Saturday, April 20, 2013

18 अप्रैल 2013 का चित्र और भाव




नैनी ग्रोवर 
याद होगा तुम्हें,
अपना हरा भरा आँगन,
जहाँ हम पहरों पहर,
बैठे करते थे बातें,
जाने कितने दिन बीते,
जाने कितनी रातें,
अब वहां बहार नहीं आती,
कोई डाली नहीं मुस्कुराती,
ख़ामोशी का बसेरा हैं वहां,
तन्हाई का कारवां है रवां,
मैं खामोश खड़ी,
देखती हूँ, खिड़की से,
आते जाते मौसमों को,
जो अब मुझे नहीं लुभाते,
क्यूंकि वो तुम्हारी तरह,
कॉफ़ी पीते-पीते,
मेरी किसी बात पर,
ठहाका नहीं लगाते ...!!


बालकृष्ण डी ध्यानी 
फसाना मेरा वो तेरा

कभी हम मिले थे यंहा
दो पल इस मेज पर दोनों बैठे थे
बैठे बैठे अपने सपने सजे थे यंहा
अब भी वो मेज है वंही खड़ी पड़ी
हम तुम दोनों चले गये कंहा
कभी हम मिले थे यंहा ...................

बात वंही वो छुटी वो अधूरी
हुयी थी जो तेरे मेरे दरमियाँ कभी
सूखे दरकत की तरंह गिरी है वो
सूखे पत्तों साथ अब भी पड़ी है वंहा
हम तुम दोनों चले गये कंहा
कभी हम मिले थे यंहा ...................

हवा का जोर अब भी बरकरार है
अब भी उनको हमारा इंतजार है
बिछड़े पल अब भी धड़कते हैं वंहा
दो दिल अब भी रोज मिलते हैं वंहा
हम तुम दोनों चले गये कंहा
कभी हम मिले थे यंहा ...................

यादों का वो आशियाँना मेरा तेरा
टूटे जुड़ते आशिकों का ठिकाना मेरा तेरा
दो पल दिल को बहलना मेरा वो तेरा
अब भी याद है उन्हें वो फसाना मेरा वो तेरा
हम तुम दोनों चले गये कंहा
कभी हम मिले थे यंहा ...................

कभी हम मिले थे यंहा
दो पल इस मेज पर दोनों बैठे थे
बैठे बैठे अपने सपने सजे थे यंहा
अब भी वो मेज है वंही खड़ी पड़ी
हम तुम दोनों चले गये कंहा
कभी हम मिले थे यंहा



भगवान सिंह जयाड़ा 
यह वीरान खामोश पड़ी बगिया ,
अभी भी इन्तजार कर रही है ,
कभी जो घंटों बैठा करते थे यहाँ ,
शुख दुःख की बातें करते थे यहाँ ,
कहाँ गुम हो गए वे सब लोग ,
जो टहला करते थे पहले यहाँ ,
मैं जीर्ण हालत मे भी जिन्दा हूँ ,
बस पेड़ के टूटे पत्तों से ढका हूँ ,
सोचता हूँ कभी तो आयेगा कोई ,
इस लिए इस हाल में भी टिका हूँ ,
मेरे इस हाल पर अब तरस खावो ,
कहाँ गुम गए तुम ,अब लौट आवो ,
बाट जोहता हूँ आज भी रात दिन ,
कभी तो आयेगा फिर वह दिन ,
बगिया यह जब फिर महकेगी ,
भूली बिसरी बहारे फिर लौटेंगी
यह वीरान खामोश पड़ी बगिया ,
अभी भी इन्तजार कर रही है ,
कभी जो घंटों बैठा करते थे यहाँ ,
शुख दुःख की बातें करते थे यहाँ ,



Neelima Sharrma 
पार्क के उस कोने में
कभी वीरान सी
कभी गुलशन सी
मैं सुनहरी बेन्च

कितने सुख- दुःख
साँझा हुए
मेरे बुजुर्गो के

कितने बादल बरसे
नैनो से
बेवफाई में

कितने सपने बुने
मंजिल पाने के
नए की जुस्तजू में

कितने प्रेमालाप की
साक्षी बनी
यह झुरमुट

कितने रोये
मुझे गले लगाकर
कितने हँसे
मेरे सामने गले लगकर

मैं ठूँठ सा बेंच
अडिग हूँ यहाँ
हर मौसम में

आने वालो के
हर सुख -दुःख
आशा - निराशा
का साक्षी बन ने के लिय

अपने लिय सब जिए
काश
कोई मेरी तरह
नित कहानी सा जिए



अलका गुप्ता 

उदास रही मंजिल...कोई तो आएगा |
हिम्मत करेगा या कदम भी बढ़ाएगा |
क्यूँ वीरानियाँ बेवजह करती हैं तंग ..
इन्तजार है, जरुर कोई तो मुस्कराएगा ||
****
यूँ ना खिलखिलाओ बेशाख्ता...
कि बहारें अभी उदास हैं ||
कैसी है बेकली ये बेबसी ...
मेरा महबूब क्यूँ नहीं पास है ||


अरुणा सक्सेना 
हवा के झोको ने झकझोर दिया है
डाल से पात का नाता तोड़ दिया है
मेरा भी नाता कुछ ऐसा ही था तुमसे
साक्षी बना ये बेंच आज भी सूना पडा है कब से ....
बसंत आयेगा तो नए कोंपल खिल जायेंगे
शायद टूटे दिल भी कोई नया तराना गायेंगे



सूर्यदीप अंकित त्रिपाठी 
घर के आँगन का बगीचा है देखो मुरझाया ...
ऐसा लगता है बरसों से घर वो नहीं आयें !!
अब नहीं दिखता है सागर सा, उनकी आँखों में,
ऐसा लगता है कि बरसों से वो नहीं रोये !!
बातें दुनियां की कही और सुनी थी जिनसे,
जाने किस बात पे होकर वो खफ़ा नहीं आये !!
उन दरख्तों को सहारा नहीं मिला कबसे,
टूट के बिखरे हैं दौनों, संभल नहीं पाए !!



किरण आर्य 
अहसासों की बेंच पर
बैठे मैं और तुम
एकटक निहारते
नयनभिराम छवि तेरी
आतुर नयनो में बसी ....

मूक से अहसास
बयाँ करते मन भाव
नयन कर रहे बात
हाथों में थाम तेरा हाथ....

सजों लेना चाहती
रूह में हर पल को
कस्तूरी सा मन महके
तुम्हारा प्यार और साथ....

तीव्र होती हर धड़कन
और लालिमा चहरे की
अनकही को समझते तुम
बना रहे इस पल को खास ...

हाँ थम गया जीवन जैसे
और इन चंद लम्हों में ही
पा लिया मैंने जीवन सारा
अहसासों के इस आगन में
रहते तुम सदा मेरे पास .....

दूरियां नहीं बाधा दरमियाँ
जब मन है चाहता
आ बैठती तुम संग
अहसासों की इस बेंच पर .....

जी लेती इक उम्र
तुम्हारे होने के भाव के साथ
जहाँ होते केवल मैं और तुम
इकटक निहारते एक दूजे को



प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 
~फुरसत मिले तो आना~

क्या याद है
तुम्हारे आने से
जहाँ
फूल मुस्कराते थे
पक्षी चहचहाते थे
एक खुशबू
महसूस होती थी
सारा समां बदल जाता था
अपना सा लगता था

इसी जगह बैठ कर
तुम और मैं
सपनो को सजोते थे
और उन्हीं
सपनो में खो जाते थे
भाव पवित्र रूप से
एक दूजे में
संचार करते थे
मिलन और बिछोह
के कई पल
यही तो जिए थे

आज ये बैंच केवल
निशानी बन कर रहा गया है
अब यहाँ केवल
यादे ठहरा करती है
कभी
फुरसत मिले तो आना
यादो को फिर सजो लेंगे



सुनीता शर्मा 
मैं बाग़ का नीरीव बैंच
कालान्तर का समय साक्ष्य
सुख दुःख की कहानी का परिचायक
यथार्थ की अनगिनत तस्वीरे
कदमों की आहट से
मुस्कुराता हूँ कि
मेरा साथी मानव
अपने साथी मानव
के साथ बाँटता
अपने खुशनुमा पल
अपने दुखी जीवन की व्यथा
बच्चों के खेल
दुश्मनी के बोल
सभी का मैं समय साक्ष्य
बाट निहारता प्रतिपल
इस उजड़े चमन में
कभी यहाँ पर वसंत बहार
कभी उदासीन पतझड़
जीवन के उतार चढाव
की अनगिनत गाथाएं
अपने में समेटे
मैं नीरीव
अपनी किस्मत पर
हँसता
कभी रोता
कभी क्रुद्ध होता
विधाता पर
कि मेरे हिस्से
केवल यादें क्यूँ
मुझे तो तलाश जीवन की
जिसमें जीवन तरंग बहे
निरंतर अनवरत
मेरा एकाकीपन
की करुण दास्ताँ
सुनेगा फिर कोई
आएगा कोई
पथिक अपनी थकान मिटाने
मेरे पास
वक्त की चाल
सुलझाने का प्रयास
में मेरी आस
कि मैं निरीव नही
मेरा विश्वाश
प्रकृति की गोद में
मेरा अस्तित्व
जीवंत है
जीवंत रहेगा
कालान्तर तक
अनवरत
उमीदों का घरौंदा
बसाने में सक्षम
मैं मात्र बैंच नही
मैं हूँ समय साक्ष्य !



उषा रतूड़ी शर्मा 
पार्क की ये सूनी बेंच जैसे
अपने पास बुला रही हो हमे
दिन भर की थकान से जैसे
थोडा सुस्ताने को कह रही हो हमसे
प्रकृति के नर्म बिछोने पर जैसे
थोडा अलसाने को कह रही हो हमे
पेड़ों की छाओं तले प्यार के जैसे
कुछ पल जीने को कह रही हो हमे
प्रियतम की गोद में सर रख आंखे मूंद जैसे
एक जिंदगी जीने को कह रही हो हमे



Bahukhandi Nautiyal Rameshwari 
समझो ना ..
वीरानियाँ छाई हैं ..
गिरे पीले पात हैं, मगर !..
सन्नाटे में कहीं ना कहीं ..
यादों की बारात है ...
छूने एहसास मेरे ..
तेरी यादें आई हैं ...
धुंधली हवाओं ने
यादें धुंधली करायी हैं ..
पर यहीं कहीं, लुक्का छुपी ..
खेल रही तेरी परछाई हैं ..

कभी गूंजती थी स्वरलहरी ..
आज यहाँ वीराना है .
निसदिन ख़ामोशियों का आना जाना है ..

आज पड़ी धरातल ..
काठ के ठूंठ की तरह, उम्मीद हमारी..
पर आज भी ..
ये मेज हमें बुलाता ..
सूखे झड़ चुके पातों से..
खुद का सौन्दर्य बढाता ....
धीमे से पुकारता ..
ए राही जब गुजरना इन राहो से ..
थोडा ले सहारा मेरा सुस्ता लेना ..
भूल चुके जो लम्हें बीते संग मेरे ..
उनकी थाह लेना ..
पा सुकून, फिर अपनी राह लेना ..
ये आज भी तुम्हारे प्रेम की महक ..
संजोये रखता है ...
ये बैठा एकांत वीराने में ..
आज भी दामन अपना खाली रखता है ...



सभी रचनाये पूर्व प्रकाशित है फेसबुक के समूह "तस्वीर क्या बोले" में https://www.facebook.com/groups/tasvirkyabole/

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