दीपक अरोड़ा
रंगों के मौसम से,
थोड़ा रंग चुरा लिया।
कोई न मिला 'अपना' भीड़ में
तो 'परायों' को गले लगा लिया...
प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
हर रंग की रंगत देखी
रंग से रंग बनते देखा
रंग का गरूर उड़ते देखा
एक रंग की थी ख्वाइश
कितने रंगों में तूने रंग डाला
बढ़ा हाथ हर रंग अपना लिया
बस आस इतनी अब बाकी
डोर दोस्ती की न टूटने पाए
प्रेम रंग इस पर चढ़ता जाए
Govind Prasad Bahuguna
ये हाथ संगीन नहीं रंगीन हैं
इन्होने किसी के गालों का स्पर्श किया
किसी के मन की गाँठ को खोल दिया तो
किसी को बंधन में बाँध दिया
किसी को रंग में सराबोर किया
तो किसी को नृत्य में संकेत किया
ये हाथ हैं और हथेलियां भी
कोमल भी हैं और मजबूत भी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देख वो रूठे रंग
देख वो रूठे रंग
पानी में भीग भीग कर ना निकले
रह गये उन हाथों पर
छुट गये उन गालों पर
देख वो रूठे रंग .............
होलीका जल गयी
पर जला ना सका उसका अहम
उड़ा बहुत इधर उधर
फिनकों की तरह कोई ना पकड़ सका
देख वो रूठे रंग .............
परदेश भी गये रूठे रंग
पर वो ना ला सके उनको अपने संग
बस रोयें वो जी भरके आज
चार दिवारी के उस कोने संग
देख वो रूठे रंग .............
सुखा देख रो पड़ा वो रूठे रंग
पानी की ऐसी बौछार हुई
उनके दुखी मन और तन था बस
सार देश था हुआ जलमग्न
देख वो रूठे रंग .............
खुशी में वो तड़का दे गयी
वो रूठे अश्रु और वो रोते नयन
खली होली इस बरस चुभे वो रूठे रंग
मस्ती में भूले जो अपनों को अपने रंग
देख वो रूठे रंग .............
एक रंग के तिलक ने मेरा काम किया
मेर दिल को उसने सौ आराम दिया
देख दर्द अपनो का इस दिल ने महसूस किया
वो रूठा रंग आ संग मेरे मुझ संग हंस दिया
देख वो रूठे रंग .............
नैनी ग्रोवर
कितने रंग मेरे हाथों में हैं, किस्मत मगर बेरंग हुई,
तुम गए दूर घर से, मैं बिरहन तेरी मोरे साजन हुई..
क्या करूँ शिकवा रंगों से, क्या गिला दुनियाँ से करूँ,
मेरी धानी चूनर पड़ गई फीकी, तेरी दुल्हन परचम हुई ...!!
डॉ. सरोज गुप्ता ...
हाथ में लगे हैं रंग
.................................
रेखाएं कभी रहती थी हाथों में ,अब रहते हैं रंगरसिया ,
क्रियाएं कभी करती थी हाथों से,अब रहते हैं रंगरसिया !
सब कहे मुझसे ,देखो उधर बिखरे हैं रंग ,
कौन उधर देखे ,जाने किधर बिखरे हैं रंग !
रंग कभी बिखरे थे चहुँ और,हाथो में अब रहते हैं रंगरसिया !
हाथ में लगे हैं रंग , नहीं धोते है देखो हम ,
साथ में हो जब रंगरसिया,काहे का है फिर गम !
पास कभी रहते थे हाथ में दस बीस,अब बस रहते हैं रंगरसिया !
Govind Prasad Bahuguna
रेखाएं बहुत होती हैं,
लक्ष्मण रेखा ,हस्त रेखा ,
ललाट रेखा, पड़ोस की रेखा
सीमा रेखा, गणित की रेखा
या जीवन रेखा ?
Bahukhandi Nautiyal Rameshwari
लो जहाँ खींचीं थी रेखाएं, खुदा ने तकदीर की मेरी ।
उन हथेलियों में, अब रंग, प्रेम सौहार्द का चढ़ा है ॥
जब भी उठे ये हाथ, भीख को ना समझना मेरे दोस्तों ।
ये भरे हैं प्रेम से, ये आपके आगे, दुआओं के लिए बढ़ा है ॥
लाख पहने हीरे,नगीने, रत्न कोई, मेरे रत्न निराकार ।
इन रंगीन हथेलियों में, आप सभी के प्रेम का नगीना जड़ा है।
अलका गुप्ता
इन हाथों में गुर दिखे लकीरों के रंग भी |
छोड़ विविध छाप अपनी हैरान हैं दंग भी |
रंग-रंग के रंग खिले अंग हास-परिहास में
मचलें दिल दीवाने फागुन की बरसात भी ||
किरण आर्य
रंग जीवन के
विविध और निराले
हाथ मैंने इसमें रंग डाले
हर रंग कहे एक कहानी
कहीं लहू का रंग सुर्ख लाल
कहीं लहू हो गया है पानी
कहीं झूट अँधेरे सा है काला
कहीं झूट सफ़ेद कैसा घोटाला
कहीं सावन के अंधे सी हरियाली
कहीं हरी दूब सी चेहरे की लाली
केसरिया सा खड़ा अडिग हौसला
जैसे हो खुशियों का घोंसला
रंगों का महत्व पहचानो
रंगों से जीवन रंग डालो
रंगों बिन जीवन है रंगहीन
जैसे भटके ख़ुशी की चाह में दीन हीन
सभी रचनाये पूर्व प्रकाशित है फेसबुक के समूह "तस्वीर क्या बोले" में https://www.facebook.com/groups/tasvirkyabole/
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