नैनी ग्रोवर
मैं हूँ गजराज, जंगल का ताज,
मस्ती मैं झूमूँ, मुझसे डरे वनराज,
देखो कितना प्यारा हूँ मैं,
सबकी आँख का तारा हूँ मैं,
मगर लालच इन्सान के अन्दर है,
जिसकी सदा गिरती है मुझे गाज ..
मैं हूँ गजराज ...
मुझ बेकसूर की लेता है जान,
फिर करता अपने खूब बखान,
तोड़ के मेरे प्यारे-प्यारे दांत,
दे रहा हमारे खात्मे को आवाज़..
मैं हूँ गजराज ...
आनंद कुनियाल
ह्रदय की गहराईयों से सारी उम्र का तुझे प्यार मिले
जहाँ पराये अपनों से भी ज्यादा दुलारें वह संसार मिले
जितना हमारे हिस्से में आया उससे बेहतर संसार मिले
बाबुल की दुआएं लेती जा जा तुझको सुखी संसार मिले..
किरण आर्य
साथ ये तेरा मेरा
शीश नवाए खड़े तुम
और मेरा सर पर हाथ
मानुष नहीं है हम तुम
जो निज में सजोये आस
इक दूजे संग है खड़े हम
साझा सुख दुःख अपना
दुःख अपना है विलग कहाँ
मानुष का लालच लील रहा
वजूद अपना है खतरे में पड़ा
विलुप्त ना हो जाए हम सखा
समझो मानुष मर्म जीवन का
जियो और जीने दो सबक बड़ा
आये विपति गहन अंधियारी
मन तू मत घबरा रह अटल खड़ा
नहीं अकेला देख सखा मैं तेरे साथ
तेरे दुःख हरने को आतुर तेरे सर पे हाथ
बालकृष्ण डी ध्यानी
आज मै चूक जात
आज मै चूक जात
तू मुझे नजर ना आता
कंहा कंहा तुझको मै खोजता
भ्राता मेरे तात गले लगा लो
फ़िक्र ना कर ऐसे आज
रब है अब अपने साथ
जंगल मै मचा उत्पात
मानव का भरोष ना अब साथ
लालच का गढ़ हुआ वो आज
स्मृती में हम लगता है अब नजर आयेंगे
एक एक जब लुप्त हो जायेंगे
लालसा की होड़ा में हम भी कब तक बचा पायेंगे
भ्राता मेरे चिंता तज ,हम गणेश के है अवतार
कैसे हम खो जायेंगे मूर्ती रूप बनकर
हर वर्ष आकर धूम मचायेंगे
आज मै चूक जात
तू मुझे नजर ना आता
कंहा कंहा तुझको मै खोजता
डॉ. सरोज गुप्ता .
साथी साथ निभाना
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हाथी था हथिनी संग
जंगल में अकेला
आज देख मौक़ा
बाँट रहा हथिनी से
अपने जज्बात !
साथी रे रे रे !
साथी रे !
है गजगामिनी
निभाना साथ मेरा ,
तू मेरी भामिनी !
पानी भरे
तेरे सामने
दुनिया की
सारी कामिनी !
देख कर तेरे
लटके झटके
चमकना भूल जाए
आकाश की दामिनी !!
साथी रे रे रे !
साथी रे !
तू भूल जा
महावत को
तुझे खिलाउंगा
आज दावत !
सब कहते हैं-
हाथी के दांत
खाने के और
दिखाने के
और होते हैं !
कुत्ते भोंके हजार
हाथी चले अकेला बाजार !
साथी रे रे रे !
साथी रे !
मैं कान्त तेरा रे !
साथ निभाऊंगा ,
जब-जब सर्कस में
लेगी तू हिस्सा !
रह न जाएँ बन कर
हम कहानी का किस्सा !
युद्धों में भी
अब नहीं रही
हमारी उंची शान !
जब उस्ताद
बैठ कर मुझपर
गाया करते थे
रणभेरी के गान !
धनियों ने
बांधे हैं घरों में
सफेद हाथी
वे नहीं है
हमारी जाति के
वे हैं अंधों के हाथी
हाथी घोड़े पालकी
जय भ्रष्टाचारी लाल की !
साथी रे रे रे !
साथी रे !
तूने रखी रे,
शिव-पार्वती की
लाज !
देकर अपनी
कुर्बानी !
बने पशुओं में
अभिमानी !
तुझे पूजे
संग गजानन के
सारे हिन्दुस्तानी !!
सुनीता शर्मा
हाथी का जोड़ा हूँ
जंगल का अभिमान हूँ
जीवन का ह्रदय दर्पण हूँ
करता एक दूजे का सम्मान
देखो सूंड से सूंड जोडकर
भक्ति शक्ति प्रेम संग जोड़कर
ह्रदय के पाटो को जोडकर
भारत का अभिमान बढ़ाता
दिलों में पड़ी दीवार
चारो ओर फैला हाहाकार
इंसानियत कर रही चीत्कार
हमसे सीखो प्रेम का आदर्श
अलका गुप्ता
है धरती युगों से उसका निवास स्थान |
काया विशाल श्यामल चाम खास|
खाने के सिवा दांत दो और हैं......
अति सुन्दर थोड़े कर्व बाहर |
पूंछ छोटी सी खम्भे जैसे पाँव चार |
सूँड लम्बी कान सूप से अति विशाल |
लगे सलोना रूप सुन्दर हिला कपाल |
रहते हैं झुण्ड में होता माता का साम्राज्य |
ममता की मूरत सन्तान निज से अति प्यार |
रखा है इंसान ने भी दे श्रधा पूजा प्यार अपार |
आता है ये इंसान के भी बहु काम काज |
सुनी हैं कहानियां हमने भी उसकी बार-बार |
धैर्य बुद्धि बल वीरता की अपरम्पार |
पसंद हैं गन्ना केला पत्ते अन्य शाकाहार |
मंथर गति ....चाल झूम-झाम |
कवि प्रसिद्ध गज-गामिनी वामा चाल |
है निशाने पर तू लोलूप निगाह निर्बुद्धि प्रकार |
धन के लिए हड्डी मांस दांत का कर व्यापार |
मार कर तम्हे निरपराध सजा रहा अपने ख्वाव |
रोक दो गणपति हे ! उनका विनाश !!!
अनुपम बुद्धिमान डायनासोर वंशज....
मासूम ये सूँडवान |
गज ये हाथी भी हैं.......प्राणी|
धरती पर ....हमारे ही समान ||
Pushpa Tripathi
समय बड़ा बलवान ....
सुबह से शाम
शाम से रात
ऐसे ही जीवन में
आते है पढ़ाव l
समय पर न होता
किसी का वश
राज हो रंक
सब एक समान l
अपने आगे भविष्य खड़ा
आज है हम जहाँ
कल होगा
कोई और खड़ा l
बढ़ते जायेंगे
हर युग युगांतर
पीढ़ी दर पीढ़ी
नव युवाओं को अवसर l
हाथी जैसे है
देह विशाल
थक जाएगा एक दिन
चलते चलते l
देकर आशीष
भावी पीढ़ी को
शुभकामनाओं से
कार्य भार संभाल l
यह रीत पुरानी है
जग हित निराली है
आगे के बाद
पिछले को मौका देना ज़रूरी है
सभी रचनाये पूर्व प्रकाशित है फेसबुक के समूह "तस्वीर क्या बोले" में https://www.facebook.com/groups/tasvirkyabole/
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