कौशल उप्रेती
क्यों समंदर बह रहा है
यूँ निगाहे दरमियान
धीमी धीमी एक चुभन सी
हो रही है महरबान
अब समंदर ही से पूछो
कितना तुझमे शोर है
आ रही लहरों के जैसा
अब तो चारो और है ||
बालकृष्ण डी ध्यानी
उमंगों की पदोन्नति
मस्त लहरों की उमंग
नाचे है आज ये मन
हर्षावेश वेग से दौड़े वो सरफट
पानी की सतह पर आज मेरा मंच
उमंग भरा मै और ये सफर
झोंका वो साहस मेरा
प्रचंड वायु के विरुद्ध वो बड़ा
लहरों को चीरते हुये
बहा रहा मेरा रोमांच मिला
उमंग भरा मै और ये सफर
उल्लसन की ऐ फिसलन
भाव वेग की तैरती लीला
जोश का है ये बस मिलन
मुंह ना दबा पथिक
उमंग भरा मै और ये सफर
हर्षातिरेक उत्साह मेरा
खोजे नित नये वो अयाम
राग है बस इस दिल का
बस वो ही है चंचला
उमंग भरा मै और ये सफर
मस्त लहरों की उमंग
नाचे है आज ये मन
हर्षावेश वेग से दौड़े वो सरफट
पानी की सतह पर आज मेरा मंच
उमंग भरा मै और ये सफर
नैनी ग्रोवर
मत तोड़ हदें अपनी, ऐ इंसान बाज आ,
ज़रा सोच होगा क्या, गर मैं भी उछल गया ..
तू खेल भले मुझसे, दिल चाहे तेरा जितना,
पर मत मान बुरा अगर कभी,मैं भी खेल गया ...
स्वर्ग जैसे तट मेरे, तूने नरक में बदल दिए
फिर भी तेरी नासमझी को, अब तलक झेल गया !!
Bahukhandi Nautiyal Rameshwari
चला हूँ मैं ।
है गुरुर सागर को
गहराई पर अपनी ….
सागर की गहराई ..
मापने चला हूँ मैं ...
देखूं तो सही ..
विशालता की उपमा कहीं ..
संकुचित तो नहीं ..
उसकी हर लहर से ..
टकराने चला हूँ मैं ..
संग उन्मादित सा ..
लहराने लगा हूँ मैं ...
रसिया है सागर ..
संग नदियों का पाकर ..
नदियों से बतियाने चला हूँ ..
सागर की गहराई ..
उन्हें बताने चला हूँ मैं ...
खार निगला सगर जगत का ..
अमृत का उसे पता नहीं ..
मंथन करने चला हूँ मैं
भगवान सिंह जयाड़ा
कुछ भी नामुमकिन नहीं उनको ,
नहीं खौप चुनौतियों से जिनको ,
जिन के हौसले यहाँ बुलंद होते है ,
वह बुलंदियों के सहन्शाह होते है ,
कभी आसमान को छूने का जूनून ,
कभी सागर की लहरों से खेलते है ,
कभी वह प्रबतों से लगाते छलांग ,
कभी पर्बतों पर पक्षी सा मंडराते है ,
अजब गजब के कारनामो के संग ,
यह लोगों के दिलों में छा जाते है ,
कुछ भी नामुमकिन नहीं उनको ,
नहीं खौप चुनौतियों से जिनको ,
Pushpa Tripathi
चीरता चला हूँ मै
समन्दर की लहरों को आज
हटाकर सारे विफल भंवर नाकाम l
हारता नहीं हूँ मै
चाहे हो कोई पथ पथराव
हटाता सारे बाधित कंकण निष्काम l
तरंगो पर चलता हूँ मै
हर तार उम्मीदों को जोड़कर
निःसंदेह निष्ठा आत्म विश्वास संकल्प मेरा l
" पुष्पा त्रिपाठी "
अलका गुप्ता
हम वह हौसले...और हिम्मत रखते हैं |
लहरों से भी समुद्र की बेख़ौफ़ खेलते हैं |
हम डरें आँधियों से भी...हरगिज नहीं ...
खुदा के बाद भरोषा पुरुषार्थ का समझते हैं ||
हाँ प्रकृति का तिरस्कार...हम करते नहीं |
अनुकूल अपने करके ......हम हँसते नहीं |
दोस्ती करते हैं हम तहजीब से कुदरत की |
सम्मान में उसकी ...कुछ कमी करते नहीं ||
चीरता चला जाता हूँ सीना महासागरों का |
फिसलता हुआ पार करता हूँ रास्ता वर्फ का |
या खेलता पूर्ण आत्म-विशवास से खेल सब |
करूं बहुत कुछ नया करतब....चमत्कार का ||
किरण आर्य
लहरों संग खेलते है हौसले मेरे
सागर की ये लहरे बेखौफ सी
आती किनारे पर लौटने को सब
फिर लौट जाती सागर में समाने को
हर बार आती है उतने ही उत्साह से
छूकर मस्तिक्ष साहिल का लौट जाती
कर सर्वस्व अर्पण अनुरक्ति मन बसाए
आलिंगन करने को आतुर सी सागर का
मेरा हौसला भी हाँ कुछ ऐसा ही तो है
डगमगाता गिरता संभलता फिर बढ़ता
निरंतर आगे लहरों से लड़ने की आस संग
अविचल बिना डरे अग्रसर अनावरत बहता
Yogesh Raj .
संघर्ष मेरा शौक है, देता है संतोष मुझे,
यूंही कुछ मिल जाय, आता नहीं रास मुझे,
तूफानी लहरें रोकती हैं रास्ता कायरों का,
मगर रास्ता बनाकर देती हैं वोही लहरें मुझे.
प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
तूफान सा फिर समुंदर में उठा है, लहरों को निशाना बनाया है
आ इन लहरों पर चले 'प्रतिबिंब' जिंदगी ने यही तो सिखाया है
सभी रचनाये पूर्व प्रकाशित है फेसबुक के समूह "तस्वीर क्या बोले" में https://www.facebook.com/groups/tasvirkyabole/
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