( 22 जनवरी का चित्र और मित्रो / सदस्यों के भाव )
किरण आर्य
उम्मीद की किरणे लो आई
मुस्काती सी आँगन में
फैला उजियारा चहुँ और
मन की आशायें महकी है
क्षुब्द मन आक्रोशित बैठा
कुंठित अँधेरे के कोटर में
और काली रात की स्याही
उसे लील लेने को आतुर
अब उस मन को मिल जायेगी
राह इक सुनहरी सी
बस हौसला जो छोड़ गया
राह में अकेला कहीं
उसको थाम रखना है साथ
और चलना है बेखौफ
उम्मीद के रौशन दीये की
रौशनी संग लड़ते हुए
ये किरणे यहीं प्यारा सा
सन्देश दिए जाती है
और हमें गिरकर संभलने
निरंतर चलने का
पैगाम हाँ पैग़ाम दिए जाती है
जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासु
"पसरा हुआ पथ"
प्रकृति के रंग रूप,
सर्वत्र फैली हुई धूप,
सतरंगी इंद्र धनुष,
छटा बिखेरता धरा पर,
निहारता है इंसान जब,
हर्षित हो उठता है मन,
किधर जा रहा है पथ,
न जाने किस शहर की ओर,
धरती पर हो रही है भोर,
पसरा हुआ है पथ,
न जाने किसकी इंतज़ार में,
बालकृष्ण डी ध्यानी
चल
चल लौट चल घर को
देख देश बोला रहा है तेरा
राहें सजी है चमक रहा देश तेरा
२१ सदी को बढ़ रहा देश तेरा
चल लौट चल घर को
आस लगाये एक पेड़ खड़ा
बाँट जो रहा वो कौन तेरा
बुढी आंखें कमजोर होई
ऐनक टूटी अब दरस दिखा
चल लौट चल घर को
पर्वतों का दमका माथा
आकाश से उतर कर आ जरा
सुनले धरती की ये पुकार
आज अब तो ना कर इनकार
चल लौट चल घर को
चल लौट चल घर को
देख देश बोला रहा है तेरा
राहें सजी है चमक रहा देश तेरा
२१ सदी को बढ़ रहा देश तेरा
चल लौट चल घर को
सूर्यदीप अंकित त्रिपाठी
हुआ मेघ सघन, बरसा झर-झर,
पत-पत डाली का डोल उठा,
हुई तृप्त धरा, ऱज कण महका,
खग कलरव वन-घन बोल उठा !!
ले सातों रंग गंगन अंचल,
लहराता हुआ इतराता है,
इस दिशा से दूजे छोर तलक,
इन्द्रधनुष दिखलाता है,
ताज़ी किरणों से छन-छन कर,
ये तेज धरा पर ढोल उठा !!
हुआ मेघ सघन, बरसा झर-झर,
पत-पत डाली का डोल उठा !!
संगीता संजय डबराल
लौटने को आतुर घरोंदे पर
पश्चिम का पथिक
अग्रसर पथ पर,
श्यामल, सांवल मोहक बड़ा
आसमां से मिलन की कामना पर
पश्चिम का पथिक
अग्रसर पथ पर,
दूर क्षितिज के मोड़ पर
सदैव ही प्रतीक्षारत
स्वर्ण अश्व,इन्द्रधनुषी रथ पर,
पश्चिम का पथिक
अग्रसर पथ पर,
सुबह है या शाम का मंजर
मन भर्मित विस्मित,
मृग तृष्णा सा हर एक पद,
पश्चिम का पथिक
अग्रसर पथ पर,
स्याह लाल, नीला अम्बर
अनजान सी डगर, बिन हमसफ़र
कब चढ़ गया शिखर पर?
पश्चिम का पथिक
अग्रसर पथ पर,
नैनी ग्रोवर
ये सुबह का उजाला, ये कुदरत के हसीं नजारे,
ये पंछियों की चहक, रंगीं मौसम के सुहाने इशारे ..
कह रहे हैं हमसे, उठो जिंदगी जंग है, लड़नी है
वरना पीछे रह जायेंगे, सारे ख्व़ाब तुम्हारे हमारे!
प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल .
राह अभी पकड़ी है
दूर मंजिल खडी है
एक रोशनी उम्मीद की
देखो क्षितिज पर उभरी है
उजाला फैला नभ पर
हौसला देता पेड़ खड़ा
राह दिखाती प्रकाश रेखा है
देखो सतरंगी छटा उभरी है
अँधेरा कुछ पल का मेहमां
चाँद थोड़ी सी राहत देता है
विश्वास खुद का बढा देता है
देखो काले बादल हटने लगे है
चल अब चले कर्म पथ पर
चल अब चले धर्म पालन करे
छिपे हुए रहस्य जिन्दगी के
देखो स्वयं सामने आने लगे है
ममता जोशी
लिखने की कोशिश में कलम टूट गया,
बोलना जो चाहा गला सूख गया....
संवेदना से भरा दिल अब शून्य हो गया,
सूर्योदय की तलाश में जब सूर्यास्त हो गया
सभी रचनाये पूर्व प्रकाशित है फेसबुक के समूह "तस्वीर क्या बोले" में https://www.facebook.com/groups/tasvirkyabole/
सपनों में अंतर्मन के सतरंगी इन्द्रधनुष संजोए |
ReplyDeleteविकल विवश सा व्याकुल ह्रदय हूक- हूक रोए |
चला गया दूर क्षितिज पार वो अपना सा कोई |
बन के तारा दमके न्यारा जग सारा ये समझाए ||