Thursday, March 14, 2013

12 मार्च 2013 का चित्र और भाव




उषा रतूड़ी शर्मा ....
दूर दरख्तों के उस पार, पलता है अपना प्यार
कैसे कहें ये बैरन अँखियाँ कब हुई उनसे दो चार
सजन है मेरे छैल छबीले, हाथों में जब हो उनका हाथ
डगर सुहानी बने, मिले दो जहाँ की खुशियाँ बारमबार

Pushpa Tripathi
वो हमकदम साथ मेरे .....

वो नीले आसमानों से ऊँचा है मेरा प्यार
पेड़ की छाँव सा निर्मल सुकून है मेरा प्यार
हमसफर का गहरा रंग और मन का विश्वास
जीवन की स्वच्छ सरिता में बहता मेरा प्यार

पीपल की पत्तों पर नर्म हवा के हो झोखें
शाम की लाली पे रात का हो कोई तिल
आखों में रहता कोई जादूगिरी असर
ऐसा है मन का मित हमराह साथ मेरे


बालकृष्ण डी ध्यानी 
मै और तू

मै और तू
तू और मै ....कुछ आ ....आज ऐसे
ले हाथों में लेकर हाथ यूँ हाथ ऐसे
चले वंहा जंह
धरती और अस्मां मिलें जंह
प्रेम बरखा की बरसात हुई है
मै और तू
तू और मै ....कुछ आ ....आज ऐसे

देख दो पेड़ों के खिलना लिखा था
आँखों से आँखों का कहना लिखा था
खुली आसमानी छतरी तले खड़े हैं आज
यंहा हमारा मिलना लिखा था

मै और तू
तू और मै ....कुछ आ ....आज ऐसे
ले हाथों में लेकर हाथ यूँ हाथ ऐसे
चले वंहा जंहा
धरती और अस्मां मिलें जंह
प्रेम बरखा की बरसात हुई है
मै और तू
तू और मै ....कुछ आ ....आज ऐसे

बातों बातों में ऐ बात चली है
हमारे साथ साथ वो भी साथ चली है
धरती आसमा पेड़ और ये मौसम
हमारे इन बाहों आ जाओ हो जाओ गुम

मै और तू
तू और मै ....कुछ आ ....आज ऐसे
ले हाथों में लेकर हाथ यूँ हाथ ऐसे
चले वंहा जंह
धरती और अस्मां मिलें जंह
प्रेम बरखा की बरसात हुई है
मै और तू
तू और मै ....कुछ आ ....आज ऐसे


नैनी ग्रोवर 
जहाँ तक पहुंचे नज़र, नीला सुहाना अम्बर है,
साथ तुम्हारे निहारूं इसको, मस्ती भरा मंज़र है..

ठंडी-ठंडी हवा चले और, सरसराहट दरख्तों की,
आ मीत मेरे चले दूर कहीं, कुदरत कितनी सुंदर है.. !!


सुनीता शर्मा 
आओ देखो फाल्गुन आया संग फुलेरा दूज लाया
राधा कृष्ण के मिलन दिवस पर हर युगल मुस्कराया
कर दो सभी अपने जीवन से दूर गमगीनियों का साया
शुभ नक्षत्रों की शुभ उर्जा से युगलों को मिलती रहे मधुर छाया !

सकरात्मक चिन्तन का अब जग में प्रवाह हो ,
हर उर में प्रेम अपनत्व की भावना का संचार हो ,
शुभ नक्षत्रों का सभी युगलों को आशीर्वाद प्राप्त हो ,
खुशियों का हर घर उपवन आबाद हो !

फाल्गुन आया देखो सारा जग हरसाया ,
राधा कृष्ण के मिलन रुत से हर फूल मुस्कुराया ,
शुभावसर पर होता धरा गगन का मिलन ,
गन्धर्वों व् गोपियों ने भी की थी फूलों की बरसात इस दिन !

प्रेम रहे सभी युगलों में ताउम्र अमर
हाथो में हाथ लिए बढ़े वे सदा कर्तव्य पथ पर
सृष्ठी के उर्जा का होता रहे हर उर में संचार
राधा कृष्ण का आशीर्वाद मिलता रहे उन्हें जीवन भर !


किरण आर्य 
प्रकृति का सौदर्य सदा दिल को लुभाता
तिस पर साथ तेरा समां भी ये मदमाता

नभ की लालिमा आँखों में तैरते लाल डोरे
अधरों का लरजना मोहित भये सजन मोरे

तुझको देख जब इस छटा को आह निहारा
नयनों की गहराई में अपना सब कुछ हारा

सौदर्य जो मन में था नयनो में है आन बसा
चित्रकार की कल्पना सा मन में प्रेम सजा

दरखतो की छाँव तले थाम हम हाथ चले
मन के आगोश तले मीठे से अहसास पले

ऐसे में साथ तेरा हाथों में ये पिया हाथ तेरा
रूह में बसा,पा लिया तुझमे अब वजूद मेरा


अलका गुप्ता 
श्वासों की मधुर गंध में खो रहे प्रान हैं |
सिमट कर बाँहों में पूर्ण हुए अरमान हैं |
हसींन इन वादियों में लुटा चले जान हैं |
हर साँस पर लिखे एक दूजे के नाम हैं ||


Bahukhandi Nautiyal Rameshwari 
चल सजन, उस पार चलें ..
जिस हाट, प्रेम व्यापार चले ..

जिस ओर घनेरी, मीठी महुआ की छांव हो ..
वहीँ बसर बसेरा अपना, वहीँ पिया का गाँव हो ..

जिस ओर लज्जाती सुबह हो ..
जिस ओर इठलाती शाम हो ..
वहीँ प्रीत की नदिया बहे, वहीँ अपना ठहराव हो ..

चल सजन उस पार चलें ..
जहाँ चनाब की मिट्टी हो, तेरे बुत को आकार मिले ...
स्वछंद विचरण हो मेरा, ना घूरती दुनिया की निगाह मिले ..
चल सजन उस पार चलें ..
चल सजन उस पार चलें ..


Neelima Sharma 
कैसे आऊ पिया ?
मैं घर को छोड़ के

बाबुल का गुरुर
माँ की लाज को तोड़ के

छोटी बहन का भविष्य
उसके सपनो को फोड़ के

बिरादरी का मान
पुरखो की शान को मोड़ के

झुक जाएगी नजरे खानदान की
हो जायेंगे जैसे रोगी हो कोढ़ के

खूने के रिश्तो को भूल
कैसे आऊ मैं घर से दौड़ के

आखिरी मुलाक़ात हैं यह मेरी
जाओ अब तुम मुंह मोड़ के

नही आ सकती मैं तुम्हारे संग
अपने अपनों को मरोड़ के


भगवान सिंह जयाड़ा 
दूर शहर से ,कहीं एकांत अम्बर के तले ,
कुछ सकुन भरे लम्हें ,मन को चैन मिले ,
शहरी आपा धापी, में जब न लगे यह मन ,
दुःख संतापों से ,जब घिर जाए यह तन ,
जिंदगी में हो सच्चे हमसफ़र का साथ ,
दुःख शुख में बंटाए यहाँ सदा जो हाथ ,
मंद मंद बहती हवा ,कुदरत के ये नज़ारे ,
गम भरी जिंदगी को, दे दो पल के सहारे .
खुला खुला अम्बर ,और हरी भरी धरती ,
जितना भी निहारो ,तबियत नहीं भरती ,
दूर शहर से ,कहीं एकांत अम्बर के तले ,
कुछ सकुन भरे लम्हें ,मन को चैन मिले


Pushpa Tripathi 
- एक आशियाँ अपना -

गगन आसमानी
रंगीन सपने है मेरे
चलना है साथ
पिया हाथ यूँ थामे l

पलकों की छाँव में
बीते दिन रैन मेरे
सपनों के नगर में
चल आशियाँ बनाए l

मौसम रूहानी है
ठण्ड दिन का सवेरा
पत्तों पर फूल है
जैसे - दिल में खिले प्यार l

हाथों में हाथ लिए
सिमटी उम्मीदे अपनी
भविष्य की राह पर
सातों जनम की मंजिल l 'पुष्प '


दीपक अरोड़ा 
तुम्हारा साथ है और ये सुहानी फिजा,
पहुंच जाएंगे मजिल तक यूं हंसते-हंसते
तु मुझे और मैं तुझे निहारता चलूं,
स्वागत होगा ऐसे ही हमारा हर रस्ते


डॉ. सरोज गुप्ता ..
चल चलें नुरानी ठाँव
~~~~~~~~~~~~~~
चलों चलें हम दोनों नुरानी ठाँव !
धरती पर न रखना गुलाबी पाँव !!

जहां हो प्यार की ठंडी -ठंडी छाँव !
धर्म- जाति की न हो काँव- काँव !!

यह कैसा है अनजाना अनूठा बंधन !
छोड़ा गोकुल का दूध-दही का नन्दन !!

भूले नहीं भूलता माँ यशोदा का आँगन !
धरती आकाश कर रहे हमारा वन्दन !!

चलों चलें हम दोनों नुरानी ठाँव !
धरती पर न रखना गुलाबी पाँव !!

प्रकृति की गोद मे है हमारा आशियाना !
समुन्द्र में डुबो नापो तुम उसका गहराना !!

पेड़ सिखाते इंसानी रुआब को कैसे झुकाना !
मिट्ठी-मिट्ठी बराबर,मिट्ठी सर माथे लगाना !!

चलों चलें हम दोनों नुरानी ठाँव !
धरती पर न रखना गुलाबी पाँव !!


प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 

नर नारी एक तो ये बीच में दूरी कैसी
शायद निभ रही जिंदगी इन पेड़ो जैसी
साथ होकर भी अस्तित्व है अपना अपना
कब होगा पूरा, एक होने का सपना अपना

जानते है समाज एक दूजे के बिना कुछ नहीं
जानते है मोहब्बत एक दूजे के बिना कुछ नही
फिर भी एक दूजे पर अंगुली उठना ठहराते सही
लड़ते किसी के कहने से, अपनी सोच रखते नही


सभी रचनाये पूर्व प्रकाशित है फेसबुक के समूह "तस्वीर क्या बोले" में https://www.facebook.com/groups/tasvirkyabole/

1 comment:

  1. सभी स्वजनों के उत्तम भाव हेतु सभी को हार्दिक बधाई ,साथ में आदरणीय भाईसाहब इतना सुंदर ब्लॉग बनाकर आपके सुंदर चिंतन व् प्रयास के लिए आभार , सांझा कर रही हूँ !

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शुक्रिया आपकी टिप्पणी के लिए !!!