नवीन पोखरियाल
ए ख़ुदा तूने ही नवाज़ा है मुझे उस जूनून से ,
कि आज खीच रहा हूँ चाँद भी में अपने नसीब से.
Bahukhandi Nautiyal Rameshwari
यूँ भी हैं बहुत दाग दामन पर मेरे ।
तू भी लगाने की हिमाकत ना कर ।
दिनकर की आग से लोहा ले ना पाए ।
मेरी शीतलता देती सुकून चैन तुम्हें ।
मेरी धरा दागने की हिमाकत न कर ।
प्रक्रति अटल, प्रबल, इश्वरिये देन है ।
टकराकर हमसे अपनी शामत ना कर ।
दो चार फेरे डाल, अहंकार भर गया ।
खुद के इश्वर होने की घोषणा ना कर ।
एक धरती दी तुम्हें आशियाने के लिए ।
कण कण बेच डाला, खुद स्वार्थ के लिए ।
छोड़ धरती अपनी, नया ग्रह तलाश ना कर ।
ये माँ है, यूँ कर बंज़र इसे, निराश ना कर ।
थोडा परिश्रम कर इसी पर, ना त्याग इसे ।
वन उपवन तैयार कर, जीवों को बेघर ना कर ।
उठ मानव, नयी जागरूक पीड़ी तैयार कर,
नैनी ग्रोवर
धरती को तो उजाड़ डाला, अब मेरी छाती पर क्यूँ पैर रखे,
भगवान् ने दी थी प्यारी सृष्टि, तूने लालच के लिए बैर रखे ..
अब मेरे घर में मत झांक ऐ इंसान, बक्श मुझे तो जीने दे,
मत रख तेरे गंदे पाँव मुझ पर, मन में बर्बादी का ज़हर रखे...!!
Upasna Siag
मैं चाँद हूँ ....
श्वेत ,शांत ,शीतल ........
जब अपने प्राण -दाता के
बिलकुल सामने होता हूँ ,
पूनम का चाँद कहते हो.....
और चलते -चलते ,
जब थक कर अपने ही
प्राणदाता की गोद में विश्राम
करता हूँ तो कहते हो कि ....
आज अमावस है कितना अँधेरा
है ...पर मैं तो तुम्हारे मनों में तो
जगमगाता रहता ही हूँ .......
जब कोई माँ अपने बालक को
मेरी ओर इशारा कर मुझे
चंदा मामा कहती है तो मैं भी ...
अपनी बाहें फैला देता हूँ .....
मेरी चांदनी उसे प्यार छू देती है ...
और कोई अपनी प्रेयसी के मुख -मंडल
को मेरी उपमा देता है तो ......
मेरी चांदनी खिल -खिल उठती है ....
जब मुझे किसी शुभ ग्रह का साथ मिलता है
तो मैं तुम्हे जीवन की ऊँचाइयों तक
पहुंचाता हूँ ........
पर जब क्रूर ,पापी ग्रहों से घिर जाता हूँ
तो मन को गहरी उदासियों घिरा हुआ
पाते हो ....
पर मुझे तब बहुत दुःख होता है जब
कोई कहता .......अरे चाँद में तो गड्डे है.......
क्या तुम नहीं जानते ये गड्डे भी तुम्हारे
ही दिए है ........
जब भी तुम माँ ......
और मानवता पर प्रहार करते हो
मुझ पर एक गड्डा और बढ़ जाता है ......
21 hours ago · Edited · Unlike · 8
बालकृष्ण डी ध्यानी
अब तो तू सुधर
धरती तहस नहस करदी है तूने
अब चाँद पर है टिकी तेरी नजर
एक को तू ना संभाल पा रहा
दूजे की तू कर रहा फ़िक्र अब तो तू सुधर
किरण आर्य
चाँद हाँ जो प्रतीक है प्रेम और सौन्दर्य का
इंसा ने श्रृंगार रस से सजा जोड़े इससे भाव
बच्चो ने मामा कहा जोड़े नेह संग ख्वाब ..........
चांदनी इसकी प्रेमियों को रही रिझाती
अमावस के चाँद सी विरह नहीं है भाती
चाँद को पाना जुस्तजू प्रेमी ह्रदय सजाती........
आज फिर मानुष मन में है इक हुक उठी
चाँद पे घर बसाने की चाह आज मन बसी.......
प्रकृति और पृथ्वी से कर खिलवाड़ वो हारा
अब लालसाओ ने उसकी चाँद को है निहारा..........
क्या समझ पायेगा अब भी बावरा सा इंसान
या इच्छाए लील लेंगी उसकी सौन्दर्य प्रकृति का
भगवान सिंह जयाड़ा
फोटोग्राफी का है यह सब कमाल ,
कुछ भी ,कहीं भी मचाये धमाल ,
कभी चाँद को दिखाए इस धरा पर ,
कभी चाँद से दिखाए इस धरा को ,
उल्टा पुल्टा सब कुछ है सम्भव ,
नहीं अब कुछ भी रहा असम्भव ,
कल्पनावों को यह पंख लगाए ,
जीवन को यह नए रंग से सजाये ,
फोटोग्राफी का है यह सब कमाल ,
कुछ भी ,कहीं भी मचाये धमाल ,
अलका गुप्ता
क्या अचम्भा हम यह क्या देख रहे हैं |
कितनी है लोलूप निगाह हम तौल रहे हैं |
धरती करके बंजर चाँद भी हम खींच रहे हैं |
स्वार्थ में कितने अंधे हम ऊपर पहुँच रहे हैं ||
डॉ. सरोज गुप्ता
चलो चाँद पर घर बसायें
~~~~~~~~~~~
बुलडोजर चाँद पर चलेगा , उपमाएं आहें भरेंगे !
गंजे सिर की बात चली तो , कैसे तेरा नाम लेंगे !!
नील ने रखा पहला कदम , जग में तब आया नया सवेरा !
चंदा मामा आ गए पास , उजाला करता जब होता अँधेरा !!
बुलडोजर चाँद पर चलेगा , उपमाएं आहें भरेंगे !
खिलोनों की बात चली तो ,कैसे तेरा नाम लेंगे !!
दुनिया का शोर न होगा,बलात्कार,शोषण,एसिड अटैक न होगा !
सुहागिनें यह कहती नहीं दिखेंगी, चाँद निकले तो पानी पीवां !!
बुलडोजर चाँद पर चलेगा , उपमाएं आहें भरेंगे !
प्यास बुझाने की बात चली तो ,कैसे तेरा नाम लेंगे !!
दिल चुरा चाँद शाला ,आशिको का बनेगा इशकी आशियाना !
शायरी जिसे न आती हो ,वो भूले से भी न आना इस मयखाना !!
बुलडोजर चाँद पर चलेगा , उपमाएं आहें भरेंगे !
हुस्न की बात चली तो , कैसे तेरा नाम लेंगे !!
प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
~कुछ समझ ले इंसान ~
कितना बदल गया इंसान
खुद को समझे वों महान
हम तक पहुँच ही गया है
अब हमें कैद करना चाहता है
पर शायद वों भूल गया है
इंसान मरते मिटते रहते है
लेकिन हम आज भी ब्रह्मांड में
अपना अस्तित्व बनाये रखे है
प्रकृति और जीवन के स्तंभ है हम
सृष्टी हमारे बिना चल नही सकती
पढो, देखो, समझो और हमे जानो
लेकिन हमें हमारे हाल पर छोड़ दो
कितना बदल गया इंसान
खुद को समझे वों महान
हम तक पहुँच ही गया है
अब हमें कैद करना चाहता है
पर शायद वों भूल गया है
इंसान मरते मिटते रहते है
लेकिन हम आज भी ब्रह्मांड में
अपना अस्तित्व बनाये रखे है
प्रकृति और जीवन के स्तंभ है हम
सृष्टी हमारे बिना चल नही सकती
पढो, देखो, समझो और हमे जानो
लेकिन हमें हमारे हाल पर छोड़ दो
सभी रचनाये पूर्व प्रकाशित है फेसबुक के समूह "तस्वीर क्या बोले" में https://www.facebook.com/groups/tasvirkyabole/
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