~Pushpa Tripathi~.
मै दीपक हूँ, जलता हुआ
मन के विश्वास का अटल
उम्मीदों से सजा मेरा आवरण
अपने आप में चीर अनंत सकल
चमकती मेरी लौ आनंदित खुले मन से
गम के अंधियारे में हमेशा सफल
मै दीपक हूँ अपने आप में मुस्कुराता
चलता काली रात में धीर सबल .
~प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल~
खुद जलकर रोशन जहां कर देता हूँ
अंधेरा आस पास का सब हर लेता हूँ
प्रेम तो दिया और बाती का 'प्रतिबिंब'
दे संदेश जलकर भी साथ निभाने का
~सूरज सिंह बिष्ट~
आते-आते मेरा नाम सा रह गया,
उसके होँठोँ पे कुछ काँपता रह गया।
वो मेरे सामने ही गयी,
और मैँ रास्ते की तरह देखता रह गया।
झूठ वाले कहीँ से कहीँ बढ़ गये,
और मैँ था! कि सच बोलता रह गया।
आँधियोँ के इरादे तो अच्छे न थे,
ना जाने येँ "सूरज"का दिया
कैसे जलता रह गया॥
~नूतन डिमरी गैरोला~
फौलादी इरादा हो तो
तीव्र आंधियों में भी
घोर अंधेरों को चीर कर
दीया जलता है
रौशन जहां को करता है
~नूतन डिमरी गैरोला~
मिट्टी का मोल जान लीजो ...
मिट्टी तु कितनी अनमोल
बन कर दिया जग रौशन किया
भूमि बन खेतों जंगल को जीवन दिया
प्राणी प्राणी को सुलभ भोजन किया
युद्ध छिड़ते रहे हैं मिट्टी के वास्ते
प्राण पंछी उड़ा जब
मिट्टी का जीवन मिट्टी में मिला....
~किरण आर्य~
दीप आस का हमने है जलाया
दीप जो जलकर देता रौशनी
दीप जो करे दूर अंधियारा
मन जीवन और सोच का
दीप दे जो सन्देश प्रेम का
दीप जो दे इक राह सही
चलना सिखलाता निरंतर
पथ चाहे हो दुरूह कितना भी
दीप देता संदेश रोशन करना
खुद मिटा अपनी हस्ती को
ऐसे ही सत्कर्म को बना ध्येय
चलता जा ए मानुष कर सार्थक
जीवन को और रोशन कर मन
~नैनी ग्रोवर~
मुझे सूरज बनने का, कोई शौक नहीं,
बस दिये सी हो जिंदगी, बाती से हों रिश्ते
~Pushpa Tripathi~
ज्ञान का दीपक जलाकर
तुम कर लो मन में प्रकाश
यह राह दिखलाता सदा ही
उच्च राह पर संभलना आसान
~बालकृष्ण डी ध्यानी~
कथा नानी की
कथा नानी जी की
अब मै आपको सुनाऊं
आओ एक दिन की
मै आपको उनकी बात बताऊँ
इन छुपे पत्रों से
आज मै आपको मिलाऊँ
जिन के जलने से वे हमे
अंधकार से रोशनी की और ले गये
भटके थे हम राह मे
झिलमिल कर राह दिखाये
तो सुनो जलते दीपक की कथा सुनो
दीपक जलता है
खुद ही खुद से बकता है
मेरे से तू ये प्रकाश मिलता है
ये सुनकर तेल से ना रहा जाता है
तेल ने तब बात्ती से जा पूछता है
हमारे दोनों के जलने से ही तो
इस दीपक को प्रकाश मिलता है
तेल और बत्ती की बातें सुनकर
दीपक बीच मे ही बोल उठता है
अँधेरे को नीचे दबाकर मै और
तुम को अपने में अंदर समाकर
प्रकाश ही तो मेरे ऊपर जलता है
इन तीनो की बातें सुनकर
प्रकाश भाई धीमे से मुस्कुराये
मुस्कुराते होये कहा क्या बात है
क्यों एक दूजे से ही तुम नाराज हो
देखो तुम्हरे कर्म से क्या फल आया
बिछाडा हुआ था मै ज्योति से बरसों तक
आपके सत कर्म ने ही ऐ मिलाप कराया
आपस रहने से एकता ने परचम लहराया
यही सिख तो मैंने अपने मेल में है पाया
व्यर्थ ही है ये अब लडाई
ऐ कहकर मेरे बुढी नानी के आंखें भर आयी
बंद करो अब ऐ लडाई रहो अब संग
कैसी लगी ऐ कथा आप सबको भाई
~Dinesh Nayal~
जीवन के अँधेरे में 'दिनू'
तू एक दिप जला देना
जलता रहेगा वो दिप
आँधी और तूफानोँ में भी
बस तू लौ ना बुझा देना,
दिप जलाना नई आशाओँ का
निराशाओँ को दूर भागा देना
जीवन के अंधेरे में 'दिनू'
तू एक दिप जला देना.....
~अलका गुप्ता~
अन्धेरा बेशक हो घना ,दीप एक राह में जला देना |
अज्ञान की राह में भी... ज्ञान का प्रकाश फैला देना |
नर हो ना निराशा का जंजाल दुनिया में फैला देना |
आलोकित कर जीवन पथ,संचार आशा का कर देना ||
~नूतन डिमरी गैरोला`
विधि का विधान
सबने कोसा तुझे
तू अँधेरा बन
सब की आँखों में खटका |
और दीया
सबके माथे पर चढ
इतराया |
तू अँधेरा था
युगों से
तेरा प्यार
पर्त दर पर्त
अंधेरो की गुमनामी में
बदनामी की गलियों में
अदृश्य
मौन
चलता रहा |
पर उस
निर्विकार
निस्वार्थ
प्रेम की
तू प्रेरणा भी न बन पाया ,
क्यूंकि तुने कब चाहा
नाम, सम्मान अपना,
तू बस बदनाम और बदनाम रहा |
तू कालिख बन
दुनिया को डराता रहा..
और दीये की महत्ता को जताता रहा|
ये तेरा प्रयास था ..
दीये के अस्तित्व को लाना था |
दुनिया की निगाहों में
दीये का नाम पाना था |
और जब दीये को सबने जाना
तू मौन चुपचाप
हट गया
दीये के नाम के लिए
दर्द अपना पी कर
परित्याग कर अपनी सत्ता
उसकी रौशनी को थमा दी |
भले ही
तेरा बलिदान
छुपा हो सबसे
दुखी न हो,
अफ़सोस न कर |
दीये ने भी कब
ठुकराया है तुझे |
अप्रत्यक्ष ही सही
अपनाया है तुझे |
दीपक ने भी
ठानी है दिल में
कि जब तक
रौशनी रहेगी
संग मेरे ,
रहेगा
संग
दीपक-तले अँधेरा |
~जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासु~
दादी जी घर के अन्दर,
देव्ता के खादरे में,
दिया जलाती थी,
दोनों हाथ जोड़ो इधर,
देव्ता की पूजा करो,
हमें बताती थी,
टिमटिमाती रोशनी में,
गढ़वाली कथाएँ,
हमें सुनाती थी,
लेकिन!दिया दूसरों को,
रोशन करता है,
जबकि उसके तले,
अँधेरा होता है......
~Pushpa Tripathi ~.
हो कितने ही दीये तले अँधेरा
हो कितने ही स्याह रात
ढलता सूरज अन्धकार में
उसकी रौशनी में फिर अँधेरा
पर एक लौ से ही बनता पुनः प्रकाश
एक आस का पुनः उजाला
भर देता खुशियों से आँगन
हम सब के जीवन में दीप माला
~सूरज सिंह बिष्ट~
अब ना बुझने का वादा हैँ।
जग रोशन करने का इरादा हैँ।
क्या हुआ जो तुम
मेरी वफ़ाओ के साथ चल ना पायी।
अब इस जग मेँ "सूरज" के नाम से
प्रेम रूपी दीप जलाने का इरादा हैँ।
अब ना बुझने का वादा हैँ।
जग रोशन करने का इरादा हैँ॥
~Dinesh Nayal~
दिया जलेगा कब तक
इक पल तो बुझ जाएगा,
जैसे ढलता है सूरज
वैसे ये भी ढल जाएगा,
फूल खिले बगीया में
कब तक वो महकायेगा,
इक पल ऐसा आएगा
जब ये भी मुर्झाएगा,
इंसान चलेगा कब तक
इक पल वो भी थक जाएगा..
दिया जलेगा कब तक
इक पल तो बुझ जाएगा...
: •๋• दिनेश(जीन): •๋•
फिर लिखेँगे गीत नये सब
जब दिया बुझ जाएगा...!!
सभी रचनाये पूर्व प्रकाशित है फेसबुक के समूह "तस्वीर क्या बोले" में https://www.facebook.com/groups/tasvirkyabole/
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