Friday, December 5, 2014

23 मई 2014 का चित्र और भाव




Pushpa Tripathi 
- कोई ऊपर कोई नीचे --

कोई ऊपर .. कोई नीचे
पीछे ... अच्छे अच्छे
आपा धापी जीवन राह पर
सच्चे झूठे गिरे बेचारे !!
हार से जीत ... जीत के हारे
राजनीति का खेल ... वाह रे वाह रे ......

कठिन मुलायम ... हाथी से बन्दर
उजाला लालटेन ... अंधकार है अंदर
अबकी झोली कोई भर न पाया
एक से एक धुरंधर ...पलटा खाया ......

अबकी बार फूल पहनी है ताज
ऊपर उठकर बनी सरकार
नीचे गिरे महाबली बेचारे
हारे बिखरे 'आप ' हमारे ....

किसी के सर ताज .. किसी की हार
कोई हँसता ... कोई उदास ...

अबकी बार यह भी देंखें
भविष्य में आगे
कितना , बढ़ेगा देश ....!!!!


भगवान सिंह जयाड़ा 

-----ताज की शक्ति-----

जिस के सर पर सजता ताज ,
नहीं होता किसी का मोहताज,
बजन हो जाता उस का भारी ,
उछाले वह सब को पटखी मारी ,
ताज की रही सदा महिमा न्यारी ,
इसको पहिने कद हो जाता भारी,
बस सभी करें उस का गुणगान ,
जो पहनें ,वह कहलाये महान ,
बिकट परिस्थिति जो यह पहने ,
बस उस का तो क्या है कहने ,
सुधार गया तो बन गया हीरो ,
नहीं सुधरा तो फिर से ज़ीरो ,
जिस के सर पर सजता ताज ,
नहीं होता किसी का मोहताज,


बालकृष्ण डी ध्यानी 

~देख जिंदगी खेलती रहती~

देख जिंदगी खेलती रहती
पल पल खेल नया , हर पल खेल नया

कोई इस पल राजा कोई रंक यंहा
दूजे पल तोल देती है राज खोल देती है भेद नया

देख जिंदगी खेलती रहती
पल पल खेल नया , हर पल खेल नया

इस उठक पठक में झोंक देती है
उस चौराहे में अकेले छोड़ देती नही जंहा कौन वँहा

देख जिंदगी खेलती रहती
पल पल खेल नया , हर पल खेल नया

रखना ना भरोसा तोड़ देती है वो साथ तेरा वो पास तेरा
अपने वजूद पर बस तू रख वो हाथ तेरा

देख जिंदगी खेलती रहती
पल पल खेल नया , हर पल खेल नया


नैनी ग्रोवर -
~ क्यों उदास ~
ऊपर बैठा क्यूँ हुआ उदास
नीचे के सर पे आया ताज
ये समय का पहिया है भैया
इसके दामन में छुपे सब राज़ ..

जैसी करनी वैसी भरनी
कहावत ये है बिलकुल सही
कब तक बंद करे आँखे जनता
लों कह दिया अब तुझको नहीं
अब होगा भारत लाजवाब ...

छीन ली रोटी बच्चों से तुमने
हर घर में हाहाकार मचा
हो जवान ये किसान कोई
नहीं तुम्हारी महंगाई से बचा
देख दिया कितना करारा जवाब ...

समय का पहिया .........!


किरण आर्य 
~पलड़ा सुख दुःख का ~

दुःख है सिसके
आँखों में नीर लिए
अनजान राहों में
भटके है अज्ञानी मन
दुःख से पानी
उसे निजात
जीवन सत्य से परे
दुःख से हो विकल
मन है कलपता
जार जार है रोता
दुःख का घनेरा
बुझा देता आस का दीप
उसी क्षण हौसला मन का
दिखाता उम्मीद की रौशनी
दुःख अनायास ही लगता
क्षुद्र सूक्षम सरल सा
तब सतत प्रयास
और मन की आस
दिखाते है राह मन को
और खुशियाँ पहन
सर पे ताज
मुस्कुराती है
दुःख की तपिश में
बारिश की फुहार सी
मन के आंगन में बरस जाती है



सभी रचनाये पूर्व प्रकाशित है फेसबुक के समूह "तस्वीर क्या बोले" में https://www.facebook.com/groups/tasvirkyabole/

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