जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासु
"मैं भी उडूं"
पंख लगाकर उड़ने की,
पागल पंछी की तरह,
चाहत मन में ऐसी है,
निहारूं देश अपना,
उड़कर अनंत आकाश से,
देखूं धरती कैसी है।
मीनू मनस्वी ना जाने क्यों
'
ना जाने क्यों
आज ......
इन उड़ते पक्षियों
को देखकर
मन में आया
कि काश .........
उड़ चलूँ
मैं भी
स्वछन्द आकाश में
डोलती फिरूं
अनवरत
इन खगवृन्द
की तरह ..........
ना कोई रोके
ना कोई टोके
बस -------------
अठखेलियाँ
करती फिरूं
बादलों संग .....
'मनस्वी '.
छोड़ दूँ
ये ज़मीं
ये धरा
जहाँ उग आये हैं
दानव नागफनी की तरह
Rohini Shailendra Negi
साँझ की बेला न ढल जाये,
रात कहीं फिर न घिर आए,
थक कर हारा समय का पंछी
चला है वापस ओढ़ के पंखी,
ढूंडे अपना स्वप्न बसेरा,
होगा कल फिर नया सवेरा...!
Jagdish Pandey
आस जगी है आज मन में मेरे
मैं भी उड जाऊँ नील गगन में
तज के सारे निज स्वार्थ अपनें
नही जलना अब द्वेष अगन में
.
अकेले साहस न कर पाउँ शायद
संग में सब को ले चलना होगा
उडान हो चाहे जितनी भी लंबी
हर पल साथ हमें रहना होगा
.
औरों की भी है हमें रखना सोच
नही रहना केवल अपनें मगन में
आस जगी है आज मन में मेरे
मैं भी उड जाऊँ नील गगन में
बालकृष्ण डी ध्यानी
मन उड़ चला
उड़ चला उड़ चला
मन उड़ चला
हवाओं की ओर
अनजाने दिशाओं की ओर
उड़ चला उड़ चला
मन उड़ चला .............
साथ साथी मेरा
ले अपनों का सहरा
पंख पर बसेरा मेरा
उड़ चला उड़ चला
मन उड़ चला .............
मीलों की उड़ाना
रास्ता अनजान है
कंहा सवेरा कंहा शाम है
उड़ चला उड़ चला
मन उड़ चला .............
उड़ चला उड़ चला
मन उड़ चला
हवाओं की ओर
अनजाने दिशाओं की ओर
उड़ चला उड़ चला
मन उड़ चला .............
भगवान सिंह जयाड़ा
हम पक्षी है मन मौजी चाहत के ,
नहीं बंदिश हम पर यहाँ कोई ,
हम उड़े स्वछंद नील गगन में ,
हम को यहाँ रोक सके ना कोई
हम को सब दिशावों का है ज्ञान ,
कहां जाना है ,सब कुछ है ध्यान,
हम एकता का ,सब को पढाये पाठ,
अपने मन में सब यह, बाँध लो गाँठ ,
एकता की शक्ति तुम सब पहचानो ,
गन्तब्य को हमारी तरह तुम जानो ,
हम पक्षी है मन मौजी चाहत के ,
नहीं बंदिश हम पर यहाँ कोई ,
प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल ....
~नसीहत~
जीवन ये मिला अनमोल है
प्रकृति से हमारा मेल जोल है
प्यार के कहते हम बोल है
भाव से बनाए हमने घोल है
उड़ना हमारी फितरत है
मंजिल हमारी किस्मत है
एकता हमारी जरुरत है
मिलकर चले नसीहत है
सुनीता शर्मा
विस्तृत नभ पर एक दूजे के हमनवा
उड़ते पंख पसार अपनी मतवाली टोली
हमारे हौसलों की उड़ानकी देखो खुशहाली
न भेद न मद और न कोई मतभेद
नयी उमंग लिए उड़ते संग संग
दुनिया की अजब ढंग देख हो रहे दंग
काश ये मूर्ख मानव हमसे जीना सीखे
नभ के खतरों से हम कैसे पाते छुटकारा
एक मूल मन्त्र अपना अनेकता में एकता
पुण्य पथ पर हर जीवन का मुल्य अनमोल
बिना इस दौलत के मानवीय ज्ञान बेमोल !
Bahukhandi Nautiyal Rameshwari
नील उन्मुक्त गगन ..
पंख कोमल सही ..
ऊँची अपनी उड़ान ..
हौसलों पर अपनी हमें ..
तनिक ना अभिमान ...
हाँ ..मद हैं हम ..
क्यूँ ना हो? इंसान !
हमें अपनों की पहचान ....
अपनी धुन हमारी अपना२ साज़ ..
एक कौड़ी खर्च ना हो।।
जो छु आये गिरिराज़ ..
अपनी एकता पर ..
हर खग करे नाज़ .....
किरण आर्य
उड़ान पंखों की हौसलों की
हाँ अनंत गगन राह कठिन
उड़ते जाना है सतत कर्म
मन के हौसले कब है हारे
मन में आस के दीपक
हाँ हमने आज जला डाले
कोई सीमा धर्म आये ना आड़े
सारा जहां है लगे है अपना
स्वछंद उड़े पंछी हम प्यारे
ईष्या घृणा ना मन में पाले
हम पंछी प्रेम के मतवाले
प्रेम का संदेश है देते जाते
गाकर प्रेम तराने हम
प्रेम का पाठ है जहां को पढ़ाते
सभी रचनाये पूर्व प्रकाशित है फेसबुक के समूह "तस्वीर क्या बोले" में https://www.facebook.com/groups/tasvirkyabole/
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