Sunday, February 3, 2013

03 फरवरी 2013 का चित्र भाव

( 03 फरवरी 2013 के चित्र पर मित्रो और सदस्यों के भाव - हास्य व्यंग्य के )


नैनी ग्रोवर 
अजी आज रविवार है, बस आराम का बुखार है,
आज भी लिखूँ कविता, आज भाव भी तड़ीपार हैं..

आज तो जी चाहता है, होटल में जा के खाया जाए,
और आप कह रहे हैं, सोच में दिन बिताया जाए
वो भी हास्य-व्यंग में हो, हाय ये कैसा अत्याचार है ...

अभी तो पी सुबह की चाय, पेट में कुछ भी गया नहीं,
कह रहे चूहे पेट के, जल्दी कर नाश्ता, आज कुछ नया नहीं
अरे ये तो कविता बन गई, अब तो अपना बेडा-पार है ......!!



बालकृष्ण डी ध्यानी 
हर दिन इतवार है

वो आती रही
मै मिलता रहा
प्यारा का अफसाना
यूँ ही चलता रहा
एक दिन
वो ना आयी मिलने हम से
वो ना आयी मिलने हम से
मै समझ गया
की आज इतवार है

दिल से दिल मिलता रहा
फूल से फूल खिलता रहा
प्यार का रंग चढ़ता रहा
एक दिन
फीका फीका वो हो गया
वो ना आयी हमारे रंग में
वो ना आयी हमारे रंग में
मै समझ गया
की आज इतवार है

एक एक दिन यूँ ही जाता रहा
वो आती रही दिल गाता रहा
अचानक ना आना उसका
एक दिन
बंद यूँ हो गया की अब तक बंद है
बंद यूँ हो गया की अब तक बंद है
मै समझ गया
की अब हर दिन इतवार है


Bahukhandi Nautiyal Rameshwari 
सच दफ़न, कई परतों के साथ ।
इक इक परत पर, सौ झूठ निकले खुदाई से।
कटघरे में, बेइमान का यही बयाँ ।
हुजुर, मेरी बेईमानी की वज़ह है वो ।
नित नए वस्त्र, रंग रोगन ओढती है जो ।
मैं तो सिर्फ, भयभीत, उसकी जुदाई से ।।
रंग रोगन, मोल लाया उपरी कमाई से ।।


भगवान सिंह जयाड़ा 
वाह रे मेरे प्यारे प्यारे रविबार ,
तुझे करूँ मैं बार बार नमस्कार ,
तेरे लिए छ: दिन रहूँ मैं बेक़रार ,
कर के दिन गिन गिन इन्तजार ,
कामो की लिस्ट रखता हूँ तैयार ,
जब तू आये सब हो जाता बेकार ,
क्योंकि सुबह आराम से उठता ,
नहाने धोने में आधा दिन कटता ,
खाने पीने में दिन हो जाता पूरा ,
काम धाम फिर रह जाता अधूरा ,
फिर वही छ: दिन का चक्कर ,
न गुड़ लिया और ना शक्कर ,
वाह रे मेरे प्यारे प्यारे रविबार ,
तुझे करूँ मैं बार बार नमस्कार ,


Bahukhandi Nautiyal Rameshwari 
कहते लोग सबहिं, भूत पिशाच हनुमान भगाये ।
एक मोरी पिशाचन ऐसी देखि, भगवान डरी जाए ।

कहत बुढे बुढ़ीन सबहीं, भूत पिशाचन की पहचान यही, राखे उल्टे पाँव ।
मोरी पिशाचन ऐसी रही, देखि सेल जबहूँ कहीं, दौडी सर पर रख पाँव ।

जतन करे सबर, करे हवन कई, पूजन कई करवाए ।
सुने हम कई ग्रन्थ में, अग्नि देखि भुत पिशाच भागि जाये ।
धर्मपत्नी पिशाचन वो, जो अग्नि फेरन से, गृह प्रवेश पाए ।।

Neelima Sharma 
आज रविवार हैं
छुट्टी की बहार हैं
आज रोटी खुद बनाओ
सब्जी की जगह अचार हैं

अब से देर से मैं उठूँगी
सबसे पहले अखबार मैं पढूंगी
नाश्ता अपना खुद बनाओ
मेरा भी तो आज त्यौहार हैं

चाहे किसी को घर बुलाओ
चाहे किसी के घर जाओ
सज- धज के हड़ताल का
मेरा भी आज विचार हैं

बच्चो का होम वर्क हो या
ऑफिस का पेंडिंग वर्क
घर के साथ खुद निपटाओ
आज मेरी सरकार हैं

6 दिन की मेरी नौकरी
घर में करती सबकी चाकरी
मिलती नही मुझे कभी भी
जरा भी पगार हैं
आज तो रविवार है


प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 
~क्या कहते मेरी सरकार ~

हफ्ते भर इंतजार आ गया आज रविवार
पूरा हफ्ता दफ्तर, आज बस घर परिवार
आफिस में बॉस की रोज खाते है फटकार
आज बीबी का देखो गुस्सा या झेलो प्यार

अगर रिश्तेदारों का आज आना जाना होगा
बीबी को किच्चन में पूरा दिन लगाना होगा
पत्नी के गुस्से से कैसे बचे, ये भी देखना होगा
शापिंग ले जा बेगम का मूड ठीक करना होगा

आफिस में दोस्तों से बाते होती केवल दो-चार
आज घर में बीबी बच्चो की बैठ सुनो तकरार
घूमने फिरने जाना होगा, चाहे जेब करे इन्कार
घर अच्छा या आफिस क्या कहते मेरी सरकार

सोने का मन, लेकिन यहाँ भी होता अत्याचार
सोचा करेंगे आराम, पर काम में बीतता रविवार
जिस छुट्टी का रहता इंतजार, वों जाती बेकार
घर अच्छा या आफिस क्या कहते मेरी सरकार


दिनेश नयाल 
रविवार का दिन
बड़ा मुश्किल,
देख आज की
तस्वीर,
सुझा यही
कार्य करो
या
ना करो,
कार्य की
चिंता हर बार करो!
चिंता करो
ना करो,
जिक्र हर बार करो!!

:
अलका गुप्ता 
अरे आज रविवार है|
हाय ! सब बेकार है |
ठहरी मैं तो एक गृहणी !
मुझे तो बहुत सारे काम हैं |
समय की पावंदी भी सब बेकार है |
तैयारी टिफिन की नहीं आज तो क्या ?
बच्चों की धमाचौकड़ी का राज है |
सबकी फरमाइशों का अम्बार है |
हाय ! आज रविवार है |
माफ़ करो दोस्तों !
करेंगे बात कल |
आज तो रविवार है |
घर में सबकी छुट्टी का दिन ....
मेरी मशक्कत रहवार है ||



किरण आर्य 
सोचा आज दिन रविवार है
सोयेंगे जी भर कर
रोज़ तो काम का बुखार है

तभी पतिदेव की मीठी चिघाढ़
कानो से टकराई
श्रीमती जी उठना नहीं है
सुबह होने को है आई

हमने कहा उनींदी आँखों से
सोने दो आज तो रविवार है
तो बोले मुस्कुरा कर वो
सो जाना बस ये दिल इक
अदना सी चाय का तलबगार है

हमने गुस्से में आंखें ततेर देखा
उन्होंने जल्दी से निपोरे अपने दांत
और बोले मेरी जान सो जाना
बस इक चाय की ही तो है बात

इस तरह मन मसोस के उठे हम
रह गई तमन्ना सोने की दिल में ही
और चाय के पानी की तरह खौल उठे
दिल के मेरे सोये जज़्बात
इस तरह हुई हमारे रविवार की शुरुवात
हाथों मे चाय की प्याली और उनींदे भाव 




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सभी रचनाये पूर्व प्रकाशित है फेसबुक के समूह "तस्वीर क्या बोले" में https://www.facebook.com/groups/tasvirkyabole/

1 comment:

  1. बहुत ही सुन्दर भाव सभी मित्रों के ..व् हार्दिक धन्यवाद प्रति जी मैं तो सोच भी नहीं सकती थी के मैं कभी हास्य-व्यंग पर कुछ लिख सकती हूँ ,, अब लिखा कैसा ये तो पता नहीं पर कोशिश अवश्य की .. एक बार फिर से हार्दिक धन्यवाद

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शुक्रिया आपकी टिप्पणी के लिए !!!