~प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल ~
काली थी रात
भावों से जूझ रहा था
बस चाँद नज़र आता था
देख रहा था यहाँ वहाँ
एक नज़र चाँद को देख लेता था
उम्मीद की रोशनी उसमे पाता था
काली रात मे चाँद का साथ मिला
अरमानों को फिर एक सहारा मिला
सूरज से मिलते ही चाँद को विदा किया
~बालकृष्ण डी ध्यानी~
अँधेरे तू साथ है
बदली और चाँद के पास है
अँधेरे तू साथ है
चाँद तेरी रोशनी में
चाँदनी की क्या बात है
अँधेरे तू साथ है
मध्यम मध्यम गा रहा
मेरा दिल तू आज है
अँधेरे तू साथ है
कोई देख रहा होगा तुझ में
सोच रहा मै भी उसके पास हूँ
अँधेरे तू साथ है
~केदार जोशी एक भारतीय~
चाँद को देखा तो तेरी याद आई ,,,
अपनों के साथ
अँधेरे से जुडी दास्ताँ याद आई ..
चाँद तू भी बड़ा बेवफा है .
सुबह आई थो तुजे सूरज की याद आई
~Virendra Sinha Ajnabi .~
खुश हैं बहुत बादल और आसमान,
अँधेरे दूर कर रहा है उनका ये चाँद,
क्या मै भी रखूँ आस उजाले के,
क्या लौट कर आएगा मेरा भी चाँद
~किरण आर्य~
ए अमावस के चाँद
मन क्षुब्द आज
कालिमा सा क्यों
रोशन कर आँगन तू मेरा .......
छट जायेगा जब अँधियारा
सूरज की किरणों सी मुस्काती आस
रोशन कर जायेगी मन का हर कोना
ये अटूट विश्वास है मेरा .........
थाम हाथ चल तू साथ
हाँ संभल जाउंगी हर मोड़ पर
जब हाथों में हाथ तो तेरा
तू ही तो चाँद और सूरज मेरा .........
~सूर्यदीप अंकित त्रिपाठी~
दूर गगन, चंदा पूरन
ये निशा मधुर मतवाली है ..
मदिर ऋतु बस प्रखर समीर से,
करे नृत्य वृक्ष और डाली है ...
तारक वृन्द ओढ़े मेघ दुशाला,
चन्द्र बदन ढक लेता है,
एक क्षण प्रकट हो क्षण इक लुप्त हो,
खेल सुखद दिखलाता है ....
भोर के तारे को पाने को,
संग यामिनी घटा भी निकली है ..
दूर गगन, चंदा पूरन
ये निशा मधुर मतवाली है (शेष .... )
~अलका गुप्ता ~
दीप की यदि लौ होती तो ....
कर देती विश्व अँधेरा |
चाँद की चांदनी होती तो ....
समेट किरणे करती अन्धेरा |
यदि जो सूरज होती तो ....
चादर डाल रात्रि की....
करती रैन बसेरा |
यदि मैं विजली होती तो ....
डूबा कालिमा में |
नहींदिखाती चेहरा |
इन सबने मेरी जो ....
मानी होती तो....
वैभव मानव सा पाते ...
जैसे मेरा ||......
~Vinay Mehta~
साँझ होते जैसे ही ..
चाँद फलक पे आता है ..
धरा का हाथ पकड़ ...
सूरज ...
उसे होले से कहता है ..
धरा के रास्तों पे रौशनी रखना ...
सुबह होते तक उस पार ले आना ..
भोर में फिर आ जाऊंगा ..
तुझसे अपनी अमानत ...
ले जाऊंगा ...
~नैनी ग्रोवर~
जब आती है तू ऐ रात,
क्यूँ तनहा मुझे कर देती है,
जो खाली घड़े सा लगता है,
वो लम्हा मुझे कर देती है
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