नैनी ग्रोवर
भटकते रहे, ऐ मालिक हम हर सवेर हर सांझ
नहीं मिली फिर भी हमको, तेरे स्नेह की छाँव
देख ले तेरी दुनिया में, किस कदर ज़िंदा हैं हम,
ना है तन पे कपड़ा, ना ही बचे काँटों से हमारे पाँव
बालकृष्ण डी ध्यानी
चाह
अपने मन की चाह
को कैसे हम मनाते हैं
हौंसलों की पतंग को
खुले आकाश में उड़ते हैं
पैरों की रक्षा हम
फेंकें बोतल पिचका करते हैं
उसको प्रयोग में लाकर
चपल जैसा उपयोग में लाते हैं
आकांक्षा उड़ना में
हम भी दूर दूर तक जाते हैं
कल्पनाओं के रंग में
हम भी किसी तरह रंग जाते हैं
माया का मोह है हमे भी
माया से दूर ही आपने को पाते हैं
थोड़े में भी हम ऐसे ही
ढेरों आनंद का लुफ्त उठाते हैं
अपने मन की चाह
को कैसे हम मनाते हैं
हौंसलों की पतंग को
खुले आकाश में उड़ते हैं
उदय ममगाईं राठी
जेब में पैसा नहीं तो क्या हुआ थोड़ी अक्ल तो है
रेलक्सो जैसा नहीं तो क्या हुआ थोड़ी शक्ल तो है
हम इसी में खुश हैं कांटे भी हमारी राह से बच के चलते हैं
न असर होता जख्मों का, आप खरोच पर भी मरहम मलते हैं
किरण आर्य
ख़ुशी ये ख़ुशी क्या ये पैसे में बसती है
या इसकी अपनी ही जुदा कोई हस्ती है
जहाँ हो अमन ओ चैन ये वहीँ हंसती है
महलो में ये रातो में करवटे बदलती है
तन फक्कड़ जो उसके चेहरे पे सजती है
तन ढके नहीं कपड़ा फिर भी अलमस्त सी है
कहीं सोने के सिहासन तले भी बिसूरती है
कहीं पैरो में बोतल की चप्पलों में भी दिखती है
खुशियाँ हाँ बिखरी हर शह में जीवन की है
फिर क्यों मन में भटकन ये चातक की सी है
ख़ुशी वो भाव अहसास जो रूह चमन में खिलती है
मिले तो फकीर की फकीरी में मिल जाए जिंदगी सी
ना मिले तो मृगतृष्णा की भटकन ये इजाद करती है
अमीर के महलो को भी वीरान करने का हुनर ये रखती है
हाँ ख़ुशी ये गरीब की आँखों में छिपी हंसी में छलकती है
अलका गुप्ता
गरीबी में छिपा है तमाम ये हुनर हमारा|
मेरे आविष्कार की जननी है आवश्यकता ||
रोकर दौलत के लिए समय यूँ ही खोते नहीं |
भरोषा मेहनत का हम जाया करते नहीं ||
अपनी मेहनत के बल पे दुनिया सजा दी |
ना मिला फिर भी दो रोटी सिवा कुछ भी ||
हौसले बुलंद हों तो मुश्किल कुछ भी नहीं |
नीला आकाश तो अपना है पूरी धरती नहीं ||
हाँ हम खुश हैं सडकों पर यूँ ही जीकर |
पन्नी और टाट की झुग्गियों में रहकर ||
तुम जैसी हमें दौलत की मारामारी नहीं |
हम खुश हैं यूँ ही हमें इतनी मुश्किल नहीं ||
डॉ. सरोज गुप्ता
मेरे मेहनतकश भाई ,
पैरों में चुभे न कंकड़ ,
लगे ऐसे जैसे लकड़ ,
पहन कर बोतल की चप्पल ,
हटा रहा दुनिया के कंकड़ ,
तू है कबीरा वाला फक्कड़ ,
जो जला सके है अपना मक्कड़
वो ही बना सके है
अम्बानी के घर धाक्कड़ !
मेरे मेहनतकश भाई
तू मेहनत कर ,
रोटी की चिंता मत कर ,
मत कर ,मत कर !
तेरी ही दरिद्रता हटाने को ,
साहित्य -मेले लगे हए ,
गोष्टियाँ हो रही
नुक्कड़ -नुक्कड़ !
काजू ,बादाम खा रहे बीच बीच में ,
हार्ड ड्रिंक पी रहे जुहू बीच में,
ग्रन्थ पर ग्रन्थ छाप रहे ,
तेरी गरीबी पर !
मेरे मेहनतकश भाई ,
तेरी ये चप्पले दिलाएंगी -
साहित्यिक सम्मान ,
अकादमी पुरूस्कार ,
किसी -किसी को तो
उम्मीद तूने बाँध दी है ,
चप्पलों के आशीर्वाद से,
पद्मश्री ,पद्मविभूषण पा लेंगे !
उच्च श्रेणी के प्रकाशन संस्थान से
छपवाकर ,
बड़े नेता से रिबन कटवाकर ,
किसी स्वर्ण को बुलवाकर
दलित को गुस्सा दिलवाकर ,
दुनिया की मैगजीन में जगह पायेगा ,
पुरूस्कार कमेटी तुम्हे पाकर धनी हो जायेगी !
नन्दी ने तुम्हे देख लिया ,
बोतलों से चप्पल बनाने के जुर्म में ,
भ्रष्टाचारी घोषित कर ,
खबरें सुर्खियाँ नयी बटोरेगा !
Bahukhandi Nautiyal Rameshwari
संघर्ष का मेरे, पहचान हैं ये ।
दिल की अमीरी का प्रमाण हैं ये ।
फेंका था किसी रईस ने, इन्हें रात में ।
साथ देती अब मेरा यही, हर राह में ।
रईस की आवारगी का सुबूत हैं ये ।
अब यही, इस गरीब की आवारगी में, बूट हैं ये ।
हाँ, हाँ इनमे वो लचक वो चमक ना सही ।
इनमे मेरा पसीना चमकता है ।
गरीब का चेहरा तो ..
इन्हें पाकर भी दमकता है
भगवान सिंह जयाड़ा
ऐ मालिक तेरी दुनिया के हम भी हैं इन्शान ,
कुछ को सब कुछ दिया और यह क्या भगवान;
कोई पहने रिबॉक ,किसी को चप्पल नसीब नहीं ,
कोई पहने सूट बूट ,किसी के पास लंगोट नहीं ,
कोई सोचता कौन खाए ,कोई सोचे क्या खाएं ,
खाली है पेट किसी का ,कोई पेट फाड़ कर खाए ,
जीवन तो कैसे भी जी लेता है यहाँ हर इन्शान ,
लेकिन गरीबी क्या होती है ,तू देख मुझे भगवान,
गरीब न इतना कभी किसी को बनाना भगवान,
हर इन्शान को देना जग में रोटी कपड़ा और मकान ,
जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासु
"नसीब"
मेरा यही है हंसोगे आप,
मेरी तरह कई इंसान जीते हैं,
तुम्हे क्या मतलब,
हमारी जिंदगी से,
हम अपने अंदाज में,
जिंदगी जीते हैं,
नहीं ख्वाइस हमें कोई,
जुगाड़ करके जिंदगी,
इस तरह जीते हैं,
दर्द दिख रहा होगा,
आपको हमारी जिंदगी में,
"नसीब" के सहारे जीते हैं
Pushpa Tripathi
जेब है खाली
दिल है खाली
आखों में बसते
देह है खाली
सपने अब खाली
तन पे है चिथड़ा
पैरों में न चप्पल
खाली है जमीन
सूखे से हालात
पानी नहीं बरसा
खेती नहीं उपजी
चिलचिलाती धूप
हाल है बेहाल
खाली बोतल से
पग छाँव मै सेंकू
यही सुकून है
भर आकाश निहारूं
हे प्रभु वर्षा
अब जल्दी से कर
बंजर जमीं
हरी हो जाय
तन पे कपडा
पाँव में चप्पल
खाली नैनों में
मै सपने पाऊं
कर उपकार
कुछ चमत्कार
हो जाए
हे प्रभु ..... कुछ करो उपाय
प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
नसीब अपना - अपना
आप हकीकत हम सपना
आपके माई बाप, हम अनाथ
आपके महल, हमारा फुटपाथ
न भूख सहने को रोटी है
न तन ढकने को वस्त्र है
न कोई सुध हमारी लेता है
न कोई अब हमें अपनाता है
मिल जाये खाने को तो खा लेते है
न मिले तो कहीं भूखे पेट सो लेते है
मेरे सपनो को बस आँख मूँद देख लेता हूँ
रहने को जमी और छत आसमा बन जाता है
मैं चर्चा का विषय हर मंच पर बन जाता हूँ
तस्वीरे दिखाते आप मैं सहानूभूति बन जाता हूँ
क्या नेता, अब तो जनता भी हमें भुनाना जानती है
हकीकत से दूर लेखो तस्वीरो में वाह वाह लूट ले जाते है
आप तो पीते बोतल का पानी, हम गंदा पी, जी लेते है
आपकी फेंकी बोतल से भी चप्पल का जुगाड़ कर लेते है
महंगे रेस्टोरेंट में खाकर आप, 'टिप्स' खूब वहाँ दे कर आते है
हमने फैलाये हाथ तो कर्म करने की आप नसीहत हमे दे जाते है
Pushpa Tripathi
तू ही बता ऐ परवर दिगार
ऐ मालिक तेरे बन्दे हम
क्यूँ ऐसे हमारे करम
धरती पर चले
और पैर है छिले
नहीं कोई हमारा जतन
जब खाली हो कोई बोतल
नजर आती है कोई शकल
वो फेंके बड़े ... निष्काम है पड़े
ले लेते है हम ही खड़े
ऐ मालिक तेरे बन्दे हम
क्यूँ ऐसे हमारे करम
Neelima Sharma
अडिदास , लोटो, वुडलैंड
न जाने कितने जूते देखे
कुछ भी नया नही था
शू डिजायनर के पास
देख कर गरीब की जूती
उसको पेटेंट करा लिया
अब पानी की बोतल में
बंधे धागे मॉल में बिकेंगे
और एक बार फिर गरीब
तलाश में हैं नए अविष्कार की
सुनो !
उसको भी सर्दी , गर्मी लगी हैं पैर में
उसको भी कांटे पत्थर चुभते हैं अक्सर .
Dinesh Nayal
इंसान हैं हम अक्ल तो दौड़ा लेंगे
चाहे आए कितनी ही मुसीबतेँ
पार तो हम लगा ही लेंगे,
तन पर ढ़कने को न हो कपड़े
तो क्या पत्तों से तन को ढका लेंगे,
पैरों में न हो पहनने को चप्पल
तो क्या प्लास्टीक की बोतल से
काम चला लेंगे,
इंसान है हम अक्ल तो दौड़ा लेंगे...
महँगाई चाहे सरकार बढ़ाती जाए
हम हार नहीं मानेंगे,
इसी तरह अक्ल दौड़ा के
अंधी सरकार को हम जगा देंगे,
इंसान हैं हम अक्ल तो....
सभी रचनाये पूर्व प्रकाशित है फेसबुक के समूह "तस्वीर क्या बोले" में https://www.facebook.com/groups/tasvirkyabole/
बहुत ही सुन्दर लिखा है सभी मित्रों ने ,, आभारी हैं हम आपके प्रति जी .. हमारे भावों को आप इतना संजो कर रखते हैं ,,
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