Friday, January 18, 2013

24 दिसंबर 2012



~प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल ~


नारी अपनों से भयभीत है
ये अपने देश की नही रीत है
आज अपने ही समाज पर
यहाँ वहाँ उठ रही अंगुलियाँ
माँ बहन बेटी दर्द झेल रही
इंसानियत शर्मसार हो रही
क्योंकि हमने अपने
संस्कार का किया तिरस्कार
और संस्कृति से किया किनारा
आज भी वक्त है
संस्कार संस्कृति को
आज फिर से अपनाओं
अपवादो को आईना दिखाओ
समाज के उत्थान मे
अपनी ईमानदार भूमिका निभाओ
स्नेह आदर मान की बात हो
नारी के सम्मान की सोच हो

~बालकृष्ण डी ध्यानी ~
देख वो शून्य
खुला आकाश
अब भी शून्य
में बसा संसार

दूर तक नजर
अकेली हूँ खडी
उत्पति के बाद
ये दशा है घड़ी

देखों किसको
कौन साथ देगा
नजर कहे मुझे
चल कंही ओर

खिलौना बनकर
घुमो चाहों ओर
नारी का जीवन
है अति कठोर

देख वो शून्य
खुला आकाश
अब भी शून्य
में बसा संसार

~नैनी ग्रोवर ~
वो देखो सामने, चली आ रही है सुबह,
मिट जाएगा अन्धेरा, दो पल का है मेहमां..
बस कुछ और, थोड़ी हिम्मत की है ज़रूरत
हो जाएगा, अब इस जुलम का ज़रूर खात्मा

~Virendra Sinha Ajnabi~
स्नेह-पूर्वक,
करलो तुम स्वीकार,
जन-समूह उमड़ पड़ा,
देखें, करते तुम कितना अत्याचार.....

~अलका गुप्ता ~
मत दिखा मुझे वह आकाश !
चुग लूँ पहले धरा की आस !
नित नए -नए तू वादे करता है
बता कैसे कर लूँ तेरा विशवास !!

~प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल ~
रात का अँधियारा खत्म हुआ
देख उस ओर, कुछ नया होगा
आज का सूरज यही से उदय होगा
तेरे मेरे जीवन की यही से शुरुआत होगी

~बालकृष्ण डी ध्यानी ~
देखा आ रहा है कोई
क्यों इस दिल के पास
हलचल मचल रही है
दिल हो रहा बेकरार
 

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