~प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल ~
लिखने की इच्छा हुई प्रबल,
कलम को थाम लिया।
प्रतिबिंब ने अपने भावो को,
पन्नो पर उतार लिया।
~केदार जोशी~
जीवन और कलम मे
यही है एक समानता
जब तक घिसी नहीं जाती
तब तक निखार नहीं आता
Virendra Sinha Ajnabi .
तानाशाहों की तलवारें करती हैं सरों को कलम,
साहित्यकारों की कलमें करती है तलवारों को कलम,
तारीख गवाह है जब जब हुआ है इंसानियत पे सितम,
अदीब की म्यान में से निकल कर हमेशा आई हैं ये कलम
~केदार जोशी एक भारतीय ~
लिखने को बैठा हूँ,
शब्द नहीं मिला ,
कलम भी रुक गयी ,
चैन भी नहीं मिला
~बालकृष्ण डी ध्यानी ~
देख कलम अब तो कुछ सोच, कल्पनाओं में तू उड़ विभोर
ना रह गुमसुम इस तरह, पन्नों पर कुछ तो लिख बोल
अभी और भी लिखना है तुझको,अब तो अपना मुख खोल
और बहुत सजना है तुझको, और आगे बढना है तुझको
सुंदर इतिहास बनेगा, भविष्य की ओर दौड़ना है तुझको
देख कलम अब तो कुछ सोच, कल्पनाओं में तू उड़ विभोर
~बालकृष्ण डी ध्यानी ~
कलम उड़ान संग
उड़ता गया यंह वंहा
कल्पनाओं का विश्व
अवतरित है जँहा
~अरुणा सिंह ~
तेरे पास शब्द नहीं
मेरे कलम में स्याही नहीं
लिखूं तो क्या लिखूं
इस दिल के कोरे कागज पर
~डॉ. सरोज गुप्ता ~
मैं (कलम )जीवन के सौन्दर्य में
लींन हो जाना चाहती हूँ ,
मैं पाती हूँ -एक चीख ,एक घुटन ,
मैं सबके जीवन में सूर्य की तरह
आलोक भरना चाहती हूँ ,पर पाती हूँ ,
सघन अन्धकार से भरा सवेरा !
~बालकृष्ण डी ध्यानी ~
भाव परिहास कलम
प्राण मेरे साहस ये मन
पन्नो पर मेरी मनोदशा
का तुम उदगार सनम
~जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासु~
"हे कलम"
मेरे मन के भावों को,
कागज पर उतारकर,
कहती है तू,
भाषा का सम्मान करो,
~किरण आर्य ~
मन में है आक्रोश
कलम है खामोश
भाव शून्य मन क्यों
कलम को बना अस्त्र तू ...........
Vinay Mehta
कलम की नोक से अक्सर फट जाते हैं
ये पन्ने इस बिन चाहे लिखाई में ,
और हम उसे मौत कह जाते हैं
यह भी नियति का खेल ही तो है ...
की हम ज़िन्दगी जीने को भी तकदीर कह जाते हैं !!!
~प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल ~
कलम चले तो हो समाज का कुछ उद्धार
प्रेरणा बन उभरे भाव,कर्म की हो तलवार
'प्रतिबिम्ब' ऐसा उभरे तेरी कलम से विचार
जो न्याय संगत हो और संस्कृति का करे प्रचार
~अलका गुप्ता ~
कलम नहीं शब्दों की तलवार कहिए |
खून नहीं ..इसे कागज एक चाहिए |
उकेरने को उच्च भाव विचार चाहिए |
जज्बा सत्य का संस्कार सुधार चाहिए ||
~ममता जोशी ~
कलम की अपनी ताकत है ,
बेशक कलम कुछ भी कह सकती है ,
पर आज के परिप्रेक्ष में कलम तलवार
के आगे झुक जाती है...
~केदार जोशी एक भारतीय ~
दिल की बात,
कलम के दम पर लिख रहा हूँ ,
अल्फाज़ नहीं मिल रहे है
फिर भी लिख रहा हूँ
लिखने की इच्छा हुई प्रबल,
कलम को थाम लिया।
प्रतिबिंब ने अपने भावो को,
पन्नो पर उतार लिया।
~केदार जोशी~
जीवन और कलम मे
यही है एक समानता
जब तक घिसी नहीं जाती
तब तक निखार नहीं आता
Virendra Sinha Ajnabi .
तानाशाहों की तलवारें करती हैं सरों को कलम,
साहित्यकारों की कलमें करती है तलवारों को कलम,
तारीख गवाह है जब जब हुआ है इंसानियत पे सितम,
अदीब की म्यान में से निकल कर हमेशा आई हैं ये कलम
~केदार जोशी एक भारतीय ~
लिखने को बैठा हूँ,
शब्द नहीं मिला ,
कलम भी रुक गयी ,
चैन भी नहीं मिला
~बालकृष्ण डी ध्यानी ~
देख कलम अब तो कुछ सोच, कल्पनाओं में तू उड़ विभोर
ना रह गुमसुम इस तरह, पन्नों पर कुछ तो लिख बोल
अभी और भी लिखना है तुझको,अब तो अपना मुख खोल
और बहुत सजना है तुझको, और आगे बढना है तुझको
सुंदर इतिहास बनेगा, भविष्य की ओर दौड़ना है तुझको
देख कलम अब तो कुछ सोच, कल्पनाओं में तू उड़ विभोर
~बालकृष्ण डी ध्यानी ~
कलम उड़ान संग
उड़ता गया यंह वंहा
कल्पनाओं का विश्व
अवतरित है जँहा
~अरुणा सिंह ~
तेरे पास शब्द नहीं
मेरे कलम में स्याही नहीं
लिखूं तो क्या लिखूं
इस दिल के कोरे कागज पर
~डॉ. सरोज गुप्ता ~
मैं (कलम )जीवन के सौन्दर्य में
लींन हो जाना चाहती हूँ ,
मैं पाती हूँ -एक चीख ,एक घुटन ,
मैं सबके जीवन में सूर्य की तरह
आलोक भरना चाहती हूँ ,पर पाती हूँ ,
सघन अन्धकार से भरा सवेरा !
~बालकृष्ण डी ध्यानी ~
भाव परिहास कलम
प्राण मेरे साहस ये मन
पन्नो पर मेरी मनोदशा
का तुम उदगार सनम
~जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासु~
"हे कलम"
मेरे मन के भावों को,
कागज पर उतारकर,
कहती है तू,
भाषा का सम्मान करो,
~किरण आर्य ~
मन में है आक्रोश
कलम है खामोश
भाव शून्य मन क्यों
कलम को बना अस्त्र तू ...........
Vinay Mehta
कलम की नोक से अक्सर फट जाते हैं
ये पन्ने इस बिन चाहे लिखाई में ,
और हम उसे मौत कह जाते हैं
यह भी नियति का खेल ही तो है ...
की हम ज़िन्दगी जीने को भी तकदीर कह जाते हैं !!!
~प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल ~
कलम चले तो हो समाज का कुछ उद्धार
प्रेरणा बन उभरे भाव,कर्म की हो तलवार
'प्रतिबिम्ब' ऐसा उभरे तेरी कलम से विचार
जो न्याय संगत हो और संस्कृति का करे प्रचार
~अलका गुप्ता ~
कलम नहीं शब्दों की तलवार कहिए |
खून नहीं ..इसे कागज एक चाहिए |
उकेरने को उच्च भाव विचार चाहिए |
जज्बा सत्य का संस्कार सुधार चाहिए ||
~ममता जोशी ~
कलम की अपनी ताकत है ,
बेशक कलम कुछ भी कह सकती है ,
पर आज के परिप्रेक्ष में कलम तलवार
के आगे झुक जाती है...
~केदार जोशी एक भारतीय ~
दिल की बात,
कलम के दम पर लिख रहा हूँ ,
अल्फाज़ नहीं मिल रहे है
फिर भी लिख रहा हूँ
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