे पड़ गए
हाथ-पाँव ठण्ड से अकड़ गए
कुछ न समझ बस भुनभुनाऊँ
आँखें अंगार कान सुन्न हो गए
अरी भागवान्,होश में आ
किन सपनों में खोई हो
आज तो बाई नहीं आएगी
जल्दी-जल्दी काम समेटो,
वरना,दफ़्तर को देर हो जाएगी।
चौंक कर ..झटपट उठ बैठी मैं
बदन पर गिर गई छिपकली सी,
टूटी तंद्रा,ओह! ये तो सपना था
पर जैसा भी था अच्छा मीठा था
हँसी आ गई,शोख हुई मन ही मन,
मेरे मन का सपना तो रंगीनी था,चलो
नींद का कुछ हिस्सा तो रूमानी था।
डॉली अग्रवाल
~प्यार से तौबा~
मुंगेरी लाल के सपने सा प्यार
उफ्फ्फ्फ़
जो ना कराये कम है
दिन में चाँद नजर आये
सूरज की तपिश भी
चांदनी का एहसास कराये |
बिन बात के मुस्कुराये
और लोग पागल कह जाए |
चाय के उबाल सा प्यार
आँच तेज़ होते ही बाहर निकल आये |
बाज आये इस प्यार से
जो आँखों से बह जाए |
कुसुम शर्मा
~चाँद की सैर~
हमारा दिन गुज़रता नही कमबख़्त उनके सिवा !
उन्हे आता नही हमे कुछ सुनाने के सिवा !
हमारी जोड़ी जैसे एक अंधा एक कोड़ी !
एक चले बायें तो एक दाये होली !
एक दिन बोले हम चलो चाँद की सैर कर आये !
वह बोली चाँद का क्या बीजा लगवा लाये !
चाँद पर वीजे का काम नही !
सच है ये झूठ तो नही !
सूट बूट मे हम हो गये तैयार !
साथ मे ली छोटी सी कार !
देखा आसमान मे तारे जगमगा रहे थे !
न जाने बहुत से पक्षि वहाँ मँडरा रहे थे !
जैसे ही आगे बड़े देखा बैंगनी रंग !
रंग को देख कर रह गये हम दंग !
सोचा अब होने वाली है हमारी जंग !
कोई तो बताये कहाँ गया आसमान का रंग !
बोली आसमान मे लाये हो या कही ओर !
आसमान ही लाया था न रही ओर
लगता है रंग को उठा कर ले गये चोर !
थोड़े सा आगे बड़े देखे दो दो चंदा मामा !
वह बोली तुम इसमें जाओ मुझको दूसरे मे है जाना !
हम बोले भग्वान जाओ जिसमे भी तुमको है जाना !
देखो जल्दी लोट कर आना,
कल बच्चों को स्कूल भी तो है जाना !!
किरण आर्य
~प्यार का बुखार~
हाय प्रेम की चढ़ी ऐसी खुमारी
इश्क मोहब्बत है बुरी बीमारी
खाज-खुजली सी सबको सताए
जीव जंतु बेचारा तडपत है हाय
जालिम लोशन सा बन जावे कोई
बेकल भई अँखियाँ जागे या सोई
प्रेम लगन की अग्नि है अब दहकी
रामलाल की मन कुटिया महकी
करना प्रेम है ये जिद मन ठानी
मूरख कहे कोई चाहे इसे मनमानी
प्रेम बिना ये जीवन है सारा बेकार
प्रेम स्वप्न करना है अब साकार
सपन सलोने करे मन में विचार
साथ में हो एक खूबसूरत सी नार
येसा करूँ या वैसा करू मैं प्यार
अपनी दुनिया का मैं बन राजकुमार
इसी सोच बीच राह देखि एक नार
किया रामलाल ने किया झट इकरार
जूते चप्पलों के जब मिले उसे उपहार
प्रेम का सर से उतरा वो तेज बुखार
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