Friday, January 18, 2013

17 जनवरी 2013



~केदार जोशी एक भारतीय~ 
कुछ जादू सा है मेरे हाथो की उंगलियों में ,
कुछ तो बात है , मेरे हाथो की उंगलियों में ..
सब कहते है हाथो की उंगलिया सामान नहीं होती ,
कुछ तो राज है हमारे हाथो की उंगलियों में ...


~प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल~
अलग है सबके भाव अलग अलग इंसान
होकर साथ भी अलग हैं अँगुलियों समान
मुस्कराहट संग 'प्रतिबिम्ब' भर जाते घाव
क्रोध, ईर्ष्या, दुश्मनी के आओ मिटाए भाव

~कोमल सोनी~
एक जैसा मन होकर भी, अलग अलग है भाव
ज्यों नदी, नहर, सागर में बहती रहती नाव
ऐसे ही इस जीवन में आते है धूप कभी तो छाँव
जी लो इनके ही संग, मुस्कान बिखरे, जो भर दे सारे घाव

~Pushpa Tripathi~ .

उँगलियों की ऊंचाई होती नहीं समान
कर ले कितनी बंदगी, ये है सब कमाल
कुछ तो तीखे होत है, कुछ मीठे करते वार
कुछ बडबोली होत है, कुछ भावनाओं के धार
कुछ तो गुस्सेले है अपना आपा खोय
ये तो जीवन का रंग है, क्या करोगे रोय
आखिर मन सब एक है पाँचों उंगली शरीर
भीतर से जन सुखी बनो, न बनो कोई भी भार

~बालकृष्ण डी ध्यानी~

पांच उंगलीयाँ

नौ रस है की
ये है रस मलाई
मुख मंडल पर इनसे
आभा है उभर आयी

शृंगार रस है रति की
कांती चमक चमकी जाये
हास्य रस है हास का
उसकी जिंदगी लंबी हो जाये

करुण रस है शोक का
नैनो ने नीर अब बहाये
रौद्र रस है वो क्रोध का
ताप से मुख तमतमाये

वीर रस है उत्साह का
सबको साथ वो दिलाये
भयानक रस है भय का
एक कोने में वो डर जाये

वीभत्स रस है घृणा का
मन में मालानी वो भर जाये
अद्भुत रस है वो आश्चर्य का
वो अचम्भा सा कर जाये

शांत रस है निर्वेद का
वो नया विश्व हर पल बनाये
पांच उंगलीयों के भाव में
मुझे नौ रस है दिख जाये.

~किरण आर्य ~
जीवन के सात रसों से होते मन के भाव
जब होते क्रोधित ये दे जाते इक घाव
मरहम प्रेम का लगे सम सुनहरी छाव
करुण रस देता है जीवन को भटकाव
हास्य रस पर है टिके खुशियों के पाँव
रसों के समावेश से चलती जीवन नाव
हर मानुष के मन में बसते ये सब भाव
पञ्च उंगलियो से न्यारे पर रहते साथ
किसको अपनाए हम किसका छोड़े हाथ
है अपने ही हाथ ये समझ सके जो बात
नकारात्मक जो भाव वो सम काली रात
सकारात्मक सोच है खुशियों की सौगात
हंसके जो पल बीत गए वो ही है अपने
बाकी पल तो भ्रम समान जैसे टूटे सपने

~बलदाऊ गोस्वामी~
बीच में पधारे शक्ति,
जब मिले पाँचों की भक्ति।
हर जगह पर है इनकी दहशत,
जीसकों चाहें उसको करें ये तत्काल फुरशत।।
इनकी बिखरने की है बडी अजीब कहानी,
फुट-बैर जो है इसकी रानी।
हर एक की है आशा,
मै बढुँ तुमसे बेतहाशा।।
बनी है कहानी,
सुनले भारत की नानी।
भ्रष्टाचार की घुस बैठी आँधी,
भारत की है यही एक खांमी।।
सुनले भारत के तु भाई मेरे,
कभी न टूटे रिश्ता तेरे।
कवि कहता इस पर,
हो एक पर।।


~नैनी ग्रोवर~
हैं कई धर्म मेरे देश में, हर इक भाव की तरह,
मिल जाएँ अगर तो बन जाएँ, घनी छावं की तरह ..
ललकार तेरी तुझको ही कहीं, भारी ना पड़ जाए
बन ना जांयें तेरे शहर कहीं, उजड़े गांवं की तरह

~सुनीता शर्मा~
चार उंगलियाँ और अंगूठे से बनता हाथ का संसार ,
अलग हैं पर साथ में रहते आते एक दूजे के काम ,
पृथक रहकर कोई ऊँगली न बनाये कार्य ,
पांच उंगलियाँ एक रहकर बनाती एकता की पहचान !

दुःख परेशानी के बाद आता जीने का ढंग ,
अंगूठे बिन हाथ अधूरा न बढ़ता जीवन उमंग ,
हर एक का अपना महत्व और अलग हैं रंग ,
कभी भी किसी को न समझें कोई कम !

पांच मनोभावों से बनता मानव का संसार ,
जीवन के उतार चढाव में दिखते इनके रंग ,
अहसास अलग है पर हैं जीवन हेतु उत्तम ,
हर भाव से बनता मानव के जीने का ढंग !

हंसना सुख का प्रतीक तो रोना ह्रदय का संताप ,
चिड़ना और मुस्कुराने में आता जीवन में आनन्द ,
क्रोध से जीवन व्यर्थ होता बनते हम नकरात्मक ,
हंसने से जीवन ऋतू बनती मनमोहक व् सकरात्मक



सभी रचनाये पूर्व प्रकाशित है फेसबुक के समूह "तस्वीर क्या बोले" में https://www.facebook.com/groups/tasvirkyabole/

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