Friday, December 5, 2014

3 मई २०१४ का चित्र और भाव



प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
~मन~

मन...
चल उड़ चले
लेकर भावो की गठरी
सुबह और शाम
मन कर तू भी सवारी

अरे मन .....
कहाँ चला तू
जहाँ तुझे कोई जानता नही
क्यों भाग रहा तू
सत्य को अब भी पहचान सही

लौट आ मन ...
अब तुझसे वहां
किसी का वास्ता नही
जानते तो है सभी
लेकिन पहचानता कोई नहीं


बालकृष्ण डी ध्यानी

~बैठा हूँ परदेश में~

देखों जब भी तुझे गगन में उड़ते हुये
सोचों बस इतना कब बैठों कब पहुँचो अपने घर पे

पंख पसारे तू उड़ उड़ जाये
साथ अपने मुझे कल्पना के कौन से गगन ले जाये

नीले आकश सफेद बादलों बहतीे हवा संग उड़ता जाता
मेरे मन पटल चक्षु में कई सुखद भाव जगाता

हर एक उस प्यारे मिलन के अनुभूति दे जाता
ये उड़न खोटले तू इतना कर जाना
ये सुख अनुभूति मेरे अपनो को भी दिलाना

देखों जब भी तुझे गगन में उड़ते हुये
सोचों बस इतना कब बैठों कब पहुँचो अपने घर पे


भगवान सिंह जयाड़ा 

----मन की उड़ान ----

काश आज यह हवाई जहाज न होता ,
इन्शान किसी का बिछोह न सहता ,
इन्शान अपनों के आस पास होता ,
कभी भी बुछुड़न के आंशू न रोता ,
सदा अपनों से यह सदा दूर ले जाये ,
मिलन की आश में सदा तरसाये ,
दूर प्रदेश , गगन में जब नजर आये ,
अपनों से मिलने की आश जगाये ,
सोचता तब कभी यह मन दुखियारा,
लौट चल अब बतन तू, मन मतवारा,
मन की उलझन में फिर सोचता हूँ ,
मन ही मन में अपने को कोसता हूँ ,
इसकी बजह से दुनिया सिमट गयी ,
यह सारी दुनिया एक शहर हो गयी ,
पंख फैलाये सदा यूँ ही उड़ते रहना ,
अपनों से सदा हमको मिलाते रहना ,



अलका गुप्ता 
~~उड़ान ~~


ये आसमान तो...
इस धरती पर...
सबका ही है ||

छूने की हो...
तमन्ना ..
दिल में...
वही तो उड़ता है ||

पंखों से नहीं...
उड़ान तो ...
हौसलों से...
ही होती है ||

हों हौंसले...
बुलंद..जिसके...
मंजिल भी ...
उसी की होती हैं ||


जगदीश पांडेय 

~~~~~~~~ न जानें कहाँ ~~~~~~~~

न जानें कहाँ उड चला है
ये भावनाओं के गगन में
ख्वाबों के लेकर पंख ये
होकर अपनें मगन में
न जानें कहाँ उड चला है
ये भावनाओं के गगन में

न रास्तों का है ठिकाना
न हकीकत का पैमाना
पाकर रहुंगा मंजिल मैं
एक दिन इसनें है ठाना
खुशनुमा होगा वो पल
अपनें अमन के चमन में
न जानें कहाँ उड चला है

ये भावनाओं के गगन में


Pushpa Tripathi 
इस दिल का क्या कसूर

इच्छाएँ जब आती है
पंखो की तरह उड़ती है
सोच परेशानियों को
ऊंचाई तक उड़ा जाती है …

दिल क्या करता
दिल ही तो है
कसूर किसका दे
मन भी तो है
मन के आकाश में
विचरता दिल का विमान
कई बातों को साथ लेकर
दिनभर की यात्रा 'पुष्प ' विमान
मानव मन ,शरीर और ये दिल !



Pushpa Tripathi
मन उड़ता है .......

चाहत है आसमान छू लूँ
ऊंचाई पर झूला झूल लूँ
छोटे छोटे घर घनी आबादी
खिलौने सा शहर देख लूँ !!

अमीरों के तरह सवारी
एक बार चढ़कर सफर देख लूँ
रुपयों से आसमान का नगर
इन्द्र देव का महल देख लूँ …

कहते है रहते भगवान ऊपर
'पुष्प 'परियों का संसार ऊपर
मानव का उच्च शरीर लेकर
इच्छा है की भगववान देख लूँ !!


सभी रचनाये पूर्व प्रकाशित है फेसबुक के समूह "तस्वीर क्या बोले" में https://www.facebook.com/groups/tasvirkyabole/

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