~प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल~
मुँह में राम बगल में छुरी
इंसानियत का ये बदलता रूप
पहले कही ये कोई कहावत है
लेकिन बदला नही बढ़ गया स्वरूप
प्रेम कुछ पल निभा चले जाते
दोस्ती का दम भरने वाले
किस्मत कहे या कहे वक्त की बात
दुश्मन बने सब चाहने वाले
इंसान ही इंसानियत के दुशमन
लगे बिगड़ने ये बनते बनाते रिश्ते
प्रेम का शायद अब करते लोग ढोंग
मतलब निकला तो आप कौन है कहते
~Pushpa Tripathi ~.
आँखों में जूनून , मुंह पर शराफ़त है
पीठ पीछे छिपा, कोई बगावत है
सीने में जलन .. बैर भाव समाकर
ऐसे दोस्त भी इंसानियत भूल जाते है
~ उदय ममगाईं राठी ~
किस पर करूँ भरोसा जो चंद दिन मुझे जीने दे
अपने और पराये की रीत को इक सुई से सीने दे
न कर छुपकर वार, वो घात लगाये इन्तजार में है
दो पल सीने से सीना मिला, देख सकून प्यार में है
क्यों जिंदगी लेते हो, कभी जिंदगी देकर तो देख लो
खुद के लिए जीना भूलोगे,जीवन सार्थक होगा,परख लो
हम सोचते तो हैं बोलते भी है अब ये करके दिखाना है
ये पीठ पे वार करने की आदत को "राठी" अब मिटाना है
~नैनी ग्रोवर~
आ सामने से कर वार, सीने पे मेरे ऐ दोस्त,
कायरों की तरह, मेरी पीठ पे खंजर ना चला
~सूर्यदीप अंकित त्रिपाठी ~
मुख मधुर वचन, मन रहत कलेशा,
दुर्जन संग रखिये न प्रीत न रीसा !!
~सुनीता शर्मा~
चूहा
तेरे मेरे बीच की हो सैकड़ो दूरी
हरदम लडकर मिटाते दूरी
प्यारे नटखट बिल्ले तेरी क्या मजबूरी
होली पर कर लूँगा मैं भी मुरादे पूरी
जंगल के रिश्तों में तुम हो बड़े
पर हो फिर भी बहुत नखचढ़े
तेरे हाथ में बन्दूक,मेरे हाथ भी नहीं जकड़े
छोटे से शिकार छीनकर रहते क्यों हो अकड़े
मैं तो नन्हा फूल तुम हो वृक्ष छायादार
मेरी ठिठोली पर क्रोधित होकर न बनो खूंखार
खून तुम्हारा और मेरा बहेगा तो मचेगा हाहाकार
बस्ती उजड़ेगी ,उपद्रव बढेगे तो मिलेगा धिक्कार
बिल्ला
अरे चूहे है तो छोटा पर है तू बड़ा खोटा
देख मुझे बदले बात तू बिन पैंदे का लोटा
मेरा भोजन चुरा चुराकर बन रहा तू मोटा
भाग यहाँ से दूं नहीं तो तुझे मैं एक सोटा
चूहे तू है बहुत अच्छा लगता है तू मेरा बच्चा
पर बड़े साहबों को मुझे भी दिखाना होता परचा
द्वेष नही हृदय में बस शान जताने में देता गच्चा
दिन भर करता मुझे परेशान पर मन तेरा सच्चा
इन मानवों की अंधेर नगरी में देखा धरा लूटी
दोस्त बनकर रहते हैं, रखकर बगल में छुरी
वतनो में जंग छिड़ती, होते कितने घर सूने
सन्देश देती दोस्ती, मिटाओ दिलो की दूरी !
~अलका गुप्ता ~
चूहा बोला राम-राम बिल्ला बोला हरि ओम |
बोला वैमनष्य मन का छल बल से झूम-झूम |
कोई लाया बंदूक .... कोई लाया छुरी तलवार |
मीठा मीठा बोल बोले ....जहर भरा रोम-रोम ||
~बालकृष्ण डी ध्यानी~
वो मित्र मेरा
दो मित्र है वो
दोनों दो छोर
एक उत्तर तो एक दखन
चुपके चुपके
मन में पला वो चोर
दो मित्र है वो
दोनों दो छोर................
एक से एक बड़े है यंह
सेर पे वो सवा सेर
एक चाकू के तर्ज पर
तो दूजा बंदूक की शरण पर
दो मित्र है वो
दोनों दो छोर................
बात करैं पड़ोस की
दोस्ती करें हैं वो झोंक की '
मुख पर मित्रता का भाव उभरा
अंदर दुश्मनी भरी थोप की
दो मित्र है वो
दोनों दो छोर................
देखों मीठी बातों पर ना जाना
दोस्ती में अपने को पहचानो
जानो ना जानो उस मित्र को तुम
खुद को भली भांती जानो तुम
दो मित्र है वो
दोनों दो छोर................
लगे हैं वो दोनों तैयार
एक दूजे पर वो अब सवार
वो मंजील है मेरी ये दोस्त
अब तो कर दे स्वीकार
नही तो हो जा जंग के लिये तैयार
दो मित्र है वो
दोनों दो छोर................
~किरण आर्य ~
प्रेम हुआ आज चूहा बिल्ली सा खेल ही
बाहं पसारे खड़े जो खंजर उनके हाथ ही
लोग बसाए ह्रदय नफरत काली रात सी
हर नजर बेबसी लिपटी निपट अनाथ सी
किस पर करे एतबार समझ नासमझ हुई
जिसका किया ऐतबार वो नज़र बेवफा हुई
लेकिन उठा नहीं भरोसा प्यार से आज भी
रूह छेड़े तराने, संग अहसासों के साज भी
प्यार से रोशन चमन हो नफरत दरकिनार हो
प्रेम की बजे बंसी हर शय में प्यार ही प्यार हो
~जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासु~ .
पीठ पीछे हथियार छुपाकर,
मित्रता का इजहार कैसा,
मुँह में राम राम,
बगल में छुरी जैसा,
फिर भी अगर,
शांति के लिए संवाद,
पहल बुरी नहीं है,
ऐसा नहीं होना चाहिए,
कहीं पे निगाहें,
कहीं पे निशाना,
तू डाल डाल,
मैं पात पात
~बलदाऊ गोस्वामी~
बातों की उधेड-बुन करते रहा ,दीमक जैसा चूसते रहा।
जिन्दगी जीना मुशकिल हुआ, कप्पटी का राज हुआ।।
समझा न इसकी नियत, बिगाडी है अपनी इंसानियत।
यह है कड़वी सच्चाई, परिस्थिति से फायदा उठाया।।
मिञता की बेवशी सामने आई, पीठ में आघात पहुँचाया।
झूठी माया-झूठा प्रलोभन जताया, कायरता की नियत बतलाया।।
शब्दों को संजोऐ कहता कवि 'गोस्वामी', सुनले भारत के भाई।
स्वार्थ सिद्ध अपना करने आया, मित्र बन कर कप्पटी आया।।
सभी रचनाये पूर्व प्रकाशित है फेसबुक के समूह "तस्वीर क्या बोले" में https://www.facebook.com/groups/tasvirkyabole/
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