~भगवान सिंह जयाड़ा~
गुम सुम से छुपे भीड़ में ,
अपने को पहिचानों ,
क्या कर सकते हो तुम ,
अपने को जानो ,
अलग सी पहिचान बनावो ,
अलग सा कुछ कर दिखावो ,
छुपी प्रतिभा को अपनी ,
इस भीड़ से बाहर लावो ,
नेत्रित्व तुम कर सकते ,
तुम एक जन चेतना हो ,
आगे तो बढावो कदम ,
पीछे पीछे होंगे सब हम ,
तुम कल हो देश के ,
अपने को जानो ,
गुम सुम से छुपे भीड़ में ,
अपने को पहिचानों ,
~किरण आर्य~
जिंदगी अनावरत चलते जाने का है नाम
थे अकेले कदम जब बढाया नई राह पर .
लोग जुड़े हमकदम से कारवां बनता गया
हाथ मुस्काते संग खड़े होने लगी जब शाम .
~Pushpa Tripathi~
चुपचाप मूक बन देखता हूँ मै भी संयुक्त खड़ा
कुछ लोग दौड़ रहे थे संलग्न कल्पित रास्ते
~बालकृष्ण डी ध्यानी~
भीड़ में मै
भीड़ में मै अकेला
देश मेरा यंहा एक खड़ा
जनसमूह का मेला
झुंड में मै फिर भी अकेला
बड़ी संख्या है बहुलता की
अनेकता में दिखती है एकता भी
कशमकश है जमघट बड़ा
फिर भी हर एक स्वतंत्र खडा
समवाय का बड़ा है लाम यंहा
बसते हैं राम भी रहीम भी यंह
विशाल संख्या जनसमूह यंहा
भारत का खडा वो भविष्य यंहा
अकेले में ही साथ चलना
अपना १०० प्रतिशत देश को देना
भीड़ में मै अकेला
देश मेरा यंहा एक खड़ा
~किरण आर्य~
हो जागृत जागृति के जज्बे संग हम चले
कर उद्घोष नए युग का टंकार करते हम चले
है नियति सागर की लहरों के विरुद्ध बहना
लहरों से खेलते निरंतर बहते से हम चले
सत्कर्म करते परहित गुनते निज से परे
जिंदगी संग हँसते मुस्कुराते से हम चले .
~अलका गुप्ता~
भीड़ नहीं बेतरतीब ! एक गुणवत्ता चाहिए !
अनवरत बढती जनसंख्या पे लगाम चाहिए !
हर नागरिक को सुविधाएं बुनियादी चाहिए !
अधिकार नहीं केवल,निभाने कर्तव्य भी चाहिए !
धर्म ,हिंसा या राजनीति ना कर पाएगी कुछ ...
ह्रदय में इंसानियत देशधर्म की आग जलनी चाहिए !
उन्नत्ति के लिए जरुरत देश की समझनी चाहिए !
भीड़ बेतरतीब नहीं जिम्मेदार गुणवान नागरिक चाहिए !
हर नागरिक की एक अलग सुन्दर पहचान बननी चाहिए
~नैनी ग्रोवर~
वक़्त से आगे निकलने की, होड़ है लगी,
एक दूसरे से आगे निकलने की, दौड़ है लगी ..
आज तो रब, बन गई दौलत, मर गए रिश्ते
जिंदगी, विधवा के आँचल का निचोड़ है लगी
~जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासु~
अनुशासन देश को महान बनाता है,
हम देश के अनुशासित नागरिक बनें,
समानता के सूत्र में पग पग बढ़ें,
सुनहरे भारत देश का निर्माण करें,
समाज की समृधि के लिए नेतृत्व करें।
~सुनीता शर्मा~
प्रगति की दिशा में अनुशाषित बढ़ रहे सभी ,
सुसंस्कृत व् एकता के भाव को अपनाये सभी ,
पर ठहरो इस भीड़ में छिपा है अन्धकार कहीं ,
पैनी नजरो से खोजो इस भारत के दुश्मन को अभी , .
बच्चों का बचपन छीनकर करें न ये मनमानी कभी ,
देश की सुरक्षा न हो जाये खंडित कहीं ,
वतन रहे सुरक्षित अगर हम जाग जायें अभी ,
जागो , भीड़ में भीड़ बनकर न रह जायें सभी ,
सजग होकर भीड़ में खड़े दुश्मन को पहचाने अभी !
~प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल~
भीड़ का हिस्सा हूँ
फिर भी अलग हूँ
चलना चाहता हूँ
लेकिन रोकने वाले
आस पास बहुत है
भीड़ बन कर भी
जीना नही चाहता
चिंगारी सुलग रही
उसे आग बनाना है
तेरे संग ही सही उसे
जनचेतना बनाना है ....
सभी रचनाये पूर्व प्रकाशित है फेसबुक के समूह "तस्वीर क्या बोले" में https://www.facebook.com/groups/tasvirkyabole/
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