बालकृष्ण डी ध्यानी
मेरा भारत
पूर्व पश्चिम उत्तर दखन
पुण्यभूमी भारत माँ की महान है
हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई
सर्व धर्म यंहा सद भाव है
सबसे बड़ा लोकतंत्र है ये
एकता ही हमारी पहचान है
भगत सुखदेव राजगुरु क्रांतीकारी
बलिदानों का ये भारत महान है
एक लाठी गांधी की एक दांडी अंहिसा की
चलती अब भी वो भारत के साथ साथ है
एक तरफ हिमला खड़ा
दूजी तरफ हिंद माहासागर फैला विशाल है
प्रांत प्रांत में बोली बदली
भारत रास्ट्र की रास्ट्र भाषा हिंदी ही पहचान है
भारत संस्क्रती का है ये मेला
सुख -दुःख का है ये सांझ सवेरा
अब भी चमक जाती है ये आंखें मेरी
माँ तेरे आंचल में है ये तीन रंग का बसेरा
पूर्व पश्चिम उत्तर दखन
पुण्यभूमी भारत माँ की महान है
हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई
सर्व धर्म यंहा सद भाव है
अलका गुप्ता ...................
यह भारत खंड है अति विशाल जहाँ |
बड़ा है मानव से मानवता संस्कार यहाँ ||
यह है आर्य भूमि !...यह है तपो भूमि |
है उत्तुंग हिमालय की.......शान यहाँ ||
गंगा जमुना नदियों सी तहजीब यहाँ |
है विश्व से आवादी...अति विशाल यहाँ ||
है राम -कृष्ण -बुद्ध ....जैसे देवों की धरती |
वीरों की भूमि भी...वह अति पूजनीय यहाँ ||
फूली-फली है मिलकर....जो तहजीब यहाँ |
खंडित करने की हर कोशिश नाकाम यहाँ ||
ऋषियों-मुनियों का देश है.....यहाँ |
पीर फकीरों का .....परिवेश यहाँ ||
पूजनीय हैं संस्कार...धर्म विभिन्न यहाँ |
माना चढा है....कुछ पश्चिम का मद यहाँ ||
विभिन्नता में एकता की तहजीव पुरानी है |
जाग्रति मिल कर फिर सबको ही लानी है ||
विलक्षण नर-नारी का.... समूह धाम यहाँ |
अद्बुत भव्य कलाओं का उद्गम-उद्दगार यहाँ ||
है खेत-खलियान-किसानों का देश यहाँ |
आज भी विलक्षण प्रतिभाएं बसती हैं यहाँ ||
प्रतिभा की है आज भी विलक्षण धार यहाँ |
विश्व में है आगे रहने की विकट हुंकार यहाँ ||
भगवान सिंह जयाड़ा
यह था पूरा हमारा बृहद भारत अखंड ,
लेकिन अब हो गया यह सब खंड खंड ,
नेपाल,भूटान कटा, कटा अफगानिस्तान ,
लंका,तिब्बत ,ब्रम्मा कटा ,कटा पाकिस्तान ,
करे प्रतिज्ञां सब, अब न यह खंड होने पाए ,
प्राण जाए पर, अखंडता पर आंच न आये ,
भारत माता के गौरब की रक्षा हमें करनी है ,
क्यों कि भारत माता हम सब की जननी है ,
बलदाऊ गोस्वामी
सब देशों से बना महान।
यह है सुन्दर हिन्दुस्तान।।
उत्तर देखो पर्वत राज,दझिण सागर हिन्द विराज।
पुरब सुन्दर वन सिर ताज,पश्चिम अरबी सागर राज।।
कहीं-कहीं नदीया कही पहाड।
वन में लेते सिंह दहाड।।
चाँदी सोने की थान यहाँ पर,लोहे की औजार जहाँ पर।
लाखों खानें बना यहाँ पर,नेकों किस्म के वृझ यहाँ पर।।
किस्म-किस्म के अन्न यहाँ पर।
मिलते ये सब और कहाँ पर।।
कहीं-कहीं शहरों की है भरमार।
गवंई दिखते वे सुमार।।
यहाँ बसे हैं कृषक सरदार।
अन्न उगाते अपरम्पार।।
होता शहरों में व्यापार।
केवल गवंई ही आधार।।
गौ माता का वास यहाँ पर।
रहती केवल घांस के बल पर।।
ताजा वायु का झोंका लेकर।
कहरी कूप के जल को पीकर।।
पुष्ट होता यह शरीर।
कभी न होता जीवन धीर।।
कहीं-कही बगीया होता यहाँ पर।
कुकती कोयल बैठ डाल पर।।
शहरी पाकर रहते दंग।
शीतल हवा का मन्द सुगन्ध।।
होता पंछीयों की यह कार।
गुन-गुन भौरों की गुन्जार।।
रहते खुशी यहाँ के लोग।
कभी न होता यहाँ कोई रोग।।
छोटे-छोटे झोपडियों में,रहते यहाँ के इंसान।
बापु तक को भाया मन में,गवंई जीवन हिन्दुस्तान।।
सूर्यदीप अंकित त्रिपाठी
उत्तर का हिमालय है वंदित,
है दक्षिण तीरथ रामेश्वर !!
करता पूरब जय महा काली,
और पश्छिम बसे है ब्रह्मेश्वर !!
कहीं हरित दुशाला माँ ओढ़े,
कहीं चरण पखारे है सागर !!
कहीं गोद सी कोमल मरू-भूमि,
कहीं पालक-पोषक सरि-सागर !!
नैनी ग्रोवर
ऐ भारत माँ तेरे आँचल में, सृष्टि के सारे रंग बिखरे,
लगती है तू, दुल्हन सी, सर पे हिमालय का मुकुट धरे..
ममता तेरी गंगा-जमुना, हर प्राणी का पोषण है करें,
माटी तेरी है तिलक मेरा, मेरी मांग में इसके रंग भरे .. !!
प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
~मेरा भारत ~
धर्म - कर्म, एकता, प्रेम, आदर - सत्कार
मेरे भारत की शक्ति के ये थे मूल विचार
संस्कृति और संस्कार थी जिसकी धरोहर
दिखता नही हमें आज इनका कोई आधार
अखंड भारत था मेरे इस देश का नाम
आज मानचित्र पर ही ये बस दिखता है
अब तक खंड किये इसके कितने हमने
यह देख दिल आज भी रोता व् तड़पता है
धर्म - जाति से आज भी हम बाँट रहे
राजनीति का गन्दा खेल हम खेल रहे
राज्य व् राज्य में भेद साफ़ दिखा रहे
अपने लोगो को एक दूजे से दूर कर रहे
मेरा भारत आज सोने की चिड़िया बन सकता है
मेरा भारत आज भी विश्व गुरु बन सकता है
अमीरी - गरीबी का भेद हटा हम सब पा सकते है
स्वार्थ छोड़, देश की सोच हम ये गौरव पा सकते है
सभी रचनाये पूर्व प्रकाशित है फेसबुक के समूह "तस्वीर क्या बोले" में https://www.facebook.com/groups/tasvirkyabole/
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