Monday, April 1, 2013

31 मार्च 2013 का चित्र और भाव




नैनी ग्रोवर 
हर राह तेरे दर पे जाए, इंसान क्यूँ ये समझ ना पाए,
नाम तेरे हज़ारों हैं, चाहे जिस नाम से तुझको बुलाए..

उलझा रहा खुद को, मजहब के नाम पे धोखा खा रहा,
बेहतर है सबसे पहले, इंसान खुद को इंसान कहलाए...!!


Govind Prasad Bahuguna 
आस्था के प्रतीकों में खो गई आस्था
"आस्थावानों" को नहीं इससे कोई वास्ता
सौहार्द की ओर जो ले जाए,
वही हमारा हो  एक रास्ता

केदार जोशी एक भारतीय 
धर्म की राह में हम अंधे हो गए ,
धर्म की परिभाषा ही धर्मं को समझाने लग गए ..
मानव का असली धर्म है एकता, प्यार, भाई चारा ,
पर हम जातीवाद , धर्मवाद और वाद ही वाद में उलझते चले गए

अरुणा सक्सेना 
हवा और पानी हमको एक से मिलते हैं
फूल भी बगीचे के सबके लिए ही खिलते हैं
खून का रंग देखते हैं लाल नज़र आता है
धर्म के नाम पर लड़ना क्यों मानव को भाता है
राह भले ही हैं अलग मंजिल मगर एक है
भूल झगडा मिले गले जो वो ही बन्दा नेक है


बालकृष्ण डी ध्यानी 
नास्तिक हूँ मै
आस्था की भीड़ से दूर खड़ा
देख रहा हूँ छल,आडम्बर भरा
वो माया का खेल में

नास्तिक हूँ मै
आज देखों इनको एक मै
लगते सदीयों से एक में
बांटे बांटे अनेक वे

नास्तिक हूँ मै
धर्म जाती के भेद छिपे
रंग वर्ण के माप दंड पर सेज सजे
माटी माटी में ये भेद उपजे

नास्तिक हूँ मै
मुझे फक्र है मुझ पर
मेरा भार ना अब किस पर
खुद उठाये फिर रहा हूँ

नास्तिक हूँ मै
नत ना हुआ मै अब तक
मै सबल हूँ अपने पथ पर
इन ढकोसलों बचकर

नास्तिक हूँ मै
आस्था की भीड़ से दूर खड़ा
देख रहा हूँ छल,आडम्बर भरा
वो माया का खेल में


प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 
कहीं अल्लाह कहीं भगवान
इंसान ने दिए इन्हें ये नाम
मन से करते है सब पूजा
फिर क्यों समझे इसे दूजा

किसी के कहने पर नही
खुद पढ़ समझ लेना इसे
आस विश्वास की ये कड़ी
सदाचार के प्रतीक है सब

धर्म कर्म के ये है निशान
बनाते है जो अच्छा इंसान
भाव अलग एक है मंजिल
तू अलग क्यों समझे इंसान


किरण आर्य 
कर्म कांडो की यहाँ भरमार
इनके आगे हर दिल बेजार
ईश्वर ख़ुदा जीसस वाहे गुरु
धर्मांध हो ना बेजार सा मरुँ
धर्म सिखलाता है भाई चारा
क्यों हिलमिल रहना ना गंवारा
निशानों में क्यों ढूंढें है वजूद
रहे इंसान बन तो मिल जाए वजूद
हिन्दू सिख इसाई या मुस्लिम
सब है इंसा उसके ही है सब बन्दे
समझो इस बात का मर्म समय रहते
वर्ना वक़्त के फिसलने के बाद
हाथ मलने के सिवा कुछ ना हाथ है आता
इंसान करनी पे अपनी आसूं बेबसी के बहाता


ममता जोशी 
मैने हिन्दू के घर जनम लिया तो हिन्दू हो गयी ,
मुसलमान के घर लेती तो मुसलमान हो जाती,
आज रामायण है तब हाथ में कुरान आ जाती,
मंदिर के घंटो की जगह मुझे अजान की आवाज़ भाती ,
जो धर्म सिखाता है इंसान वही बन जाता है ,
आत्मा तो वही है बस नाम बदल जाता है

कौशल उप्रेती 
मैं राम नहीं कहता
रहमान नहीं कहता
गलियों के भेद को
मैं इमान नहीं कहता
कोई लिख रहा प्रभु है
कोई रट रहा खुदा है
एक दूसरे से होड़
पूजा या अजान नहीं रहता


सभी रचनाये पूर्व प्रकाशित है फेसबुक के समूह "तस्वीर क्या बोले" में https://www.facebook.com/groups/tasvirkyabole/

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