प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
पानी जीवन है
जल बिन जीवन कैसा होगा
सोच लेना तुम
जल बिन मछली जैसा होगा
पानी को बचाना
प्रकृति से प्रेम करना भी होगा
पानी का उचित प्रयोग
हर पीढी को जीवन देना होगा
पानी के प्रति
सजग हमें हर पल रहना होगा
पानी से प्रेम
पर्यावरण की खातिर करना होगा
डॉ. सरोज गुप्ता ......
जल को न यूँ बहाओ
जीवन मछली को न सताओ
जीवन ठहर जाएगा
गीत रुक जायेंगे !
जल को न यूँ बहाओ
स्वप्न टूट जायेंगे
कल्पना बिखर जायेगी
रेगिस्तान में फूल कैसे खिलेंगे
कांटें बन तुम्हें चुभेंगे !
जल को न यूँ बहाओ
जल से ही नई कोपलें
जीवन -लतिका में फूटेंगी
रेत के घरौंदे फिर से
जीवंत हो उठेंगे
मधुर -संगीत से
जीवन -मछली
खिलखिला उठेगी !
अरुणा सक्सेना
बूंद -बूंद से सागर भरता
जल ही सबकी रक्षा करता
मेरा तो जल ही है जीवन
और इसके बिन कोई न बचता
बूंद -बूंद को चलो बचाएं
आओ हम सब कसम उठायें
Yogesh Raj
स्त्रोत हैं समापन की ओर,
संचय हो रहे नष्ट धीरे-धीरे,
जीवन बढ़ रहा संशय की ओर,
प्रकृति-प्रदत्त सौख्य न रहेंगे,
जीवों का कल्लोल न दिखेगा,
यदि प्रकृति से की खिलवाड और.
नैनी ग्रोवर
अब भी संभल जाएँ, अब भी समझ जाएँ,
कहीं ऐसा ना हो, बूँद-बूँद जल को तरस जाएँ
कर चुके बहुत बर्बादी, कितना सहेगी ये धरती
खोलो आँखे, गौर से देखो, शायद आँखें बरस जाएँ ..!!
Pushpa Tripathi ...
जल बिन कछु नाही ...
जल बिन मछरी जैसे तरसे
तैसे मानव भी बिन नीर
इक इक बूंद है जीवन आधारा
हर बूंद में अनंत देह समाय ............
संचय जैसे निधि करत सब
जीवन भविष्य बने आसान
तैसे ही तुम करो संरक्षण
नीर बिन जीवन नाही ....................
खालो कितने ही मिसरी मिठाई
पानी बिन न मिलत, कंही चैन
ये तो जीवन अमूल्य रस है
इसमे मन तृप्ति अघाय .............
मानव पशु पक्षी सब वृक्ष संसार
निर्भर बूंद बूंद प्यास सब ही प्राण
तनिक तो सोचो ज्ञानी ध्यानी
जल बिन कैसे देह ............
भर गागर में अमृत रस यह
जीवन का मुख्य आधार
नष्ट न करो .... व्यर्थ न करो
यह रस घटत ही जाय
पानी बिना मै
पानी का कोई रंग
पानी का कोई अंग नही
बहती जाती है अथाह
कोई छोर कोई संग नही
पानी का कोई रंग
आती है आकाश से
झिर झिर ऐ धरा पर
लेती है वो कई रूप
उसका कोई अवरोह नही
बूंद बूंद विस्मित है
पर वो भी तो सीमित है
पहाड़ पेड़ का हनन
वो अवैध खनन
विकास की दौड़ मै
वो रासयनिक का चलन
कितनी ही गंगा माँ
हो रही आज विषाक्त
ठहरो सम्भाल जाओ
देख कर चित्र वो सबल
जल बिन मछाली सा
तडपत है अब मौरा मन ..३
जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासु
"बहुमूल्य बूँद बूँद जल"
जल बिन जीवन,
कैसे सकता है चल,
बहुमूल्य हैं बूँद बूँद,
भविष्य के लिए,
अभी बचाओ जल,
नहीं तो दर्द भरा,
होगा हमारा कल,
बिन जल घोर अमंगल,
इंसान के लिए,
अति आवश्यक है,
जल और जंगल,
बहुमूल्य बूँद बूँद जल
अलका गुप्ता
जब प्यास थी एक घूंट पानी की ।
क्यूँ बहाए दरिया अंजान होकर ।
भुगतेगी संतान तेरी ऐय्याशियां ।
जल संकट विकटये दुश्वार होकर ।
किरण आर्य
पानी हर बूँद है जीवन स्त्रोत
पानी का रंग रूप ना क़ोई
जिसमे मिले वैसा हो जाय
जीवन जीने का सुंदर सन्देश
पानी हाँ पानी हमें देता जाय
ऐसे ना व्यर्थ करो जीवन तुम
हर पल बूँद सम उपयोगी बनाय
बिन पानी जिया ना जाए
मछली सम जीव तडपत हाय
जब हो पास तो खूब है बहाय
ना हो तो जीव नीर है टपकाय
समय रहते समझो महत्व इसका
ऐसे ही पानी जीवन ना कहलाय .
भगवान सिंह जयाड़ा
धरती का पानी समा रहा है ,
नित गहराई में जा रहा है ,
करो सदा इस का सदपयोग,
इतना न दोहन करो इस का ,
करो न इस का दुरपयोग ,
हम सब मछली है इस जग की ,
पानी नहीं तो सब जीवन सून ,
ब्यर्थ न इस को यूँ बहावो ,
समझो अभी भी बक्त्त है,
घड़ा अभी भी आधा भरा है ,
नहीं तो जैसे जल बिन मीन ,
प्रभा मित्तल
देखो कैसी है माया कुदरत की
जल से ही जिसका जीवन है
वही मीन जल में रहती प्यासी।
बूँद-बूँद कर बह जाएगा गर यह,
सूखा तो ले लेगा जान मछली की।
सो जल से जीवन है यह गौर करो।
जल ही जीवन है, यह गौर करो
नदी-सरोवर,ताल-तलैया सूख न जाए
इसे संभालो वर्षा से भी एकत्र करो
किसान की है जान इसमें भूखे की आस भी
इसे ना यूँ बहने दो ना व्यर्थ करो।
जल ही जीवन है यह गौर करो।।
सभी रचनाये पूर्व प्रकाशित है फेसबुक के समूह "तस्वीर क्या बोले" में https://www.facebook.com/groups/tasvirkyabole/
बहुत ही खूब लिखा है सभी मित्रों ने .. आपका बहुत बहुत शुक्रिया प्रति जी ..
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