- राह चले ...
चलना है साथ
हर कदम एक साथ
ग़मों के खारे पानी से
गुजरते हुए ..अपनों के साथ l
न लढ़खड़ाये कदम
कोई छोटी हो बात
द्वीप हो या महासागर
हम तैर चलेंगे पार l
जीवन छोटी है
हौसले बड़े
उम्मीदों के अथाह लहरों पर
हम सजक .. साहसी अड़े रहेंगे
दीपक अरोड़ा
अकेले हैं,
तो क्या गम है...
राह है, रहवर हैं,
मंजिल पा ही लेंगे...
नैनी ग्रोवर
चल थाम के हाथ, कहीं बहुत दूर चले,
जहाँ बस, उसकी कुदरत का नूर ही नूर चले..
उजाड़ डालेगा, हमारा घर-परिवार भी,
जब जब इस इंसान का, घिनौना फतूर चले..
खुद को ही लूट रहा, दीवानेपन की हद्द देखो,
कैसे समझेगा ये, अभी मन में इसके गरूर चले..
हम तो मिट जाएंगे, इस ज़मीं से, ऐ खुदा,
देखें तेरा ये बन्दा, कब तक धरती पे हजूर चले...!!
बालकृष्ण डी ध्यानी
हर पग चले
हर पग चले अब यूँ साथ साथ
रहना हमे अब यूँ साथ साथ
हो रहा है हल्का प्यार का अहसास
हर पग चले ......
रेत पर चलते यूँ हाथ पकड़ना तेरा
देता है दिल को दिलासा तू साथ साथ
हो रहा है हल्का प्यार का अहसास
हर पग चले ......
लहरों की हलचल बड़ती है प्रेम पल पल
बीते ना ये एक पल भी अब बिना तेरे साथ
हो रहा है हल्का प्यार का अहसास
हर पग चले ......
परछाईयों की मिलन की निकली है बारात
सजना हम संग यूँ ही रहेंगे एक दूजे के पास
हो रहा है हल्का प्यार का अहसास
हर पग चले ......
हर पग चले अब यूँ साथ साथ
रहना हमे अब यूँ साथ साथ
हो रहा है हल्का प्यार का अहसास
हर पग चले ......
Pushpa Tripathi
- जीवन सफ़र ...
जीवन में साथ चलना है प्यार
झूठे तू तकरार में होता है प्यार ..
खट्टे मिट्ठे कभी कडवे सच सा है स्वाद
जिंदगी के हर रिश्तों में बंटता है प्यार
किरण आर्य
साथ निभाने भर को ना साथ चल
हमसाया बन मेरा मेरे साथ चल
निभाना हो सकता है उबाऊ भी
निभाने में गलतियों की गुंजाईश बड़ी
रुक जाती है जिंदगी आवाक सी खड़ी
साथ निभाने भर को ना साथ चल
हमसाया बन मेरा मेरे साथ चल
चल हमसफ़र राह में हाथ थाम मेरा
तुझमे विलीन हो पा जाऊ वजूद मेरा
साथ निभाने भर को ना साथ चल
हमसाया बन मेरा मेरे साथ चल
साथ चलने में ही है निर्वाह की कूवत
राह की रूकावटे सहज नहीं दुरूह बहुत
साथ चलना ताउम्र तेरा है मेरी ताक़त
साथ निभाने भर को ना साथ चल
हमसाया बन मेरा मेरे साथ चल
साथ चलना तेरे है ना मजबूरी मेरी
प्रेम तुझसे है किया ये इल्तिजा मेरी
साथ निभाने भर को ना साथ चल
हमसाया बन मेरा मेरे साथ चल
अरुणा सक्सेना
दुनिया हमको बहुत सताए
तरस ज़रा ना हम पर आये
आओ अब हम दूर चलेंगे
कहीं दूर अब हम घर लेंगे
हाथ थाम अब साथ चले हम
मंजिल पाकर ही लेंगे दम
किरण आर्य
साथ तेरा मेरा चंद कदमो का क्यों रहे
उम्र भर का नाता चिरायु आजीवन रहे
सिर्फ निर्वाह के लिए साथ क्यों हम रहे
चले हमकदम बन हमसाया से हम रहे
तू दीये और बाती सा तेरा मेरा साथ रहे
बहती नदी के मानिंद संग हम चलते रहे
सिर्फ निर्वाह के लिए साथ क्यों हम रहे
चले हमकदम बन हमसाया से हम रहे
ना कस्तूरी सी प्यास हो हमारे दरमियाँ
अहसासों में भी रवां एक दूजे के हम रहे
सिर्फ निर्वाह के लिए साथ क्यों हम रहे
चले हमकदम बन हमसाया से हम रहे
Pushpa Tripathi
- लगन लगी
मेरा आधार है तुम्हारा साथ
पल को जन्दगी तुम्हारे साथ ...
मन के ह्रदय पलट पर तुम
रहती खुशियाँ तुम्हारे साथ ...
भोर हो या रात .. सब दिन समान
साँसों की डोर तुम्हारे साथ ...
पाकर तुम्हारे स्नेह रस में
पग पग निखरूं तुम्हारे साथ ....
आनंद से हुई मन बावली
तन मन धन वारूं तुम्हारे साथ
प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
मुझे तो आज देखना है
उम्र को किसने देखा है
तेरा यूँ मेरे साथ चलने से
हर राह आसन लगती है
हाथों में तेरा हाथ हो
हर मोड़ पर तेरा साथ हो
मन मंदिर में प्रेम का वास हो
तेरी साँस संग मेरी साँस हो
एक दूजे को सुनना समझना है
हर ख़्वाब को हकीकत बनाना है
इस प्यार को अहसास बनाना है
हर अहसास को खास बनाना है
सुनीता शर्मा
प्रेम के परिंदे कितने सुंदर होते
निस्स्वार्थ की दुनिया में मग्न रहते
दोस्ती का ये हर फ़र्ज़ निभाते
जीवन जीने की प्रेरणा सबको देते !
कोमल होते है ये परिंदे
लहरों में आशियाना
सुख दुःख से अछूते
शालीनता के परिचायक
साथ चलते एक दूजे के
नर नारी का भेद मिटाते
अमन चैन का प्रतीक बनके
देखो हम सभी को खूब लुभाते
तन के काले पर मन से उजले है
अंटार्टिका के कुशल वकील हैं
वात्सल्य समुद्र इनका संसार है
जग में कायम अब भी प्यार है
अलका गुप्ता
चलें साथिया कदम से कदम मिलाकर हम |
खारे समुन्दर या दुनिया के हर छोर पे हम |
मिले जो साथ तुम्हारा संवरे ये जीवन हमारा
मंजिले हर गम आसन बना लेंगे मिलके हम ||
डॉ. सरोज गुप्ता
चल उठा पग
बुला रहा जग
टेढा-मेढा मग
मग पग जग
जग पग मग
पग पग ठग
ठग ठग ठग
जग जग जग !
हर पल छिन
छिन छिन छिन
लहरें उठती
लहरें भिगोती
लहरें चूमती
नहीं रुकती
हमें छुएं बिन
बिन बिन बिन !
हम दोनों मिल
बना एक झील
मिला दो दिल
दिल दिल दिल
ठोंक देंगे कील
खा न पाए चील
रख न पाए तिल
तिल तिल तिल !
भगवान सिंह जयाड़ा
मैं हूँ नाजुक एक पेंग्विन ,
धुर्बों पर था मेरा बसेरा ,
मैं हूँ बर्फ पर चलने वाली ,
रेत पर अब चलना सीखूं
बर्फ पिघल रही धुर्बों पर ,
सायद कल रेत ही हो जाए ,
अस्तित्वा अपना बचाने ,
पहले ही कुछ दुःख उठा लें ,
कष्ट तो बहुत हो रहा हमें ,
पर कल की चिंता सताए ,
नहीं मिलेगी बर्फ चलने को ,
तब हम क्या कर पायेंगे ,
इस लिए परिस्थिति के साथ ,
तब हम दुःख कम उठाएंगे ,
इन्शान की भूल का खामियाजा ,
अब हमें हर पल पल संताए ,
मैं हूँ बर्फ पर चलने वाली ,
रेत पर अब चलना सीखूं ,
Govind Prasad Bahuguna
जीवनपथ केहम दो राही
संग चले मन मुस्काई I I
मुक्त हुए हम सब बंधन से
जात पांत के हर क्रंदन से I I
सभी रचनाये पूर्व प्रकाशित है फेसबुक के समूह "तस्वीर क्या बोले" में https://www.facebook.com/groups/tasvirkyabole/
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