~कल्पना बहुगुणा~
आओ खुले आकाश में विचरण करे
यहाँ है न कोई प्रदुषण
है न कोई भ्रष्टाचार
है न किसी की मारे जाने का डर
प्रेम करे प्रेम करे बस
~पुष्कर बिष्ट ~
मैं बंधा हुआ...
वो खुला आकाश ..
मैं छटपटाता वो,..
पंच्छी सा उड़ते ..
कोशिश उड़ने की..
साथ करता ..
दुनिया की नज़रों से
बचता..
खामोशी से मोहब्बत
करता ...
~Virendra Sinha Ajnabi~.
खुशबुएँ तुझ पर मै बिखेर दूं,
प्यार अपना तुझपे उंडेल दूं,
प्रेम की ऊँचाइयाँ बनाए रखूँ,
तूफानों को भी मै झेल लूं
~संगीता संजय डबराल~
मन चाहे मुझे भी मिले
एक खुला आसमान
उडती फिरूं एक पंछी समान
पर मैं कहाँ आजाद,
एक पंछी समान?
मेरा तो मन उड़ता है
पर जाए कहाँ लौट आता है
वापस इस देह में.
लाचार देह में पंख कहाँ.
दिल चाहे मुझे भी मिले
एक ख्वाबों का आसमां
उन्मुक्त उडती फिरूं मैं
मन चाहे जहां जहां
न बंदिशे न रंजिशे
बस हो प्यार की हवा
प्रेम हो हर दर्द की दवा
पर जाए कहाँ लौट आता है
वापस इस देह में.
लाचार देह में पंख कहाँ?
~प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल~
पंख लगा लिए है
जीना सीख लिया है
खुले आसमां में
हौसले बुलंद है
उड़ना सीख लिया है
खुले आसमां में
प्यार भी किया
नफ़रत भी की
खुले आसमां में
बेसक आज़ाद हूँ
सीमाओं का अहसास भी है
खुले आसमां में
स्वार्थी नही लेकिन
हक़ से जीती हूँ
खुले आसमां में
कमजोर न समझना
लड़ने का दम रखती हूँ
खुले आसमां में
~नैनी ग्रोवर~
छू पाऊँ मैं तेरे प्यारा नीला आसमान, ऐ रब ऐसी उड़ान दे,
सब रहें बिना भेद-भाव के, जीने के लिए अब ऐसा जहान दे
~किरण आर्य~
स्वछंद विचरते भाव
पंछी सम उन्मुक्त मन से
अहसासों के पंख लगा
स्वछंद विचरते भाव
शब्दों की उड़ान भरते से
कलम से संवरते सदा
स्वछंद विचरते भाव
उड़ते निरंतर कभी थकते से
विश्राम पाते सपनो तले
स्वछंद विचरते भाव
गिरते संभलते उड़ते पंछी से
मूक वाचाल अहसास लिए
स्वछंद विचरते भाव
मंजिल को पाने को आतुर से
राह साधते साधना रत
स्वछंद विचरते भाव
मुकाम पाते पंछी के नीड़ से
संतुष्टि पूर्णता का भाव लिए .
~बालकृष्ण डी ध्यानी~
तुम साथ दो
पंख पर है मेरे मुझे इतना गुमा
पार करलों सात समंदर सातों आसमान
तुम अगर साथ दो मेरी जाँ
भाव ऐसे है दिल में
प्यारा लगे है आज सारा जंहा
तुम जब साथ हो मेरी जाँ
अपने मिलन का वजूद है आसमान
चलो आज से शुरू करैं एक नई दास्ताँ
आ पास मेरे आ मेरी जाँ
प्यार प्यार ही प्यार है मेरे
पक्ष में मेरे इन वाजों में आज
आ पास और करीब आ मेरी जाँ
मै और तुम और कोई नही यंहा
बस तुम्हरी हाँ पर रोक है इस दिल के आरमान
यूँ ना अब दूर जा आ मेरी जाँ
पंख पर है मेरे मुझे इतना गुमा
पार करलों सात समंदर सातों आसमान
तुम अगर साथ दो मेरी जाँ
~बलदाऊ गोस्वामी~
तारे तोड गगन से लाते, चन्द्र शिखर पर सभा लगाते।।
सूर्य छटा से वो टकराते, पवन वेग से जोड लगाते।।
लेता जन्म जहाँ है प्यारा, सबके आँखों का वह तारा।।
धवला गिरी पर बिगुल बजाते, पैस्पीक सागर थाह लगाते।।
कंटक पथ पर सुमन बिछाते, नृत्य क्रिया करके श्रम लाते।।
लेता जन्म जहाँ है प्यारा, सबके आँखों का वह तारा।।
सुधा श्रोत है जहां बहाते, अनुपम लीला जहाँ दिखाते।।
पर पीयुस में मेरु बहाते, अजब बन्ध में वह वह चल जाते।।
लेता जन्म जहाँ है प्यारा, सबके आँखों का वह तारा।।
इन्द्र धनुष पर झूला झूले ले, सौ योजन से शब्द बिखेरे।।
कलहारी में सुमन लगावें,वीश्व विजय करके दिखलावें।।
लेता जन्म जहाँ है प्यारा,सबके के आँखों का वह तारा।।
रिमझिम बदरा बरस रहे हो, दम-दम ओले टपक रहे हो।।
चम-चम बिजली चमक रही हो,काम से अपने वह तत्पर हों।।
लेता जन्म जहाँ है प्यारा, सबके के आँखों का वह तारा।।
वारिमथे वे घृत के पावें, ध्रुम सतह पर भीत उठावें।।
निर्भय ईश्वर के गुण गावें,अजब अकलनित ही सरसावें।।
लेता जन्म जहाँ है प्यारा, सबके आँखों का वह तारा।।
कर्म वीर के कर्म पिरीते, प्रकृति छटा से नेतही लडाते।।
आफत से वे कभी न घबराते, मृत ज्वाला से कभी न जलते।।
लेता जन्म जहाँ है प्यारा, सबके के आँखों का वह तारा।।
गुण गौरव के गाते-गाते, 'गोस्वामी' सुकवि भी है थक जाते।।
इनके शक्ति के थाह न पाते,गती को देव देख मुस्कराते।।
लेता जन्म जहाँ है प्यारा, सबके के आँखों का वह तारा।।
जीवो प्यारे लाख वरस तुम, दुनिया के श्रृंगार हुए तुम।।
धन्य जननी जो तुमको उपजावे,जो तुम युग को नव सरसाये।।
लेता जन्म जहाँ है प्यारा, सबके आँखों का वह तारा।।
Pushpa Tripathi .........
उंचाईयोँ में उड़ता है, मन चंचल विशाल
परिभ्रमण करता है मन परिश्रांत विशाल
ऊपर उठ गर्वित होता परोक्ष आत्म-तन मेरा
न झुकता उठने देता प्रांजल प्रश्वास विशाल
Dinesh Nayal
लड़ाई-झगड़े बस्ती-बस्ती,
कितनी हो गई जान सस्ती,
घूमती मौत घर-आँगन में!
उड़ता है पंछी नील गगन में..!!
~सुनीता शर्मा~
स्वछन्द पंछी हम सब नील गगन के ,
हरदम साथ निबाहें एक दूजे के ,
रंग भेदभाव से रहे अनछुए से ,
उड़ना सीखे और सिखाएं मिलजुल के ,
बचाते अपने मित्रों को दुश्मनों से,
प्यार का सन्देश दें हर गाँव शहर में ,
छोटे भले पर सोच सदैव ऊँची रखे ,
बढे और खूब फले अपना सुंदर साम्राज्य ये ,
दिल खोल कर गीत गाते हम संग संग नए नए !
~प्रभा मित्तल~
मानो,इक पंछी दूजे से कहता,
दूर बिछौना अब धरती का...
हो उन्मुक्त,गगन में
उड़ने की कोशिश
ले आई मुझे यहाँ तक
अब देख रहा हूँ मैं
विस्तृत नभ है
विस्तार पटल है
पंख अवश हैं
मन कातर है
फिर भी जी करता
उस पार चलूँ मैं....
जहाँ पहुँच, रहें हिल-मिल,
हमें मिले सुरक्षा,और
हों कोलाहल से दूर.....।
~अरुणा सक्सेना~
नील गगन के प्रांगण में भी मानव ने अब ले ली तान
स्वछन्द नहीं रह गया यहाँ अब ,भरना हमारे लिए उड़ान
~सूर्यदीप अंकित त्रिपाठी~
खग वृन्द विचरण करत नभ पर, बहु भांति कलरव कर रहे !
करि जतन जोरी सुभाव मन बस, सब काम संभव कर रहे !!
एहिं भांति मनु बिचरत धरा पर, जन्म-जन्म सुकर्म हत !
पावत है तट नैया जो नाविक, खेवे जोजल सुधर्म पत !
सभी रचनाये पूर्व प्रकाशित है फेसबुक के समूह "तस्वीर क्या बोले" में https://www.facebook.com/groups/tasvirkyabole/
खग वृन्द विचरण करत नभ पर, बहु भांति कलरव कर रहे !
ReplyDeleteकरि जतन जोरी सुभाव मन बस, सब काम संभव कर रहे !!
एहिं भांति मनु बिचरत धरा पर, जन्म-जन्म सुकर्म हत !
पावत है तट नैया जो नाविक, खेवे जोजल सुधर्म पत !! सूर्यदीप अंकित त्रिपाठी - 19/01/2013
बहुत ही अनुपम भाव सभी रचनाओं के हार्दिक बधाई |
ReplyDeleteकैसी है.. हे ! ईश अद्भुत ये जैविक घडी |
ReplyDeleteदूर देश से दूर देश तक बंधी खींचे एक लड़ी ||
साइबेरिया में वोल्गा से भारत की गंगा तक |
देखो चली सारस की टोली...कैसी पंक्तिवद्ध ||