नैनी ग्रोवर
बिछड़ कर शाख से, हम जाने कब झड़ जायेंगे,
ले चलेगी हवा जिधर, फिर उसी और उड़ जायेंगे..
सीख इंसान जीना हमसे, और मर जाना भी सीख,
जीते जी तो बहुत कुछ दें, देंगें खाद जब सड़ जायेंगे..
हमें बनाया सृष्टि ने, हमें काम इसी के ही करने हैं,
तेरे जैसे नहीं हम इंसान, जो लालच में बिगड़ जायेंगे..
फूंक रहा क्यूँ ये प्यारी धरती, बिगाड़ रहा क्यूँ संतुलन,
सोच क्या होगा, जब धरती से, पेड़-पौधे उजड़ जायेंगे.
बालकृष्ण डी ध्यानी
तू मुसाफिर यंहा
हर पत्ते में एक तत्व छुपा
आज वो कुछ बोल रहा
मानव बना है तू इससे
इसको ही तू भूल रहा
हवा, पानी, पृथ्वी
आकाश और अग्नि
का जब मिलन हुआ
तेरा आकार तब स्वरूप हुआ
पंच इन्द्रियों से रचा
तेरा शरीर रूपी ढांचा
आज भी तू कुछ खोज रहा
अपने में तू बस खो रहा
पत्ते पत्ते सूख कर
पेड़ों से तू टूटकर उड़ रहा
आता जाता रहा तू
बना सिर्फ तू मुसाफिर यंहा
हर पत्ते में एक तत्व छुपा
आज वो कुछ बोल रहा
मानव बना है तू इससे
इसको ही तू भूल रहा
अंजना चौहान सिंह
हरी हरी पत्तियाँ चहुँ और हरियाली छाई
मन में नयी तरंग नयी उमंग भर लाइ
जैसे ही आया मौसम पतझड़ का
ये डालियों से गिर जमीन पर आयीं
पर वजूद खो जाने पर भी इन्होने
पेड़ के लिए खाद बनाई
नहीं मिटता पत्तियों का वजूद कभी
पेड़ों से गिर जाने के बाद
हर पतझड़ के बाद आता है बसंत
आ जाती हैं नयी पत्तियाँ
समय चक्र बड़ा बलवान यूँ ही चलता जाता है
पुरानी पत्तियों की जगह नयी को स्थान मिल जाता है
किन्तु ना भुलाना पुरानो का वजूद कभी
इनसे हमारा गहरा नाता है
ठीक उसी तरह बड़ों का करो सम्मान
क्योंकि हमारा बड़ा ही हमें इस दुनिया में वजूद में लाता है
किरण आर्य
पौध से फूटता कोमल सा पत्ता
हरीतिमा लिए कोमल स्निग्ध सा
समय के साथ परिपक्व होता .........
मौसम के हर पड़ाव संग चलता
धुप बारिश सर्दी गर्मी सहता
जीवन के हर रंग का साक्षी .........
पत्ता ये उम्र के पायदानों सा
हरे से गहरा हरा होता
फिर पीलेपन में झलकती
यौवन से पौढ़ता को अग्रसर
जीवन की छवि ही ............
इक दिन गिर मिटटी में
मिटटी सा ही हो जाता
वैसे ही जैसे मिटटी निर्मित
मानुष का ये शरीर
अलका गुप्ता
वृक्ष की शान पे हमेशा मुस्कराई पत्ती |
द्रवित हुई विछड़ कर वृक्ष से गिरी पती |
हवा ने भी खूब इधर-उधर नचाई पत्ती |
हाल पर अपने विचलित छटपटाई पत्ती |
तभी वृक्ष ने वहीँ से आस जगाई उसकी |
थी अभी तक मेरा जीवन आधार तू पत्ती !
व्यर्थ न जीवन अब भी, तू क्यूँ उदास पत्ती |
अब भी करेगी इस सृष्टि का तू उद्धार पत्ती |
निराशा मे रोना मत कर आशा संचार पत्ती|
हर प्राणी के जीवन का...है तू आधार पत्ती |
सजाना सँवारना या खाद बन मिटटी बनना|
उद्देश्य हो फिर से इस सृष्टि का उद्धार करना |
मुस्कराई ..समझ गई यह जीवन -सार पत्ती |
करेगी अर्पण ये जीवन सृष्टि कल्याण हेतु पत्ती ||
सुनीता शर्मा
एक टहनी सा परिवार
हम पत्ते बने इसका श्रृंगार
साथ बढने से रहता है सरोकार
प्यार की छाँव में बसे इसका संसार !
छोटे बड़े का भेद नहीं
स्वार्थ द्वेष का फेर नहीं
उन्मुक्त जीवन जीते सभी
इनकी भावनाओं का कोई मोल नही !
वर्षा हरदम मिलती स्नेह की ,
शब्द वाटिका बनाती भावों की ,
गगन को छूने की लालसा में ,
खाद डालती आत्मीयता यहाँ सभी की !
ममता जोशी
पतझड़ आया और पेड़ के पत्ते झड़ गए,
उसे अनदेखा कर सब मुड़ गए,
पंछी भी सब उड़ गए,
वक़्त बदला,मौसम बदला,
पेड़ में फिर हरे पत्ते उग गए ,
देखते ही देखते फिर सब उससे जुड़ गए,
इसी तरह सभी के जीवन में आते हैं बुरे दिन,
पर जो हार न माने समझो वो जीत गए.
प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
वक्त की मार
यौवन कल तक हरा था
रंग सावन सा जैसे चढ़ा था
दंभ भी कुछ कम न था
साख पर निर्भीक जुड़ा था
इतराता था कभी लहरा लहरा कर
स्वागत करता सबका मुस्करा कर
प्रेम करता सबसे पत्तो संग मिल कर
आश्रय देता था सबको छाया कर
पर वक्त भी बड़ा जालिम होता है
सब कुछ एक दिन छीन लेता है
उम्र की दुहाई दे सबसे दूर करता है
प्यार मिला जहाँ वहीं पर दर्द देता है
डॉ. सरोज गुप्ता
मैं धवल ,नवल पीपल का पत्ता
कल तक थी मेरी पेड़ पर सत्ता !
समय ने किया अपनों से नत्था
जीऊंगा कैसे छोड़ अपना जत्था !!
मैं मरकर भी सदा रहूंगा सदाबहार
मैं चिकना चौड़ा चंचल लहरदार !
फ्रेम बना नया रूप देते कलाकार
प्रेमी तस्वीरो को सजाता हूँ दिलदार !!
मैं मरकर भी चारा हूँ जानवरों का
उत्तम चारा मानते मुझे हाथियों का !
मिट्ठी में मिल जाऊँगा होकर मिट्ठी का
खाद बन पोषण करूंगा नवजीवन का !!
सभी रचनाये पूर्व प्रकाशित है फेसबुक के समूह "तस्वीर क्या बोले" में https://www.facebook.com/groups/tasvirkyabole/
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