बालकृष्ण डी ध्यानी
मन धुनी रमा
मन धुनी रमा मन धुनी रमा..२
मेरे प्रभु श्री राम की मन धुनी रमा
बुद्धि विचारों के द्वंद में फंसा मानस तेरा लक्ष्य है
आँखों को बंद करले दो पल ध्यान में खोजा राम की
मन धुनी रमा मन धुनी रमा..२
मेरे प्रभु श्री राम की मन धुनी रमा
प्रभु मेरे दौड़े आयेंगे मन तेरे मुस्कुरायेंगे
चिंता परेशानी तेरे वो तज और हर जायेंगे जय बोलो श्री राम की
मन धुनी रमा मन धुनी रमा..२
मेरे प्रभु श्री राम की मन धुनी रमा
देख कितना निर्मल तन है मुख मंडल ये मेरा मन है
इस मुख बसा प्रकाश मेरे प्रभु का वो तेज है
मन धुनी रमा मन धुनी रमा..२
मेरे प्रभु श्री राम की मन धुनी रमा
पलट देंगे तेरी कया जो पड़ी होगी तुझ पर बुरी छाया
सच्चे मन दो हाथों को जोड़कर एक बार शरण तो आज मेरे राम की
मन धुनी रमा मन धुनी रमा..२
मेरे प्रभु श्री राम की मन धुनी रमा
दीपक अरोड़ा
मेरे प्रभु दिखते हैं, जब होती हैं बंद आंखें
बस राम राम रटता रहूं जब तक दी हैं प्रभु ने सांसें
उनका ही ध्यान धरूं.. उनकी ही पूजा में मग्न रहूं..
उनका ही गुणगान करूं.. सदा उनकी करता रहूं बातें..
जय श्री राम.. जय हो गुरू जी.
अलका गुप्ता
गांधी जी के बंदर थे तीन |
दो तो धुनी रमा कर बैठे लीन |
एक को जमा राजनीति का खेल |
राम नाम का पीताम्बर डाल |
राज-घाट पर बैठा मौन |
नेताओं की भीड़ जुटी |
आमन्त्रण का चारा डाला |
आमने सामने जमा अखाड़ा |
बन्दर जी ने थी दुनिया देखी |
इतने जल्दी नहीं पिघलने वाले |
मन में थी अलग पार्टी बना लें |
जनता पर जो चढा है जादू |
आज जम कर आजादी के बाद भुना ले ||
आनंद कुनियाल
सोचता हूँ आज अपने इन वंशजों को आजमा ही लूँ
पूर्वजों की खिल्ली उड़ाने में माहिर इन्हें जतला ही दूं
मुझे देख इनके शातिर दिमाग में
बिछी बाज़ी से तीन पत्ते खिंच लूँ
अपने को सृष्टि का सबसे काबिल
समझने वाले की सोच जरा परख लूँ
पहला पत्ता..
देखो साधू के भेष में शैतान बंदर
जाने क्या चल रहा इसके अंदर
मुझे बरगलाने राम धुन है रमेगा
मौका देख झपट हाथों का छीनेगा... मैं तो बहुत चालाक आदमी हूँ
दूसरा पत्ता..
अरे यह क्या देखता हूँ मैं भी गज़ब
कैसी ये प्रभु राम की लीला अजब
मैंने तो अमूल्य जन्म यूँ ही गंवाया
धन्य हे कपिल जो जीवन सधाया... मैं तो निपट मूरख प्राणी हूँ
तीसरा पत्ता..
इसे कौन भला क्यों ये सिखलाता है
या फिर देख हमें ये भी आजमाता है
एक पल ठहर ऐ बंदे झाँक जरा भीतर
कौन उत्पाती मानुष कौन सरल बंदर... मैं तो ठहरा अब भी अज्ञानी हूँ
नैनी ग्रोवर
पहन के भगवा चोला, क्या-क्या खेल रचाते हैं,
भोले-भाले लोगों को, ये ढोंगी बाबा, बरगलाते हैं..
जो मन से हो साधू, उसे ज़रुरत नहीं आडम्बर की,
और जो सच्चे संत हैं, दूरदर्शन से दूर ही रहते हैं ...
विशवास करो अच्छे कर्मों पर, करुना हर प्राणी पे रखो,
उनके पीछे मत भागो, जो माइक पे शोर मचाते हैं ...
यही समझाने तो बदल के मैं यह, भेस आया हूँ,
मैं पवनपुत्र हनुमान, मुझे तो बस राम ही भाते हैं ...!!
Bahukhandi Nautiyal Rameshwari
सबहूँ गुणीजन संतो को मेरा प्रणाम ..
केसरिया चोला, ओढ़ करूँ, राम राम ..
स्वार्थ के लिए, बेचते जो अपने भगवान् ..
ऐसे स्वार्थियों से, मैं भला वानर निष्काम ..
भगवा मेरा चोला, भगवा मेरे अंतरयामी ..
खोजने सिये माता, गदा थी मैंने थामी ..
कलजुग भया, संतन को भोज कोई पूछे नाहीं ..
धन दौलत की चाह रखे, ढोंगी नामी गिरामी ..
इसीलिए देख इंसान, मैं जागे नयन मूंदुं ...
इस स्वार्थी जगत में, सच्चा मानुष कहाँ ढूँढूँ ...
नाक, कान, जिह्वा, बंद कर गए देखो कैसे बापू गांधी ..
शायद भांप गए थे वो, लाएगा भविष्य, स्वार्थ की आंधी ॥॥॥।
Pushpa Tripathi
- मन ध्यान रमाया ...
मन का ध्यान
तन से मानव
मिला अहोभाग्य
मानव प्राणी
तन है नश्वर
क्यूँ भरता दंभ
मिट्टी भस्म
हो जाए प्राणी
मानव है रूप
तन बजरंगी जैसा
भगवा है वस्त्र
ज्ञानी है प्राणी
प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
मेरी वेश भूषा देखकर न मेरा तिरस्कार करना
न तुम मुझे सन्यासी समझ मेरा परिहास करना
जिसे तुम भूल रहे हो वो याद दिलाने आया हूँ
मैं बस इंसान में बसे इंसान को जगाने आया हूँ
मन कर्तव्य से साधू बनो, न तुम इसका ढोंग करो
प्रेम भाव का प्रसार कर, सत विचार का ध्यान करो
बनकर संरक्षक तुम अपनी संस्कृति और संस्कार के
शिक्षा को घर घर पहुंचाओ बिना किसी भेद भाव के
है गर सामर्थ्य संग सवेंदना तो दुखियो का दर्द दूर करना
स्वार्थ का चस्मा उतार, सबका तुम मान - सम्मान करना
भगवान सिंह जयाड़ा
मानुष ने छोड़ा धर्म कर्म ,
बनमानुष ने ओडा चोला ,
प्रभु ध्यान में रमा मन ,
प्रभु को समर्पित यह तन ,
सबक ले लो सब मुझ से ,
यह सन्देश सब को बोला ,
ज्ञान ध्यान न छोडो अपना ,
देखू मैं सदा प्रभु का सपना ,
तन मन प्रभु को समर्पित ,
अब न हो यह फिर भर्मित ,
दिल कुछ ऐसा मेरा बोला ,
मानुष ने छोड़ा धर्म कर्म ,
बनमानुष ने ओडा चोला ,
कौशल उप्रेती
धन्य है इस देश का वरदान
जहाँ होता हर किसी का मान
साधू -संतो कि संगत से जहाँ
बनमानुष भी बन जाता इंसान
सुनीता शर्मा
जीवन की टेढ़ी मेढ़ी पगडंडी ,
सत्संग और संस्कारों से निभती ,
संतों की कुशल परख वाणी ,
मृगत्रिश्नाओ के भवर से हमे बचाती !
फरेबियों व् पाखंडी से भरा संसार ,
भगवा चोला धारण क़र रहे अत्याचार ,
हनुमान का सा रूप धर करते प्रहार ,
संत रूपी माणिक ही करेंगे सदा उद्धार !
भगवा चोले के आडम्बर से बचना होगा ,
देख परख कर निज संत चुनना होगा ,
दुआओं में असर जिनके उनसे जुड़ना होगा ,
भेड़ चलन से बचकर अपना मार्ग ढूंढना होगा !
किरण आर्य
देख भगवा की दुर्दशा आज
इसने भी भगवा धारण है किया
साधू संतो की पावन धरा ये अपनी
क्षद्म धारियों ने इसे कलंकित किया
धर्म आडम्बरो की बिसात पर
क्ष्रद्धा एवं विश्वास को छलते है
हाय संस्कृति और संस्कारों के
नाम पर माँ को शर्मिंदा करते है
इन्हें ये पाठ पढ़ाने आया है
भगवा का सही अर्थ समझाने आया है
तन के साधू ना बनो मन से कर सत्कर्म
साधुता यहीं है सच्ची ये जतलाने आया है
डॉ. सरोज गुप्ता
मेरे रूप पर न जाओ ओ मतवालों !
मेरा दिल तो पढ़ लो ओ दिलवालों !!
मुखौटे पहने हुए हैं सब ,हैं ये इच्छाधारी ,
थोड़ा सा आकाश मुझे भी दे दो ओ छतवालों !
रोज उड़ाते हलवा पूरी फिर भी पेट तुम्हारे उघडे ,
दाल-रोटी की आग ने किया मुझे नंगा ओ पेटवालों !
आब नही,आबकार नहीं,रिश्तों को किया तारतार,
मैली कर दीनी उजली कबीरा चादर ओ इज्जतवालों !
सभी रचनाये पूर्व प्रकाशित है फेसबुक के समूह "तस्वीर क्या बोले" में https://www.facebook.com/groups/tasvirkyabole/
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