Friday, January 25, 2013

24 जनवरी 2013 का चित्र और भाव


(२४ जनवरी के चित्र पर मित्रो / सदस्यों के भाव )


नूतन डिमरी गैरोला 

बचपन गुमसुम तन्हा उदास
मम्मा गयी है ओफिस
पप्पा दौरे पर ख़ास
बचपन गुमसुम तन्हा उदास

Bahukhandi Nautiyal Rameshwari 

दो नन्ही हथेलियाँ ..
नसीब अपना खोज रही हैं ..
किसे कहूँ माँ ?
इक धरा, एक जननी ..
दुविधा में नन्ही जां ..
नन्ही सी हथेलियाँ ..
धरा से दुबुल नोच रहीं हैं ..
माँ को तरसता बचपन ..
नम निगाहें, होठों पर कम्पन ..
धरा माँ, आंसू शोख रही है 

Pushpa Tripathi 

मै बचपन ..... छोटा हूँ बचपन
नन्हे है पाँव , नन्हे से हाथ
मुट्ठी भर जमीन, सिमटा आसमान
बेफिक्र सा हर पल
मै बचपन ........

छोटी सी आशा भोला सा मन
मासूम सा चेहरा, मीठे है बोल
मिटटी पर कुरेदता जाने क्या भ्रम
समझता नहीं कुछ
मै बचपन .............

चिन्ता नहीं कोई मुझको, मै निडर अज्ञान
नहीं नफरत दिल में कोई
रहता हर मस्त अपना हाल
धुन में रहता शरारत बहुत
मै बचपन ............

मम्मी मेरी बड़ी महान
पापा मेरे कितने दिलदार
जो भी मांगो मिल जाता है
रो गाकर सब हो जाता है
मै बचपन .........

खेलना कूदना अपना है काम
कार्टून में मै रमता जी जान
नखरे मेरे बहुत ही बड़े
अकड़ है मेरी नहीं किसी से कम
मै बचपन ..............

Yogesh Raj 

मै यहाँ बैठा कुछ बना रहा हूँ,
बचपन की जागीर बना रहा हूँ,
जिन्हें मै बाद में याद करूँगा,
उन लम्हों का लुत्फ़ उठा रहा हूँ.

बालकृष्ण डी ध्यानी

अवाज लगाई थी ...

अपने ही लगी हुयी हूँ 
क्या चुनो ये सोच रही हूँ 

कण कण खोजों रही हूँ 
पल पल वो बीन रही हूँ 

श्रण दिख जाये कंही पर 
आकर हंस जाये यंही पर 

जो में सोच रही हूँ 
अपनों को खोज रही हूँ 

धुंधली सी छाया है वो 
यंहा से दूर खडी साया है वो 

पिता कहा इतना माँ ने 
फिर भी तस्वीर से निकला ना वो 

अपने ही लगी हुयी हूँ 
क्या चुनो ये सोच रही हूँ 

जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासु 

"बिखर रहा बचपन"

तन मन मेरा नन्हा,
बिखर रहा बचपन माटी में,
मुझे पता नहीं है,
निश्चिंत हो माटी के संग,
खेल रहा हूँ,
ऐसा है बचपन मेरा,
बीतने पर नहीं लौटेगा,
मुझे पता नहीं है,
मैं तो मस्त हो माटी में,
एक अलख जगा रहा हूँ,
बीता होगा बचपन आपका,
माँ और माटी के संग,
याद दिला रहा हूँ।


किरण आर्य 

आह बचपन जो मेरा आहुति चढ़ा
आधुनिकता व् मह्त्वकंशाओ की
उसे आज ढूंढें मन मेरा मिटटी तले

हाँ उदास हूँ और व्यथित भी थोडा
स्वछंद उड़ने को विकल मन मोरा
सपने सुनहरे फिर बोने मैं चला
धरती के आंचल को भिगोने चला

क्या बचपन के सपनो का वृक्ष
फलेगा फूलेगा फिर से चहकेगा
मुर्झाया नितांत अकेला बचपन मेरा

हाँ अब है साध यहीं मिले राह
पंखो को जो कर रहे उड़ने का हौसला
और मिल पाऊं मैं उस बचपन से
जो मिटटी तले जाने कब गुम सा गया

अरुणा सक्सेना 
बचपन की मासूम निगाहें ,स्वप्न मन का करे साकार 
आड़ी -तिरछी खींच लकीरें ,शायद कोई बने आकार ............


नैनी ग्रोवर 

हर जगह तुझे ढूँढ-ढूँढ कर, माँ हार गए मेरे नन्हें पाँव 
तेरे सिवा, कोई ना ले गोद में, लगता पराया सारा गाँव ..

कहाँ गई तू छोड़ के मुझको, नज़र मुझे क्यूँ नहीं आती है,
कौन करेगा, कड़ी धूप में मुझपर, माँ अपने पल्लु की छाँव!!


संगीता संजय डबराल

क्यूँ छीन लिया बचपन,
इन नन्हें क़दमों ने,
अभी ठीक से चलना भी न सीखा,
और तुमने मेरा कर दिया "एडमिशन"
क्यूँ छीन लिया बचपन,
गिल्ली डंडा, लट्टू कैरम,
छुपन छुपाई, पिठू, कन्चे
कितने थे वो दिन अच्छे,
कंप्यूटर टी.वी की दुनिया
नए नए सब "एनिमिनेशन"
क्यूँ छीन लिया बचपन,
छूट गये सब बाग़ बगीचे,
कोमल कन्धों पर भारी बस्ते,
मौज मस्ती, हुल्लड़ बाजी,
खुशियाँ सारी पिछड़ गईं,
पास करो बस "कम्पटीशन"
क्यूँ छीन लिया बचपन,
वो भोलापन और मासूमियत
सबकी लगती है कीमत
पहले दिन भर रहते मस्त,
अब दिन भर हम व्यस्त,
दिन प्रतिदिन एक नया "एक्शन"
क्यूँ छीन लिया बचपन,
खुरच रहा हूँ,नाखूनों से,
शायद मिल जाए मुझको,
वो खुशहाल बेखौफ बचपन"

बलदाऊ गोस्वामी 

बच्चपन का एक जमाना था।
खुशियों का खजाना था।।
चाहत चाँद को पाने की थी।
दिल खेल का दिवाना था।।
दादी माँ की कहानी थी।
बडी ही प्यारी थी।।
मन में अनबूझी पहेली थी।
मिट्टी पर सुलझाने बैठी थी।।
आडी-तिरछी की लकिरें थी।
जीवन में एक नई मोड आनी थी।।
बच्चपन............

अलका गुप्ता 
मैं राही.....एक बचपन का |
निश्चिन्त मासूम सा बच्चा हूँ |
मम्मा पापा ने दुलराया भी|
प्यार से खूब सहलाया भी||

आज मैं नारज कुछ हूँ |
जिद में मचला बहुत हूँ |
तंग करने का इरादा है |
यहाँ एकांत में आया हूँ ||

ढूंढेगे जब परेशान होकर |
होगी माँगपूरी कुर्बान होकर
मैं क्यूँ करूँ चिंता बच्चा हूँ !
करूँ क्या मन का सच्चा हूँ !!

अलका गुप्ता 

मैं बचपन ! अनजान निश्चिन्त राह का पथिक एक |
मैं ढलता ! हसरतों की सीढियाँ चढ़ता हर पल अनेक |
रूठता मचलता झिझकता हंसता चहकता अबोध सा |
जैसे मिटटी हो कुम्हार की निराकार गीला लौंदा एक ||


सभी रचनाये पूर्व प्रकाशित है फेसबुक के समूह "तस्वीर क्या बोले" में https://www.facebook.com/groups/tasvirkyabole/

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