बालकृष्ण डी ध्यानी
आँसूं
आ ही जाता है ..३
जो दर्द दिल से लगा होता है
आँसूं बनकर आँखों में से
गम वो बह ही जाता है
आ ही जाता है ..३
एक डोर होती है वो
जो अस्कों से बंधी होती है ...२
आती है सुख दुःख मै वो
छलकना है उसे छलक ही जाती है
आ ही जाता है ..३
जो दर्द दिल से लगा होता है
आँसूं बनकर आँखों में से
गम वो बह ही जाता है
आ ही जाता है ..३
यादों के समंदर में
नाव सी हिचकोले लेती हूँ ...२
मजधार में फंसी मै
नमकीन जल में गोते खाती हूँ
आ ही जाता है ..३
जो दर्द दिल से लगा होता है
आँसूं बनकर आँखों में से
गम वो बह ही जाता है
आ ही जाता है ..३
रिश्तों से जुडी सड़क पर
अकेले ही चला करती हूँ ...२
आता जाता है वो रिश्ता
टूटकर वो भी रिस जाने को
आ ही जाता है ..३
जो दर्द दिल से लगा होता है
आँसूं बनकर आँखों में से
गम वो बह ही जाता है
आ ही जाता है ..३
नैनी ग्रोवर
ऐ अश्को यूँ सरेआम, शर्मिन्दा ना करो,
मुझे रहम की बस्ती का, बाशिंदा ना करो..
टूटे दिल को, किसी सहारे की दरकार नहीं,
बस, जो मर चुके सपने, उन्हें ज़िंदा ना करो !!
अरुणा सक्सेना
जुबां से कहने की आवश्यकता नहीं होती
दिल खुश होता तो आँख यूँ ना रोती
चुभन हो दिल में तो आँख यूँही भर आती है
अश्क बन हौले -हौले राहत दे जाती है
अलका गुप्ता
---वह कौन थी---
आँखों में आंसू ,
हाय ! गले में फंदा |
आग ही आग थी ..
जल गयी वह ..
या जलाई गई ?
वह कौन थी ?
समझ गए आप ..ना !!
आप की सताई हुई |
रोती थी घबराई सी ,
या घुटन ही घुटन मिली |
लुट गए वसन जिसके ...
वह कौन थी ?
समझ गए आप.. ना !!
बोलियाँ लगाई थीं ,
रात्रि के अंधेरों में |
लुट गई जो ...
वह कौन थी ?
समझ गए आप ..ना !!
दिन के उजालों में ..
आपने बहन कहा |
सताई हुई जब मरी ,
घढ़ियाली आंसू बहाए..
आप ही आप ने |
मर गई जो ...
वह कौन थी ?
समझ गए आप .. ना !!
मांगी थी इज्जत की ...
भीख जिसने ....
हँसे थे कितना आप तब |
आश्चर्य !!! भूल गए..
क्या ??? आप सब |
आपकी सताई हुई ...
वह कौन थी ?
समझ गए आप ..ना !!
वह कौन थी ?
प्रजापति शेष
जब आधी दुनिया नारी है तब भी क्यों बेचारी है ?
ताकत् में है नर से ज्यादा फिर क्यों लाचारी है ?
सृष्टि सत्ता का केन्द्र हो कर भी शेष गुनाहगारी है ?
अपनी हिम्मत को ले पहचान , वरना तेरी ये गद्दारी है !
Dinesh Nayal
गलती बस इतनी कि
करार कर ना सके,
जो बात थी इस दिल में
वो जुबान पर न ला सके,
अब रोते भी हैं तो इस कदर
आँसू किसी को दिखते नहीं,
दोस्ती में कुरबां कर बैठे
प्यार वो अपना,
पूछो तो कहते हैं
वो दिखावा था शायद
मेरे समझ न आया
इन्हीं बातों को लेके
सारी रात मैं रोया
गलती से बैचारा मैं प्यार
कर बैठा!
करता भी क्या
और
करता भी क्या
इसमें था मेरा कोई नी कसूर
मोहब्बत के हाथों हो गया था
मजबूर...
आँखें नशीली उसकी
जब चलती थी लगती थी
दुनिया की रानी
मीठी मीठी उसकी बातें
वो सबसे अलग
वो सबसे जूदा...
इन्हीं बातों को लेके
सारी रात मैं रोया
गलती से बैचारा मैं प्यार
कर बैठा!
:
बलदाऊ गोस्वामी
बहते अश्क नयन से,दु:ख सुख की गोहार है।
पुराने पड़े पन्नों से,प्रेम की कराह है।।
नयन की झील से,अश्कों की बौछार है।
बातों की उधेड-बुन से,ख्वाबों की राह है।।
दु:खीयों की अश्क पोंछने से,स्वर्ग की राह है।
पुराने पड़े पन्नों से,प्रेम की कराह है।।
उदय ममगाईं राठी
ज्येठ की तपिश में खेत खलिहानों में हुआ है क्या हाल
माथे से टपकता पसीना नहीं इसका उसको कोई मलाल
बस जी रही है इस सोच में की जाऊंगी पिया संग अबके साल
जब न ली सुध बेरहम ने शहर की रंगरलियों में न आया ख्याल
इसी क्रोध में आज एक खिलती कलि हुयी अंगारे सी लाल
ये ऐसी चिंगारी भड़क उठी इसे अब बुझाये किसकी मजाल
सोचकर "राठी" दौड़ा गाँव की ओर चलके खरगोश की चाल
प्रजापति शेष
एक नही दो दो मात्राये, तुझ पर बोझा है भारी
अपनो का ही आघात सहे केसी ये तेरी है दुनियादारी
सब कुच्छ सह कर भी मिटती नही ये तेरी खुद्दारी
नर तो क्या विधाता भी नतमस्तक है तेरे आगे नारी ...
प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
~ ये आँसू ~
आँसू न जाने कब बन गए मेरा नसीब
अब यही मेरे दिल के लगते बहुत करीब
चाहत थी बस मुझे मुस्करा कर जीने की
अब तो आदत सी हो गई अश्क पीने की
यूँ तो हजारो गम खुशियों संग आते है
अपनों संग पराये इनकी सौगात दे जाते है
अपने सुख की खातिर रिश्ता जोड़ जाते है
मानते जिन्हें अपना वों भरोसा तोड़ जाते है
दर्द मोहब्बत का है या दर्द बेवफाई का
दर्द दिल का समेटे अब ये निकल पड़े है
'प्रतिबिंब' आँखों में दिए आँसू ये किसने
याद आई तो कुछ ज़ख्म लगे हैं उभरने
भगवान सिंह जयाड़ा
मेरे इन दर्द के आंसुओं की किसी ने कद्र न जानी ,
मैं जलती रही यूँ सदा पर ब्यथा किसी ने न जानी ,
मैंने हर रूप में दिया साथ जमाने का , क्या मिला ,
जमाने ने उसका मुझे दिया यह क्या दुखी सिला ,
कभी भावनावों से अजीबो गरीब खिलवाड़ किया ,
कभी यहाँ रुडीबादियों ने मुझे ऐसा जलील किया ,
पुरुष प्रधान समाज में यूँ ही सदा मैं जलती रही ,
फिर भी यहां मर मर कर मैं सदा जीती यूँ रही ,
नारी प्रदान समाज की यहाँ कल्पना करते हो तुम ,
और नारी इज्जत का ख़याल कभी करते हो तुम ?
कंधे से कंधा मिला कर चल रही हूँ मैं समाज में ,
फिर भी मेरी इन आँखों में यह आंसू देते हो तुम ,
मेरी शक्ति को पहचानने की कोशिश करो जरा ,
मैं अपने बल पर हिला सकती हूँ यह सकल धरा ,
मैं अबला नहीं हूँ ,समझ लो अब दुनिया वालों ,
सबला हूँ मैं ,मैं कुछ भी कर सकती हूँ समझ लो ,
मेरे इन दर्द के आंसुओं की किसी ने कद्र न जानी ,
मैं जलती रही यूँ सदा पर ब्यथा किसी ने न जानी ,
डॉ. सरोज गुप्ता
आंसुओं की जुबानी
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नारी के आंसुओं का जो प्रयोजन बने , वो क्या गंगा में स्नान करे !
भ्रूण - हत्या की जो पटकथा बुने,वो कैसे पत्नी का सही मान करे !!
सात फेरे के बंधन में बंधी बन्दिनी ,माँ का आंचल छोड़ ससुराल चली !
आंसुओं को गीला रखा जिन्होंने,वो बहु कैसे ससुराल पर अभिमान करे !!
चीथड़े -चीथड़े हुए मेरे अंग प्रत्यंग,छोटे बड़े सबने किया मेरा शील भंग !
नसीहतें,फब्तियां भी झोली भर-भर मिली ,अपने ही मुझे अपमान करे !!
चार जवान बेटे जिसके,उस विधवा माँ का राजपाठ जस का तस न हो !
कफन भी चार घरों के रूमालो से बने,माँ कोख पर कैसे अभिमान करे !!
किरण आर्य
आंख और आंसू का गहरा नाता सा है
सुख दुःख हर भाव रवां इन आँखों में
नेह अनुरक्ति इंतज़ार रुसवाई यादें
हर अहसास को ब्यान करती है आंखें ........
जब ख़ुशी कदमों की निगहबानी करे
तब आसूं ये जज्बातों की जुबां बन जाते
जब ग़म रूह के दरीचे में से रिसने लगता
तो आँख ये समेट लेती अश्कों का सागर ...........
अनुरक्ति जब अपने इष्ट को करे नमन
तो भाव वो सर्वोतम आँखों से ही है बरसे
बसंत की अल्हड़ रिमझिम फुहार सा ही
कभी लगे नमक से खारे ये अश्क मेरे
कभी इन में बसी अहसासों की मिठास भी
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सभी रचनाये पूर्व प्रकाशित है फेसबुक के समूह "तस्वीर क्या बोले" में https://www.facebook.com/groups/tasvirkyabole/
सभी मित्रों के भाव पढ़ कर बहुत ख़ुशी हुई ,,बडथ्वाल जी आप के इस प्रयाश की जीतनी प्रसंशा की जाय कम ही है ,,,बहुत बहुत धन्यबाद ,,,,
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर भावों की पिरोई हुई एक लड़ी .. जिसका हुक आप है प्रति जी तहे दिल से आभारी हूँ आपकी इस भावों को संजोने के लिए .. सभी मित्र बहुत खूब लिखते हैं ..!!
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