Saturday, February 2, 2013

01 फरवरी 2013 - चित्र और भाव

( 01/02/2013 के चित्र पर मित्रो सदस्यों के भाव )


Pushpa Tripathi 
सूरज गोल , चंदा गोल
हर ग्रह है गोल मटोल l
सौरमंडल के सदस्य निराले
अपने गुणों के खान निराले
वैज्ञानिकों का शोध बताता
सूर्य के चक्कर सारे निराले l
पृथ्वी हमारी बड़ी सयानी
देती हमको जीवन व्यापन
अधिकांश ये सारा जल भर लेती
कुछ हिस्सों में हरिताभ है देती l
पवित्र सरिता कल खल बहती
सुरभि नतमस्तक सीस झुकाती
है ऋषियों का प्रताप बहुत ही
बहती गंगा स्वर्ग उतारें l


अरुणा सक्सेना 
कल-कल ,कल-कल बहती नदिया, जीवन्तता हरियाली थी॥ 
प्यारी-प्यारी धरती मेरी, जिसकी छटा निराली थी॥ 
हरे-भरे खुशहाल यहाँ के, लगते थे सभी निवासी ॥
दशा क्या बिगङी धरती की ,अब अपने भी बने प्रवासी ॥

डॉ. सरोज गुप्ता 
धरती गोल ,
चंदा गोल ,
रोटी गोल ,
माँ की बिंदी गोल ,
पैसा गोल
किसी के लिए अनमोल
कोई पाए बेमोल
यह कैसा झोल ?

नेताओं के पेट
गोल मटोल ,
करके घाल -घपेल
धरती की सुन्दरता
करते मटिया मेट !
रंगों का है घोल
प्रकृति गोलमगोल ,
लाल-लाल टमाटर गोल ,
नौ नौ आंसू
रुलाये प्याज गोल !

बगीचे से गोल नारंगी तोड़ ,
ले भागा माली का छोरा ,
बगीचे के मालिक ने
गोल-गोल गोलियां
मारी ताबड़तोड़ !
फल अब मिले तोल-मोल !
धरती गोल
फिर भी इतना झोल ?

बालकृष्ण डी ध्यानी 
पृथ्वी माँ 

तुझ को ही दर्द है 
कोई भी वो अंग है
दुःख होता होगा तुझ को भी माँ 
जो हो रहा तेरे संग है .......

माँ मेरी धरती में तेरी 
तुझे भी तो माँ बड़ा कष्ट है
चिकनी मिट्टी सा फिसलन 
तेरा यंह हर जन है 

भूगोल सा गोल 
माँ तेरा ये तन मन है 
मूल है तू मेरी माँ 
भुला मै वो पल पल हूँ 

धरणी मेरी करणी मेरी
नोचों तुझ को मै हर पल 
एक दिन मिल जान मुझको 
तेरा ही तो हूँ माँ मै वो अंग 

देख रही तू रास्ता 
कब आऊँगा मै सीधे रहा 
पर उलझता ही जाता हूँ माँ 
बड़ा विचित्र है ये मकड़ा जाल 

तुझ को ही दर्द है 
कोई भी वो अंग है
दुःख होता होगा तुझ को भी माँ 
जो हो रहा तेरे संग है 

भगवान सिंह जयाड़ा 
जल प्रलय की सी यह तस्बीर ,
कितनी भयावह सी लगाती है,
सोचो अगर ऐसा कभी हो गया ,
सब कुछ पानी में समा जाएगा ,
कुछ नहीं बचेगा इस धरती पर ,
सब कुछ जल में समा जाएगा ,
कुछ छोटे मोटे प्रलय तो आते है ,
धरती पर वह तवाही कर जाते है ,
सोचो जब महा प्रलय कभीआयेगा ,
सब कुछ यहाँ जल में समा जाएगा ,
ईश्वर करे वह समय कभी न आए ,
सब इन्शान यहाँ अब संभल जाए ,
सब मिलकर पर्यावरण को बचाए ,
दुनिया को अब प्रदूषण मुक्त बनाएं ,
यह कर्तब्य समझें यहाँ सब अपना ,
तबी सफल होगा सब का यह सपना ,



किरण आर्य 
ब्रहमांड जिसमे पृथ्वी का अस्तित्व है समाया
हे ईश्वर निराली है तेरी अदा अजब तेरी माया

गोल धरती सी है मृगतृष्णा मन रहता भरमाया
मन पर उहोपोह का अँधियारा घना है क्यों छाया

जल से घिरी धरती सारी प्यासी निस्तेज़ सी काया
मोहमाया के बंधन न्यारे मन जीव का रहे ललचाया

निज स्वार्थ में लिप्त मन लूट खसोट ही है कमाया
सत्कर्म से विमुख अज्ञानी ज्ञान पे अपने इतराया 

अंत समय में हुआ भान जब अपने पे है लजाया
बोया बबूल मन कंक्रीट पर तो आम कहाँ से पाया 

घरती की गोलाई साथ घूमा मन इत उत मंडराया
कस्तूरी चाह मृग सी जो अंतस बसा ढूंढ उसे ना पाया 

बेबस भटकन अतृप्त रूह संग दर्द दिल का है कराहाया 
फिर भी जाने क्यों ये मानुष मन बात समझ ना पाया

राम राम जप जिव्हा से हृदय कलुषित क्यों रहा भाया
मन में बसी छवि प्रभु की ढूंढे जग में क्यों रहे पगलाया 

नैनी ग्रोवर 
हो जाएगा सब कुछ समाप्त, बस खालीपन रह जाएगा
थक चुकी सृष्टि मानव से, कितना कोई सह पायेगा ..

उसके दिए को सहेज ना पाया, मन को लालच ने भरमाया,
मिटाता रहा, जो प्रभु ने दिया, अब तो मात्र पछतायेगा ...

सब कुछ पाने की तृष्णा में, सब कुछ गवां बैठा है पगले,
क्या महल क्या चोबारे तेरे, कुछ भी नज़र ना आयेगा ..

नई सभ्यता की होड़ में, जला दिए सब जंगल, पर्वत,
हंसने लगा ब्रम्मांड भी तुझपर, तू मुर्ख ही कहलायेगा ..

देख अब भी समय है ''बन्दे'' जाग ज़रा, संभल भी जा,
वरना कल आने वाला सूरज, सारी धरती को जलाएगा !!


जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासु 
"धरती"

जिस पर हम रहते हैं,
रचि थी ब्रह्मा जी ने,
मानव के लिए,
वेद पुराण कहते हैं,
ब्रह्माण्ड में,
हमारी धरती है,
धरती पर वो सब है,
जिसके लिए देवता,
तरसते हैं,
जब जब होता है अधर्म,
धरती पर हमारी,
देवता अवतरित होते हैं



अलका गुप्ता 
सभी ग्रहों में है सबसे न्यारी ! हमारी धरती |
पृथ्वी तो माँ है और हमारा घर भी है धरती ||

गोल-मटोल धरा ये भण्डार अति...बसुन्धरा |
दिखती अंतरीक्ष से सुन्दर नीली हरी धरती||

स्वार्थ में अंधे हो अति दोहन कर रहे मानव |
भूल गए पालती पालने में लाड़ से माँ धरती ||

काटते पेड़ों को देते जो हमें जीवन...प्राण वायु |
छाँटकर पहाड़ों को नदी की धार में बाँध धरती ||

भूल ना गर्व में चूर मानव भवन देख गगनचुम्बी !
भूकंप कभी ज्यालामुखी से फुफकार उठेगी धरती ||

सच में माता है ये 'हमारी' ....भाग्यविधाता धरती |
उजाड़ ना हरियाला आँचल माँ के बाद है माँ धरती ||

Neelima Sharma 
धरती माँ !!
आधी से ज्यादा तुम पानी से भरी हो 
देखने में कितनी हरी हरी हो 
फिर भी पानी को तरसते हैं प्राणी !!!

धरती माँ!!
गर्भ में तुम्हारे अनेको रतन 
प्रसव पीड़ा भी असीम तुम्हे 
फिर भी कुपोषण के शिकार तुम्हारे बच्चे!!!

धरती माँ!!
तुम कितनी धीर सहनशील 
सहती तुम हर अत्याचार उग्र 
फिर भी मानव इसपर कितने व्यग्र!!!!!

धरती माँ !!!
तुम पालती सारी संतान 
नही मानती खुद को महान 
फिर भी भूखे मारते माँ- बाप को बच्चे!!

Pushpa Tripathi 
अमृत धार से फैली है धरती
भू मंडल पर हरित है धरती
सुख सागर जल लबालब भरे है
पृथ्वी पर संसार है धरती l

प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 
पृथ्वी और प्रकृति का गहरा नाता है 
दोनों को एक दूजे का साथ भाता है 
जल और धरती में बड़ी असमानता है 
यहाँ धरती कम, पानी अधिक दिखता है 
फिर भी धरती पर कहीं पानी की कमी है 
कहीं बाढ़, कहीं सूखा तो कही रहती नमी है 
कटते पेड़, जलते जंगल, पहाड़ो को तोड़ रहे है
वन-सम्पदा, पर्यायवरण को जीवन से मोड़ रहे है 
आओ पर्यायवरण को हम बचाने का प्रयास करते है 
पानी को बचाते है और प्रकृति से खिलबाड़ कम करते है


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सभी रचनाये पूर्व प्रकाशित है फेसबुक के समूह "तस्वीर क्या बोले" में https://www.facebook.com/groups/tasvirkyabole/

2 comments:

  1. हार्दिक बधाई सभी के सुन्दर भावों के लिए .......

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  2. सभी मित्रों के भाव बहुत सुन्दर हैं,, और प्रति जी सबके भावों को सामने लाने का कार्य आपने बहुत ही सुन्दरता व् लगन से पेश किया है,, हार्दिक धन्यवाद आपका .. मुझे कभी लगा ही नहीं था के यह भाव भी हैं मुझमें ..

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शुक्रिया आपकी टिप्पणी के लिए !!!