Saturday, February 2, 2013

02 फरवरी 2013 का चित्र और भाव


बालकृष्ण डी ध्यानी 
मै चाट वाला 

चटपटी है चाट 
अपने तो हैं ठाट 
मैंने उसे हर चौराहे बाँट 
अपना ठेला जहाँ-जहाँ साथ 
मै चाट वाला मै चाट वाला 

नमकीन मीठा का चस्का 
उस पर नींबू का हो छरका 
हर जीभ को वो लपकाता भाई
मेरे ठेले पर खींचा चला आता 
मै चाट वाला मै चाट वाला 

मसालों का ही मिश्रण है 
ये जो अपना जीवन है 
सुख दुःख का तडका जब लगता 
तब मेरा भी ठसका लगता 
मै चाट वाला मै चाट वाला 

चस्का लगे आ जाना
मेरे साथ थोड़े अपने पल बिता जाना 
मै तेरा बिता अतीत हूँ 
वंही चौराहे पर छोडा वो मीत हूँ 
मै चाट वाला मै चाट वाला 

चटपटी है चाट 
अपने तो हैं ठाट 
मैंने उसे हर चौराहे बाँट 
अपना ठेला जहाँ-जहाँ साथ 
मै चाट वाला मै चाट वाला 

नवीन पोखरियाल 
कोई जीने के लिए खाता है ,कोई खाने के लिए जीता है
पर में उनमे से हूँ जो जीने के लिए लोगो को खिलाता हूँ !!


अलका गुप्ता 
चाट खाओ चाट !..चाट चाट सब !
चाट खाते सब अंगुली चाट-चाट !
मन चटकारे लेने लगे देख चाट |
आने लगे हरेक के मुंह में पानी |
खाने में मजा है सडक पर चाट |
चाट खाओ चाट !चाट चाट सब !
जब हाथ में हो पत्ता चाट का |
गाड़ियां धूल उडाती जाती जब |
धूल की परत दर परत चढाती जब |
बढता जाता मजा चाट का तब |
चाट खाओ चाट !..चाट चाट सब !
खाते रहते भूल सफाई के ...
अंट-संट उपदेश बकवासी सब |
बस एक यही ठिया है जहां ...
भूल जाते नफरत के सारे भेद |
चाट खाओ चाट !..चाट चाट सब !
चाट खाओ चाट !..चाट चाट सब !!

प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 
लगा है यहाँ ठेला मेरा, सब इस ओर चले आना
राह में आते - जाते मेरे हाथ की चाट खाते जाना

प्याज, मिर्ची, धनिया, नींबू, और उबले छोले
चटपटे मसाले मेरी चुटकी से इसमें गिरते जाते
बना रहा हूँ चटपटी चाट, आप चटकारे ले खाना
गर आये मज़ा खाने का तो दोस्तों को भी बतलाना

लगा है यहाँ ठेला मेरा, सब इस ओर चले आना
राह में आते - जाते मेरे हाथ की चाट खाते जाना

जीवन जीने का स्वाद तो खट्टा मीठा होता है
लेकिन हर पल चटकारे लेकर खाना सिखाता हूँ
प्रेम मेरा शामिल होता है, जब खिलाता चाट हूँ
खिलाकर सबको चाट, रोटी का जुगाड़ करता हूँ

लगा है यहाँ ठेला मेरा, सब इस ओर चले आना
राह में आते - जाते मेरे हाथ की चाट खाते जाना
1

Dinesh Nayal 
गया गाँव के मेले में 
एक दिन,
लगा देखा चाट का ठेला
मुँह ललचाया ,
गिच्ची में पानी आया
चट-पट खाने को ज्यू मेरा बोला,
खाऊं कैसे चाट भला
जैब नहीं था पैसों से भरा,
मेरी ब्वोई ने दिए बीस रुपये
क्या क्या खाऊँ उसमें भला
चाय-पकोड़ी, जलेबी, खटाई मीठाई
सब कुछ तो खा डाले
पैसे सारे खर्च कर डाले
करता क्या लाचार भला
रह गया उस दिन चाट बिना.....


Pushpa Tripathi 
देख देख के मात न खा
सस्ती खुली चीजों पर
न मन अपना ललचा
स्वछता अगर न दिखाई दे
स्वादिष्ट पकवान भला किस काम के

किरण आर्य 
चाट चाट चाट वाह क्या कहे उसकी बात 
नाम सुन ही आ जाता मूह में पानी और
जिव्हा होती बेचैन कहने को इसकी कहानी 

चाट का जयका थोडा चटपटा और कुछ तीखा 
जैसे जीवन कुछ गम कुछ खुशियों की रवानी 

छोले-कुलचे भेलपूरी गोलगप्पों का तीखा पानी 
चाट के रूप अनेक जिंदगी के रंगों से सुन जानी 

चाट बेचे कोई जुगत में दो जून की रोटी की 
कोई ले स्वाद पूरी करे जिव्हा की मनमानी 

चाट चाट चाट वाह क्या कहे उसकी बात
ऐसी ही खट्टी मीठी चटपटी सी है इसकी कहानी

नैनी ग्रोवर 
कमाने निकला मैं दो रोटी, बच्चों की खातिर,
देखो लोगो, कुलचे-छोले में, मैं हूँ बड़ा माहिर..

खिलाऊँ प्रेम से, डाल मसाले, खाओ गरमा-गरम,
मेरे बच्चे तरसें खाने को, ना होने दूँ ज़ाहिर ...

लताड़े कभी पुलिस वाले, कभी मारें है थप्पड़,
मैं भी हूँ भारत का बाशिंदा, नहीं कोई मुजाहिर !!


Upasna Siag 
दो जन , दो पेट 
दोनों की अपनी - अपनी भूख ,
एक फिरता है हर राह पर 
लिए पेट की भूख 
भटकता दर-ब-दर ....
दूजा भी है बेखबर 
धूल-मिटटी और गंदगी से 
खड़ा है राह पर 
लिए पेट की भूख ....


भगवान सिंह जयाड़ा 
आओ भाइयों ,बहिनों खावो चटपटे छोले भठूरे ,
बिना चटपटे मसालों के यह छोले भठूरे है अधूरे ,
एक बार खावोगे तो जिंदगी भर याद रखोगे तुम ,
आप की सेवा में हर दम हर समय हाजिर है हम ,
ठेली वाले छोले भटूरों की बात ही कुछ और है ,
एक बार स्वाद लग गया इनका तो सदा खावोगे ,
एक बार खावो तो बार बार मेरे ठेले पर आवोगे ,
आप की सेवा समझता हूँ ,अपना धरम करम ,
सेवा का अवसर जरूर देना ,न करना कभी सरम ,

डॉ. सरोज गुप्ता 
स्ट्रीट मे ट्रीट 
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कालेज के वे दिन 
भरी मस्ती के 
भारी बस्ते के 
जेब खस्ती थी 
कुलचे-छोले सबसे सस्ते थे 
रस्ते में ही खाते चलते थे 
चटखारे लेते चलते थे 
दिल्ली यूनिवर्सिटी से 
कमला नगर पैदल 
पढ़ाकूओं की टोली 
(पढाकू थे ,विद्वान नहीं )
गले में डाल झोली 
दिनकर,निराला ,महादेवी बर्मा को 
बतियाते ,हंसते ,गाते चलते थे 
अशोक चक्रधर की हंसी की फुलझड़ियाँ 
भुला देती थी लम्बी पगडण्डीयां 
भोलानाथ तिवारी का भाषा-विज्ञान 
गडबडा जाता था .पर 
डाक्टर नगेन्द्र का रस सिद्धांत 
याद रहता था ,
देख कर कुलचे -छोले 
मुंह में रस आ जाता था 
यही था रस का सार 
स्ट्रीट में ट्रीट 
रस: वै स:
यही है जो पूर्ण आनन्द है !

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सभी रचनाये पूर्व प्रकाशित है फेसबुक के समूह "तस्वीर क्या बोले" में https://www.facebook.com/groups/tasvirkyabole/

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