भगवान सिंह जयाड़ा
"शमा और परवाना "
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शमा कहे परवाने से ,क्यों तुझे जलाऊँ ,
अपने अश्को से, कब तक तुझे भिगोऊँ ,
हम साथ रहे तो जिंदगी भर जलते रहेंगे ,
कब तक हम यह दुःख दर्द सहते रहेंगे ,
बस अँधेरे में ही देख कर अस्तित्वअपना ,
जैसे देखता है कोइ सोये में सुनहरा सपना ,
यह अजीब सी खामोसी एक अहसास अपना ,
पर न जलने की डर,न जल कर यूँ खपना,
बस सिर्फ अहसास सदा रोशनी का बना रहे,
साथ सदा तेरा मेरा बिना जले यूँ ही बना रहे ,
समा कहे परवाने से ,क्यों तुझे जलाऊँ ,
अपने अस्कों से, कब तक तुझे भिगोऊँ ,
बालकृष्ण डी ध्यानी
मोमबती
जली और बुझी मै
मोम थी पिघली मै
ले सहारा धागे का
उस तीली ने मुझे जलाया
रोशनी हुयी वैसे ही
सब भूले गये मुझे तब ऐसे ही
अंधेरे अगल बगल जलती रही
टीम टीम कर पिघलती रही
कभी सैकड़ों हाथों ने उठाया
सभी ने अकेले मुझे जलाया
सुख दुःख में यूँ जलती रही
अकेले रोती रही हंसती रही
एक हवा का झोंका आया
उसने मुझे फिर बुझाया
तब शायद
आप को होश आया
जली और बुझी मै
मोम थी पिघली मै
नैनी ग्रोवर
शमा
जलती रही ताउम्र,
रौशनी लूटाती रही,
ख़ामोशी से अपना वजूद,
कमबख्त मिटाती रही..
अंधेरो से लड़ना,
नसीब बन गया,
फिर भी नामुराद,
सदा मुस्कुराती रही..
हो राजा या रंक,
फर्क इसने ना किया,
धागे सा जिगर अपना,
हरदम जलाती रही..
ऐ "नैनी" सीखना है देना,
तो सीख शमा से,
ये पिघलती रही,
दुनियाँ जशन मनाती रही ..!!
प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
मेरा अफसाना
मुझे जलाते हुए अपने हाथ जला न देना
रोशन होते जहाँ को अपने, बुझा न देना
जलती रहती हूँ मैं, रोशनी देने की चाह में
हरती रहती अँधेरा,जो होता तुम्हारी राह में
मोम का है बदन मेरा, सदा ये पिघलता रहा
लेकिन धागा कर्तव्य का, सदा ये जलता रहा
अँधेरे को रोशन करना ही, धर्म अपना माना
दूसरो के लिए जलना ही , कर्म अपना माना
दीपक अरोड़ा
~ऐसी ही हूं मैं~
जलाकर मुझको
रोशन कर लो
जहान अपना
खुद जलकर
दूसरों को रोशनी देना
है काम अपना
सब जानते पहचानते हैं
अंधेरों में मुझको
फिर भी बता देते हैं
'मोमबत्ती' है नाम अपना
Negi Nandu
"ख़ुशी के लिए"
कभी से कभी अँधेरे से जिसके लिए जलता हुआ लड़ता रहा रात भर,
सुबह की किरणों के संग बुझा दी उसने ही मेरी लो फूंक कर l
यक़ीनन मेरी रौशनी कम हे सूरज से,
पर ये भी यंकी हे तुझे फिर मेरी जरुरत होगी अँधेरा होने पर l
सोचता हूँ कई बार की फिर न जलूं तेरे लिए,
कि फिर ख्याल आता हे तेरे चहरे पर ख़ुशी आती हर मेरे जलने पर l
कभी हवा से कभी अँधेरे से जिसके लिए जलता हुआ लड़ता रहा रात भर,
सुबह की किरणों के संग बुझा दी उसने ही मेरी लो फूंक कर l
Pushpa Tripathi
शाम इधर जब भी गुजरे --- तुम चले आना !!
शमा अंधरे में, बुझने न दीजिए
सुबह की लहर खोने न दीजिए .... l
जख्म अभी ताजा है, दर्द बहोत गहरा
मुहब्बत को दिल में छिपाए रखिए …।
कौन जाने फिर चले, रास्ते हम तन्हां
थोड़ी सी रात लौ, शमा जलाये रखिए …।
खुशियों से जब मिलें, पलकों पे आसूँ
ऐसे वक्त अरमां 'पुष्प ' सजाये रखिए …।
किरण आर्य
..........मैं खड़ी रहूंगी............
विकृत मानसिकता बोली मुझसे
नहीं मिलने वाला इन्साफ यूँ
मोमबतियां जलाकर....
बुझा दो इन्हें
और मन में उपजे
अवसाद के गरल को पी जाओ....
यहीं है नियति तुम्हारी
जन्मों सहो प्रताड़ित होकर भी
ना आने दो शिकन चेहरे पर....
सहो सहो और सहते हुए ही
त्याग दो शरीर
वैसे भी उभारों से युक्त
शरीर से अधिक क्या है पहचान तुम्हारी ? ....
मैंने चिल्लाकर कहा
नहीं ये केवल मोमबत्ती नहीं
जिसे जला खड़ी हूँ मैं समक्ष तुम्हारे .....
ये है विश्वास की वो चिंगारी
जो मेरे मन से निकल हुई है रोशन
और जैसे जैसे पिघलेगा मोम ये
राह मिलेगी मेरे मन के अंगार को ....
आ खड़े होंगे कई हाथ साथ मेरे
मोमबत्ती लिए हाथों में
और रौशनी में उनकी
हो जाओगे भस्मीभूत तुम
मैं खड़ी रहूंगी उस पल
मुस्कुराते हुए आँखों में रौशनी सजाये
मोमबत्ती सी .................
कुसुम शर्मा
~शमा जलती रही~
चाँद अपना सफ़र ख़त्म करता रहा
शमा जलती रही रात ढलती रही
ज़िन्दगी का सफ़र यूँ ही चलता रहा
ख़्वाब पलकों से गिर कर फ़ना हो गए
दो क़दम चल के तुम भी जुदा हो गए
होश आया तो दिल के टुकड़े दिखे
सुबह माँगी थी मन का अंधेरा मिला
इस तरह बदलाव आता रहा
कि दोस्त भी दुश्मन लगता रहा
मेरी हरी थकी आँखो में रात दिन
एक नदी आँसुओं की बहती रही
शमा जलती रही रात ढलती रही...!!
अलका गुप्ता
~~~~अभिलाषा~~~~
अंघकार विराट...जब.. छा जाए |
मानव हे ! मन जब..घबरा जाए ||
प्रज्वलित शिखा मेरी तुम कर देना |
जलजल तन ये चाहें पिघल जाए ||
अभिलाषा उर में ...बस इतनी ही ..
हर तन-मन प्रकाशित सा दमकाए ||
हो विलग मनहूस अँधेरा ..भागे दूर ..
जीवन का हर क्षन रौशन हुलसाए ||
मैं शम्मा हूँ तन्हा ..ही जल जाऊँगी |
जीवन से जला हर तन्हाई जाऊँगी ||
सभी रचनाये पूर्व प्रकाशित है फेसबुक के समूह "तस्वीर क्या बोले" में https://www.facebook.com/groups/tasvirkyabole/