Friday, December 5, 2014

24 अप्रैल का चित्र और भाव



रोहिणी एस नेगी 
"समय की सीढ़ी"

समय की सुइयों के,
बढ़ते अंतराल पर,
छलाँग लगाने का प्रक्रम,
अभी जारी है,
उम्मीदों में क़दमों को,
अागे बढ़ाने की बारी है,

मंज़िल मिले न मिले,
स्वयम् को एहसास दिलाना है,
प्रिष्ठ-भूमि ऐसी न थी हमारी,
किधर जा रहा ये ज़माना है ?

निरंतर कर्मठता जीवन में,
अग्रसरता लाती है,
सिर्फ़ एक सकारात्मक सोच ही,
मनुष्य को आइना दिखाती है,

तू चलता चल,
अपनी राह बनाता चल,
कुरीतियों का नाश करके,
अग्रिम दिशा में बढ़ता चल,

मैं ये जानती हूँ............!!
छलाँग लगाना ही,
किसी कर्म का उद्देश्य नहीं,
फिर भी संभव है.........!!
पर.....समय के पहिये को,
सीढ़ी बनाकर,
दिशा-निर्देश देना,
बिल्कुल असम्भव है....!!



बालकृष्ण डी ध्यानी 
भागती दौड़ती

भागती दौड़ती रही
वो तो घड़ी ....... दिल की घड़ी
धक धक ....... दिल की घड़ी
भागती दौड़ती रही
वो तो घड़ी .......

कुछ अपने से
कुछ पराये से .... बेगाने धागे
कुछ पिरो कर कुछ दे कर
कुछ ले कर वो तो चली ....... दिल की घड़ी
धक धक ....... दिल की घड़ी
भागती दौड़ती रही
वो तो घड़ी .......

कुछ फलक पर
कुछ जमीन पर …… अरमानों दिये
कुछ जलाकर कुछ बुझकर
सब कुछ साथ लेकर वो तो चली
धक धक ....... दिल की घड़ी
भागती दौड़ती रही
वो तो घड़ी .......

भागती दौड़ती रही
वो तो घड़ी ....... दिल की घड़ी
धक धक ....... दिल की घड़ी
भागती दौड़ती रही
वो तो घड़ी .......


जगदीश पांडेय सादर 

********* समय के चलते ********

.
समय के चलते चलते
हालात बदलते बदलते
ये कहाँ आ गये हम

शाम यूँ ढलते ढलते
गई कुछ कहते कहते
छा गये कहाँ से इतनें गम

वक्त कल अजीब था
माना कि तू गरीब था
पर खुशियाँ न थी तेरे कम

.
वक्त जो छूट गया
कोई क्यूँ रूठ गया
हो गई क्यूँ आँखे आज नम
समय के चलते चलते
हालात बदलते बदलते
ये कहाँ आ गये हम


नैनी ग्रोवर 
----समय----

समय की तेज़ बहती धारा
और मेरे थके कदम
जिंदगी के आँचल से
मुँह निकालते कुछ वहम
बहकाते हैं मुझे --

पराई देहरी लगता है
अपना ही अब आँगन
जैसे के अधूरी अधूरी
दरवाज़े पे खड़ी सुहागन
रुलाते हैं मुझे --

थम थम के चल
ज़रा सांस तो आने दे
आप्खो के आंसूं
छलक तो जाने दे
जो बहलाते हैं मुझे --

क्या पता उसके हाथ
फिर से थाम ले दामन
महक उठे फिर से
उजड़ता हुआ चमन
यूँ ही दिल को मनाते हैं ---!!



Pushpa Tripathi 
----- भली भली सी ये ज़िंदगी ----

सुबह का पंछी
दौड़ लगाये
उड़ उड़ पंछी
थक मर जाये ....

हारे भटके
निज काम है करते
घड़ियाँ सुई
सब घूम फ़िर जाये …

समय से चलना
समय के साथ
समय के हाथ
दिन भर के काम …

दौड़े भागे
पैर चक्का लागे
टाई - कोट
सूटकेस है हाथ ....


प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
~सफर~
घड़ी की रुके न रफ़्तार
हर कोई इसमें गिरफ्तार
सूरज - चाँद बदलते वक्त
अच्छे का करते हम इंतजार
कही सवेरा, कही है अँधेरा
वक्त संग किस्मत का पहरा
कर्म यज्ञ चलता जाए निरंतर
कटता जाए जिन्दगी का सफ़र


Pushpa Tripathi
--- यही है कार्य ----

कर्मठ है जीवन
सतत चलना है काम
रुकना नहीं
यह उसूल है जीने का l

रात दिन का चक्र
दिनभर का वक्र
आलेख सा समय
घटते - बढ़ते शुक्र l

इतवार की छुट्टी
सोमवार कर मुटठी
हफ्तेभर भरमार
मंगल शनिच्चर की गठरी l


अलका गुप्ता
~~चल दौड़ लगा ले!~~
---------------------------
चल दौड़ लगा ले!
सूइयों से घड़ी की..
बंधा ये जीवन है |
पहियों बीच समय के...
दौड़ता हर पल है
कभी कुछ पया ...
कभी कुछ खोया ..
यही तो जीवन है |
कभी खुशी कभी गम है |
यही तो जीवन है |
जीते सब हैं जीवन अपना |
जिए जो औरों के लिए |
हर काल उन्हें पूजा जाता है |
समय उनके लिए बंध जाता है |
नहीं तो समय...यूँ ही
निर्थक बीत जाता है |
कोई आता है कोई जाता है |
समय का पहिया....
यूँ ही चलता जाता है |
चल दौड़ लगा ले !अब तो ..
नहीं तो .......
ये समय ..निकला जाता है |
कुछ सार्थक करके जाना |
हर लम्हा अपना करके जाना |
समय कम है ...
सत -कर्मों की दौड़ लगाना |
हर लम्हा अपना करके जाना ||

अलका गुप्ता 
समय तो जा रहा है

देखो घड़ी वो जा रहा है |
साथ घड़ी के जीवन भी...
ये ..तो सरका जा रहा है |
दौड़ता ये हर पल ...
कुछ पाता कुछ खोता है |
हर लम्हा कभी ख़ुशी ...
कभी ग़म का होता है |
सतत दौड़ते जाना है |
कुछ करके सार्थक जाना है |



किरण आर्य 
~समय का पहिया~

समय का पहिया
दौड़े है
दौडती जिन्दगी
हांफती सिसकती
गिरती संभलती
संग उसके
एक तलाश हो
मुकम्मल
चातक की प्यास सी
दिल में ये आरजू है लिए............


सभी रचनाये पूर्व प्रकाशित है फेसबुक के समूह "तस्वीर क्या बोले" में https://www.facebook.com/groups/tasvirkyabole/

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