Wednesday, February 20, 2013

20 फरवरी 2013 का चित्र और भाव




नूतन डिमरी गैरोला 
तू न तू रहे
मैं न में रहू
छोडनी होगी अब
जिद अभिमान
नारी पुरुष
एकसमान|


Yogesh Raj .
मुझसे मत पूछो तुम्हारा कसूर क्या है,
मालूम होगया तेरी फितरते-गरूर क्या है,
निकल जाओ फ़ौरन अभी मेरी जिंदगी से,
तुझे पता नहीं इश्क करने का शऊर क्या है

नैनी ग्रोवर
ताउम्र करते आये तुम, अपनी मनमानी,
कभी कोई बात तुमने, औरों की ना मानी ..

ना कोई रिश्ता निभाया, ना वादा कोई तुमने,
बस खेल समझ ली तुमने, सारी जिंदगानी ..

अब वक़्त आ गया है समझ जाओ, अरे नादाँ,
वरना मैं आ गई अपनी पे, तो कर दूंगी पानी-पानी


Neelima Sharma 
कहलो सजनी , जो कहना हैं
आज तुम्हारी बारी हैं
लफ्जों से नाता हैं तुम्हारा
अश्को से तुम्हारी यारी हैं
अब कर्मो का लेख कह लो
या कहलो ज़माना भारी हैं
शादी कर लो तो भैया
पर घर की मालिक नारी हैं
लड़-झगड़ कर प्यार भी करती
इस नारी पर दुनिया बलिहारी हैं


Aruna Singh 
कितना ही रूप रचाओ
हर रूप पहचानती हूँ
आज प्रमोशन का बहाना करके
गर्लफ्रेंड के साथ डेट पर मत चले जाना

सुमन कपूर 
छोडो जिद्द अब दिलजानी
बीते न यूँ ही जिंदगानी
तुम जीते लो मैं हारी
घर घर की यही कहानी


Bahukhandi Nautiyal Rameshwari 
जो चाहते हो घर आँगन शांति अगर ।
रखो पग वहीँ, जो हो पत्नी की डगर ।।
मंदिर समझना सदैव, सुसराल की नगर ।।
होगी हर हाल में शिकस्त, जान लो मगर ।
हथियार जो उठाना, तुम चाहो भी अगर ।
नारी आगे झुके, गुणीजन ब्रह्माण्ड सगर ।
नारी से चले ज़माना, आजमा लो चाहो गर ।
हर हाल में करो तुम, यूँ धर्मपत्नी की कदर ।रामेश्वरी
[सिर्फ एक व्यंग्य]


बालकृष्ण डी ध्यानी 
वंही हार मान ली थी मैंने

जब हुये थे फेरे सात
देना है अब पग पग में बस तेरा साथ

नाराज हो तुम आज
जरुर मुझसे हुई होगी कोई बात

निकाल लो सारा गुस्सा
फिर शांत बैठ कर करेंगे बात

किसी भी चीज का हल
प्रिये ना है इस गुस्से के साथ

देखो कितना लहू व्यर्थ गया तुम्हरा
थी ना ये फिजूल की तकरार

सेहत पर फर्क पड़ेगा इससे तुम्हरी
हाँ मैंने वंही पर मान ली है हार

जब होये थे फेर सात
देना है पग पग में बस तेरा साथ


डॉ. सरोज गुप्ता 
मेरी जान,जान हाजिर
~~~~~~~~~~
२१वी सदी की नारी देती चेतावनी इशारा समझो,मैं ज्ञानेश्वरी !
मैं चली मायके,भूल जाओ,लद गए वो दिन,तुम्हारी परमेश्वरी!!

भूल हुई निकालो न मुझे अपने प्राणों से,ओ मेरी प्राणेश्वरी !
मेरी जान सात फेरो की कसम , मैं तुझ पर बलिहारी सतेश्वरी !!

बाहर घना अँधेरा है, खा लूंगा यही ठोकर, ओ तमहरिणी !
भूल हुई निकालो न मुझे अपने प्राणों से,ओ मेरी प्राणेश्वरी !!

मैं हूँ अफसर बड़ा,दही का बड़ा,खा ले मेरी जान ओ क्लेशहारी !
भूल हुई निकालो न मुझे अपने प्राणों से,ओ मेरी प्राणेश्वरी !!

यहीं दिखा दे नरक,बिना खता भी सजा है मंजूर,ओ मेरी स्वर्गेश्वरी !
भूल हुई निकालो न मुझे अपने प्राणों से ,ओ मेरी प्राणेश्वरी !!

भूल हुई निकालो न मुझे अपने प्राणों से ,ओ मेरी प्राणेश्वरी !
मेरी जान सात फेरो की कसम मैं तुझ पर बलिहारी सतेश्वरी !!

२१वी सदी की नारी देती चेतावनी इशारा समझो,मैं ज्ञानेश्वरी !
मैं चली मायके,भूल जाओ,लद गए वो दिन,तुम्हारी परमेश्वरी!!


किरण आर्य 
थोड़ी सी नोक-झोक थोड़ी सी कहा सुनी
जीवन की कहानी ऐसे ही तारो से बुनी
मैं और तू इक ही रथ के है हम पहिये
अधूरे इक दूजे बिन फिर काहे ये तना तनी ..........

सुनते आये थे हमेशा कही और अनकही
तकरार था बातों में प्रीत भी दिल में रही
नफ़रत से रहे कोसों दूर प्रेम के हम पंछी
पूरक इक दूजे के जुदा हमारी रूह अब नहीं ..........

तू-तू मैं-मैं खट्टी मीठी नोक-झोंक तकरार
इन संग बहती जाए जिंदगी लगे नैया पार
समझे अस्तित्व इक दूजे का रखकर मान
दिल में पनपे नेह का पौधा रूह बसे स्नेह अपार ......

जान लिया है हमने सुखमय जीवन का राज़
रखे अहम् को परे दिल से छेड़े प्रेम के साज़
स्त्री पुरुष से पहले है मानुष प्रेम रंग में रंगे
इक दूजे साथ बिन कैसे संवरे बिगड़े काज़ ........



अलका गुप्ता 
यूँ ही भटकते रहो...... तुम आवारा राहों में |
दिल पर अपने तुम्हें ऐतवार नहीं....... क्यूँ ?
तुम चलो वहीँ ........जहाँ मंजिल हो तुम्हारी |
क्यूँ .........दिल पे तुम्हारे लगाम नहीं रहती |
क्यूँ ........तुम छींके की तरह बिखर जाते हो |
क्यूँ ......बार-बार कहानी एक ही दोहराते हो |
क्यूँ कोई तुम्हें मेनका कभी उर्वशी नजर आती है ||


भगवान सिंह जयाड़ा 
मैं हूँ पश्चिमी सभ्यता की नारी ,
मैं तुम मर्दों को क्या समझू ,
अगर बिना मेरी मर्जी के चलोगे ,
तो समझ लो खैर नहीं तुम्हारी ,
बरना बहार के दरवाजे खुले है ,
चुपचाप यहाँ से खिशक जावो ,
तुम को सदा के लिए छोड़ दूँगी .
तलाक तुमको तुरंत दे दूँगी ,
मैं नहीं हूँ जैसे हिन्द की नारी ,
एक बार सात फेरे क्या फेरे ,
जिंदगी भर सेवा करूँ तुम्हारी ,
इस लिए मेरी बात मान लो ,
समझौता मेरे से तुम करलो ,
बात मेरी तुम मान लो ,
इसी में भलाई है तुम्हारी ,,


प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल  
...... बहुत कुछ बदलना है

मैं तो सुनता आया, हाँ में हाँ मिलाता आया तेरी
घर में हो या फिर बाहर, हर जगह बस चलती तेरी
मिल गया शायद सब, अब तुम्हे जरुरत नही मेरी
तुम्हारे इशारे अब भी न समझा गर तो खैर नही मेरी

कल जो गलत हुआ मुझे कारण समझा तुमने
कल तुम्हारा साथ दिया आज लगी अंगुली उठाने
कहीं कोई अपवाद हो लेकिन लगी तुम ताने कसने
भीड़ बनकर आज हर मर्द को लगी तुम कोसने

मैं कहीं भाई कहीं पिता हूँ, कहीं पति कही साथी हूँ
फिर भी गलत मानसिकता के संग मुझे तोलती हो
लोगो के बहकावे में आकर मेरे जज्बातों से खेलती हो
करे कोई भरे कोई, अब हमें कटघरे में खड़ा करती हो

तुम्हारे आगे बढ़ने में साथ हमने भी तुम्हारा निभाया है
वक्त बदल गया है, अब संस्कार और शिक्षा संग बढ़ना है
है कहीं गलत कुछ अगर, उसे साथ मिलकर सुधारना है
नर - नारी बन नही, इंसान बन हमे बहुत कुछ बदलना है


प्रभा मित्तल 
मैं हूँ आज की नारी,
नहीं किसी से हारूँगी।
बरसों से सुनती आई हूँ,
अब मैं तुम्हें सुनाऊँगी।
इतने भोले तुम हो नहीं,
जितने तुम बन जाते हो।
मेरे प्यार और विश्वास को
तुम ही तो छलते आए हो,
मेरे मन मंदिर की प्रतिमा को
धोखे से तुम्हीं तोड़ते आए हो।
सच क्या है मैं जान गई हूँ
झूठ को अब पहचान गई हूँ।
तुमने जब जो चाहा किया वही,
अब मैं अपनी कर दिखलाऊँगी।
बहुत सुना है बहुत सहा है
अब न सुनूँगी नहीं सहूँगी
मैं हूँ आज की नारी,
नहीं किसी से हारूँगी।


सभी रचनाये पूर्व प्रकाशित है फेसबुक के समूह "तस्वीर क्या बोले" में https://www.facebook.com/groups/tasvirkyabole/

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